रविवार, 2 सितंबर 2018

कविता : खेल नसीब का

" खेल नसीब का "

अजीब है खेल नसीब का ,  
टूटता है सपना मज़दूर का | 
मासूमियत से भरा चेहरा है,  
यह बात बहुत ही गहरा है | 
उस घर ने सबको मजबूर बना दिया,  
पैदा हुआ सबको  मज़दूर बना दिया | 
वहाँ भी सपना सजा दिया,  
आखिर में आँसुओं को मिटा दिया | 
यह बात है एक गरीब का,  
अजीब है खेल नसीब का | 
टूटता है हर सपना मजदूर का | | 

कवि : अखिलेश कुमार ,  कक्षा : 8th , अपना घर

                                                                                      


कवि परिचय : यह है अखिलेश कुमार जो की एक मजदूर के नसीब के बारे एक कविता के माध्यम से उनके नसीब को दर्शाया है | अखिलेश पढ़ाई में बहुत ही अच्छे हैं | अखलेश को गणित में बहुत ही रूचि है | 

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