सोमवार, 20 जुलाई 2009

कविता:- कोई कुछ सुनता नही

कोई कुछ सुनता नही....
हम जगा रहे थे, कोई जागे तो।
हम डर रहे थे, कोई डरे तो।।
हम बाँध रहे थे, कोई बंधें तो।
हम रुला रहे थे, कोई रोये तो॥
हम हंसा रहे थे, कोई हंसे तो।
हम पढ़ा रहे थे, कोई पढ़े तो॥
हम लिखा रहे थे, कोई लिखे तो।
हम नचा रहे थे, कोई नाचे तो॥
हम घुमा रहे थे, कोई घूमे तो।
हम नहला रहे थे, कोई नहाये तो॥
हम खिला रहे थे, कोई खाए तो।
हम बुला रहे थे कोई आए तो॥
हम मुस्करा रहे थे, कोई मुस्कराए तो।
हम सुला रहे थे, कोई सोये तो॥

लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा , अपना घर