" छोड़ दिया तूने ये देश "
क्या आशा करके छोड़ दिया तूने ये देश,
जहाँ पड़ा है कचरों का ढेर |
जिसको तूने आज़ाद करवाया,
उसने तुझे इस मन से हटाया |
प्रदूषित है यह हवा और पानी,
बिलक - बिलक मर रहे हैं प्राणी |
क्या आशा करके छोड़ दिया तूने ये देश,
जहाँ पड़ा है अत्याचारों का ढेर |
हर इंसान है डरा सहमा,
तब भी उसे शांत है रहना |
तुम थे इस देश की शान,
तुमको खोकर हो गए अनजान |
क्या आशा करके छोड़ दिया तूने ये देश,
जहाँ पड़ा है कचरों का ढेर |
कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक है "छोड़ दिया तूने ये देश "| कुलदीप ने यह कविता उन लोगों के लिए लिखी है जो इस भ्रम में आकर यह देश छोड़ देते हैं की यहाँ गन्दगी और अर्थव्यवस्था फैली हुई है लेकिन कभी यहाँ की संस्कृति की गहराइयों में नहीं जातें है की यहाँ की संस्कृति कितने वर्ष पुरानी है |
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