गुरुवार, 6 सितंबर 2018

कविता : ये खुला आसमान है अपना

" ये खुला आसमान है अपना "

ये खुला आसमान है अपना ,  
जिस पर सजाना है सपना |
हर एक दिन हो अपना ,  
जिस पर हक़ हो अपना | 
जीने और मरने की हो आज़ादी ,  
जाति धर्म में नहीं करेंगे बर्बादी |
जिस जहाँ में कुछ कर सकते है ,  
एक दूजे के साथ रह सकते है |
मन में सदा जिज्ञासा हो ,  
एक ऐसा अपना जहां हो | 
जिस पर सपने अपने हो ,  
एक ऐसा जहां हो | 
जहां तुम और हम हो | | 

कवि : प्रांजुल कुमार,   कक्षा : 9th ,  अपना घर 


कवि परिचय : यह हैं प्रांजुल जो की कक्षा 9th के छात्र है और अपना घर में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | प्रांजुल को कविताएं लिखने का बहुत शौक है | यह बड़े होकर एक महान व्यक्ति बनने  के साथ -साथ एक इंजीनियर बनना चाहते हैं | 

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