अंगूठा
अंगूठा है कितना अच्छा।
साथ है देता हरदम सच्चा॥
सब अंगुलियों से है मोटा।
नही निकलता कभी ये खोटा॥
अगर अंगूठा न ये होता ।
जीवन कितना मुश्किल होता॥
ये है जीवन का किरदार।
अँगुलियों का है सरदार॥
अँगुलियों से सब खाते है ।
अपन काम निपटाते है ॥
अंगूठा है कितना अच्छा।
साथ है देता हरदम सच्चा॥
सब अंगुलियों से है मोटा।
नही निकलता कभी ये खोटा॥
अगर अंगूठा न ये होता ।
जीवन कितना मुश्किल होता॥
ये है जीवन का किरदार।
अँगुलियों का है सरदार॥
अँगुलियों से सब खाते है ।
अपन काम निपटाते है ॥
लेखक: ज्ञान कुमार, कक्षा ७, अपना घर
2 टिप्पणियां:
सुंदर रचना .. सचमुच अंगूठे के बिना काम नहीं होता !!
वाह ! वाह! बहुत बढिया !
जब हम किसी को हैं चिढाते
तो भी अंगूठा हैं दिखाते ।
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