" इन्सां सोच "
बदल रहा है जमाना,
बदल रही है इन्सां सोच |
बढ़ रही है जनसंख्या,
बढ़ रहीं है तकनीकी खोज |
पुराणी सोच को भुलाकर,
भीड़ - भाड़ की जिंदगी में आकर |
जीवन की रेस में दौड़ रहे है,
गिर रहे , फिसल रहे और
वक्त आने पर संभल रहे है |
घड़ी की सुई बढ़ रही है,
पल - पल वक्त बदल रहा है |
मन तो मचल रहा है,
पर सोच इन्सां को बदल रहा है |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | प्रांजुल पढ़ लिखकर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और गरीब बच्चों की मदद करना चाहतें हैं |
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