" मैं वो बहता हवा नहीं जो "
मैं वो बहता हवा नहीं जो,
मैं वो बहता हवा नहीं जो,
हिमालय से टकराकर मुड़ जाता हूँ |
मैं वो ठण्डा मौसम नहीं,
पल भर में बदल जाता हूँ |
मैं तो वो बंदा हूँ जो,
जिंदगी की राह में |
लाखों सपने सजाता हूँ,
क्या करू वो सपनों को |
जिसको मैंने सजाया है,
उन सपनों के वजह से ही |
यहाँ तक मेहनत से आया हूँ,
निगाहें मेरी उन राहों पर |
जो मेरी जिंदगी को सरल बनाया,
आने वाले कल के दिन |
खूब रौनक लायगा | |
नाम : देवराज कुमार , कक्षा : ७थ, अपनाघर
1 टिप्पणी:
वाह....
बेहतरीन
सादर
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