" ठंडी के कोहरे में "
सुबह ठंडी के कोहरे में
चलती ठंडी हवाओं में |
उठ पड़े हम सुबह जल्दी
बाहर पद रही है कड़ाके की ठंडी |
हाथ हमारे कांप रहे थे,
फिर तैयारी कर रहे थे |
सबका था उस पल का इंतज़ार,
कब होगा इसका आरम्भ |
ये दिन था गणतंत्र का,
जिस पर हमें नाज़ था |
सभी ने दिए अपने विचार,
सभी ने बनाए इस दिन अपने यार |
कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर
कवि परिचय : यह है कुलदीप जिन्होंने यह कविता लिखी है | कुलदीप को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और वह अब तक के बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | कुलदीप पढ़लिखकर नेवी ऑफिसर बनना चाहतें हैं | कुलदीप को डांस करना बहुत अच्छा लगता है |
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-02-2019) को "तम्बाकू दो त्याग" (चर्चा अंक-3243) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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