शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

कविता :बन्दर दांत दिखावे

बन्दर दांत दिखावे

एक बन्दरिया नाच दिखती ,
बन्दर खड़े - खड़े दांत दिखाता....
मदारी रोज पैसा कमाता,
बन्दरिया बन्दर को रोज चिढ़ाती.....
एक दिन बन्दर बैठा था एठा,
बन्दरिया बोली ले खाले भांटा....
बन्दर चिढ़कर गुस्से में बोला,
चुप हो जा वरना जाग जायेगा मेरे अन्दर का शोला....
फिर भागेगी बरत के पास,
जहा पे खायेगी तू छोला.....
छोला के संग होगा पुलाव का चलाव,
तू खायेगी तो हो जायेगा बवाल....
मैं कर दुगा दिखाए बरत में धमाल,
लोग कहेगे क्या हैं इसका कमाल.....
एक बन्दरिया क्या नाच दिखावे,
बन्दर खड़े -खड़े दांत दिखावे.....
लेखक :मुकेश कुमार
कक्षा :९
अपना घर, कानपुर

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

Bahut sundar baalsulabh rachna...
Haardik shubhkamnayne