" खेल नसीब का "
अजीब है खेल नसीब का ,
टूटता है सपना मज़दूर का |
मासूमियत से भरा चेहरा है,
यह बात बहुत ही गहरा है |
उस घर ने सबको मजबूर बना दिया,
पैदा हुआ सबको मज़दूर बना दिया |
वहाँ भी सपना सजा दिया,
आखिर में आँसुओं को मिटा दिया |
यह बात है एक गरीब का,
अजीब है खेल नसीब का |
टूटता है हर सपना मजदूर का | |
कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह है अखिलेश कुमार जो की एक मजदूर के नसीब के बारे एक कविता के माध्यम से उनके नसीब को दर्शाया है | अखिलेश पढ़ाई में बहुत ही अच्छे हैं | अखलेश को गणित में बहुत ही रूचि है |
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