" हंस लो हसने वालों,"
हंस लो हसने वालों,
करो घृणा करने वालों |
पर दिल का दुःख नहीं,
समझ पाओगे पैसा वालों |
दुःख की धरा को लेकर मैं निडर रहता हूँ,
जुल्म करो या सितम
इस मिटटी की शरीर को लिए रहता हूँ |
कब तक हुक्म चलाओगे,
समाज को बेवकूफ बनाओगे |
चारो तरफ है पैसा का धंधा,
पैसे के लालच में लोग है अँधा |
जरूर उठेगा कभी अच्छा,
कानून भारत का डंडा |
कवि : विक्रम कुमार , कक्षा :8 , अपना घर
कवि परिचय : यह है विक्रम जो की बिहार के रहने वाले हैं और अभी अपना घर में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | विक्रम को समाज से जुडी बुराइयों को ख़त्म करने के लिए उससे जुडी कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है |
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