मंगलवार, 16 नवंबर 2010

कविता :बरसात में

बरसात में

बरसात के महीने में ,
कागज़ की नाव बनाने में ....
पूरा महीना बीता पानी की बूंदों से ,
आसमानों में बादलों के गर्जन से ....
मेढक टर्र-टर्र कर निकले धरती से ,
पपीहा आवाज करता ऊपर बैठा पेड़ों से ....
कलियाँ खिली हैं हर डाली में ,
मछलियाँ तैर रहीं हैं नाली में ....
झूम-झूम कर चले पुरवइया ,
नदिया देखा तो उस पर तैरे नवैया की नवैया ....
राही को बैठा देख नवैया में ,
नाव को पाने के लिए कूद पडा पानी में ....
पानी था हल्का नरम-गरम ,
नाव पकड कर चढ़ गये उस पर हम ....
नाव को देखा तो वह बिल्कुल खाली थी ,
मैं स्कूल में बैठा इस सोच में खोया था
....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

4 टिप्‍पणियां:

ASHOK BAJAJ ने कहा…
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ASHOK BAJAJ ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है .लेकिन बरसात का मौसम अब ख़तम हो चूका है ,अब शरद ऋतु है ,गरम कपडे पहन कर ही स्कूल जाना . बहुत बहुत शुभकामनाएं .

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

छप-छप ... बरसात की सुंदर कविता ....

रानीविशाल ने कहा…

बहुत अच्छी लगी बरसात की कविता ....!!
अनुष्का