रविवार, 10 अक्टूबर 2010

कविता रेल चली

रेल चली
रेल चली रेल चली ,
छुक छुक करती रेल चली ....
डग मग करती रेल चली,
एक डिब्बे में पहिये होते चार....
लोग बैठे होते एक हजार,
उसमे से आधे होते गरीब....
ज्यादा होते हैं अमीर,
रेल चली रेल चली....
लेख़क चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

3 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियाँ

i like train very much

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

गरीब से ज्यादा अमीर,
ये कौन से देश की ट्रेन चली ?
भारत को एक पल में अमीर कर दिया,
खूब चन्दन कुमार की पेन चली ...

लिखते रहिये छोटे उस्ताद ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चन्दन कुमार जी को बधाई!
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आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/22.html