बच्चा
वे कहते है बच्चा ,
हम में, तुम में कौन है? अच्छा.....
किलकारी मार कर हंसना है ,
गोद में कभी नहीं आता हैं.....
अन्दर- अन्दर मुस्काता हैं ,
तन का हैं कितना अच्छा .....
मुस्काता है मन के अन्दर ,
भेद भाव बिलकुल नहीं समझता.....
लगा हैं लार चुवाने में ,
कभी नहीं हम उसको लेते हैं.....
हमेसा गोद को रोता हैं ,
वे कहते हैं बच्चा ......
वे कहते है बच्चा ,
हम में, तुम में कौन है? अच्छा.....
किलकारी मार कर हंसना है ,
गोद में कभी नहीं आता हैं.....
अन्दर- अन्दर मुस्काता हैं ,
तन का हैं कितना अच्छा .....
मुस्काता है मन के अन्दर ,
भेद भाव बिलकुल नहीं समझता.....
लगा हैं लार चुवाने में ,
कभी नहीं हम उसको लेते हैं.....
हमेसा गोद को रोता हैं ,
वे कहते हैं बच्चा ......
लेखक - जीतेन्द्र कुमार
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर
2 टिप्पणियां:
सुंदर कविता ....
आज लार चुआ रहा है, कल देश के आंसू पोछेगा!
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