सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

कविता : हर पल सुहाना लगता है

" हर पल सुहाना  लगता है "

हर पल सुहाना  लगता है,
हर कल बेगाना लगता है | 
हर सुबह नयी लगती है,
हर मंज़िल नज़दीक लगती है | 
हर सपना सच लगता है,
हर घर पुराना लगता है | 
ख्वाइश पर खेलना भी बेगाना लगता है,
तारों का टिमटिमाना सुंदर लगता है |
बच्चों की तरह खिलखिलाना अच्छा लगता है,
क्योंकि हर पल सुहाना लगता है |  

कवि :  कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है | कुलदीप छत्तीसगढ़  के रहने वाले हैं | कुलदीप को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | कुलदीप डांस  भी अच्छा कर लेते हैं | कुलदीप को पढ़ना , खेलना और अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेना बहुत अच्छा लगता है |  

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