बुधवार, 15 जुलाई 2009

कवि़त:- अंगूठा

अंगूठा
अंगूठा है कितना अच्छा
साथ है देता हरदम सच्चा
सब अंगुलियों से है मोटा
नही निकलता कभी ये खोटा
अगर अंगूठा ये होता
जीवन कितना मुश्किल होता॥
ये है जीवन का किरदार
अँगुलियों का है सरदार
अँगुलियों से सब खाते है
अपन काम निपटाते है

लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ७, अपना घर

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर रचना .. सचमुच अंगूठे के बिना काम नहीं होता !!

arkajesh ने कहा…

वाह ! वाह! बहुत बढिया !
जब हम किसी को हैं चिढाते
तो भी अंगूठा हैं दिखाते ।