सोमवार, 9 अप्रैल 2018

कविता : आँखों के ख्वाब

" आँखों के ख्वाब " 

नन्हें आँखों के ख्वाब चूर हो गया , 
क्योंकि मैं उस लम्हें से दूर हो गया | 
प्यारी सी आँखों में ,जिसमें ख्वाब थे,
जिसमें सपने सजे थे, नींद न आने की |  
आज वो खुद से नाराज हैं, 
बात करता है सो जाने की | 
खुद को सम्भालनें में थोड़ा समय लगा,
और फिर से एक नया सपना सजा | 
जिसके रास्ते लम्बे हैं समय कम है, 
इसमें वही निकल पाता , जिसमें दम है  |  

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 


कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार जो की बिहार के रहने वाले हैं , पढ़ने में बहुत अच्छे हैं और खेल भी बहुत अच्छा खेलते हैं | देवराज जीवन में कुछ बनना चाहते हैं इसीलिए बहुत मन लगाकर पढ़ाई करते हैं | कवितायेँ लिखने के साथ साथ डांस भी कर लेते हैं | 

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