कविता - हुए हम सफल
दर- दर की ठोकरे खाकर ,
हम हुए घर से बेघर .....
न मिली हमें कोई मंजिल,
हमेशा होते गए विफल .....
जो सोचा वह हुआ नहीं ,
जो न सोचा वही हुआ .....
जिसे पाना चाहा वह न मिला,
जिसे न चाहा वही मिला .....
जिस रास्ते से गया पाये कांटे ही कांटे,
जितने भी दुःख मिले किसी ने न बांटे ......
दुःख के गमों को सहकर मिली एक पहल ,
जिस पहल से हुए हम सफल ........
दर- दर की ठोकरे खाकर ,
हम हुए घर से बेघर .....
न मिली हमें कोई मंजिल,
हमेशा होते गए विफल .....
जो सोचा वह हुआ नहीं ,
जो न सोचा वही हुआ .....
जिसे पाना चाहा वह न मिला,
जिसे न चाहा वही मिला .....
जिस रास्ते से गया पाये कांटे ही कांटे,
जितने भी दुःख मिले किसी ने न बांटे ......
दुःख के गमों को सहकर मिली एक पहल ,
जिस पहल से हुए हम सफल ........
लेखक - आशीष कुमार
कक्षा - 9 अपना घर , कानपुर
3 टिप्पणियां:
Bacchon ki kavitaein sunkar bahut accha lagta hai....... humein bahut garv hai ki aise pyare bacchon ke saath kuch samay bitane ko mila.....
Ruchi didi
बहुत बढिया.
कृपया जारी रखें.
और पोस्ट करते रहें.
अयंगर.9425279174,
कोरबा, छत्तीसगढ़.
http://www.laxmirangam.blogspot.com भी देखें.
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