" सुहानी सी सुबह "
सुहानी सी सुबह खिली है,
लगता है धरती सूरज से मिली है |
उसके एक एक कण ऊर्जा से भरे है,
ऐसा लगता है जैसे सागर में मोती बिखरे हैं |
सुनहरी सुबह प्रकति से बात करती है,
पता नहीं प्रकति क्यों इतना मचलती है |
चहचहाती चिड़ियाँ, खुली हुई खिड़कियाँ,
बंधन से टूटी साडी वो बेड़ियाँ |
लहलहाते फसल मन में हलचल,
उम्मीद रहती है अच्छा हो कल |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
2 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (6-04-2019) को " नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं " (चर्चा अंक-3297) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अनीता सैनी
बहुत बढ़िया
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