अपनी भाषा को बढ़ाएं
अपनी भाषा दूर करे सबकी निराशा ,
सबके मन में एक ही आशा .....
मिल जुलकर सब रहें ,
धारा जैसे नदिया की बहें .....
कल-कल करे नदिया की धारा,
समुंदर का पानी है खारा ....
समुंदर के पानी का रंग नीला-नीला ,
पानी के ऊपर बैठा था एक गुबरैला ....
हम सब मिलकर रहें या न रहें ,
नदियाँ की धारा जैसे क्यों बहें....
सब कोई अपना-अपना सोचते हैं ,
एक दूसरे को सब आपस में लूटते हैं ......
अपनी भाषा दूर करे सबकी निराशा ,
सबके मन में एक ही आशा .....
मिल जुलकर सब रहें ,
धारा जैसे नदिया की बहें .....
कल-कल करे नदिया की धारा,
समुंदर का पानी है खारा ....
समुंदर के पानी का रंग नीला-नीला ,
पानी के ऊपर बैठा था एक गुबरैला ....
हम सब मिलकर रहें या न रहें ,
नदियाँ की धारा जैसे क्यों बहें....
सब कोई अपना-अपना सोचते हैं ,
एक दूसरे को सब आपस में लूटते हैं ......
लेखक : आशीष कुमार
कक्षा : 9
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें