शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

कविता : हवाओं के झरोके में

" हवाओं के झरोके में "

चलती हुई हवाओं के झरोके में,
कुछ तो करना होगा इस मौके में | 
देखते देखते गुजर जाएंगे ये दिन,
जब तुम भविष्य की राहों में रहोगे | 
तब याद आयेंगें ये बीते हुए दिन, 
लेकिन तुम्हें सपना करना है रंगीन | 
परिश्रम करना होगा तुम्हें दिन -रात, 
पता नहीं चलेगी बीते हुए बात | 
ये हवाएँ तुम्हारे जज्बों को उड़ाएगी, 
कोशिश है ये तुम्हारे जीवन को बनाएगी | 
चलती हुई हवाओं के झरोके में,
कुछ तो करना होगा इस मौके में | 

कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर


कवि परिचय : यह हैं अखिलेश माँझी जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | अखिलेश के माता - पिता ईंट भट्ठों में काम करते हैं | अखिलेश बड़े होकर एक कविकार और वायुसेना में जाना चाहते हैं | यह कविता बहुत ही अच्छे लिखते हैं | 

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