" खुले आसमान के जैसा "
खुले आसमान के जैसा,
मौसम के बौछार जैसा |
पक्षियों की चहचहाहट ,
फूलों की महकाहट |
सभी को ये अच्छा लगता,
खुले आसमान के जैसा |
बादल बन जाते है काले,
कलियों की यह कोमल डालें |
हो रही हैं बूंदों का बौछार,
लगते हैं मोतियों का भंडार |
ये मोतियों ने कर डाली हरियाली,
छा गई दुनिया में हरियाली |
कवि : संजय कुमा , कक्षा : 8th , अपना घर
कवि परिचय : यह हैं संजय कुमार जिनको कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अच्छी कवितायेँ भी लिखा करते हैं | संजय झारखण्ड के रहन वाले हैं लेकिन ये बचपन से ही कानपुर में रह रहे हैं और अपना घर में पढ़ाई कर रहे हैं | पढ़ाई में हमेशा कोशिश करते रहते हैं |
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