" सुहानी सी सुबह "
सुहानी सी सुबह खिली है,
लगता है धरती सूरज से मिली है |
उसके एक एक कण ऊर्जा से भरे है,
ऐसा लगता है जैसे सागर में मोती बिखरे हैं |
सुनहरी सुबह प्रकति से बात करती है,
पता नहीं प्रकति क्यों इतना मचलती है |
चहचहाती चिड़ियाँ, खुली हुई खिड़कियाँ,
बंधन से टूटी साडी वो बेड़ियाँ |
लहलहाते फसल मन में हलचल,
उम्मीद रहती है अच्छा हो कल |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया
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