कविता - शिक्षा अधिकारी
ये कैसे हैं शिक्षा अधिकारी,
केवल अपनी करते हैं खातिदारी .....
हर महीने और सालो में ,
नयी- नयी किताबे चलाते हैं....
एक दो पाठ बादल कर ,
पुरानी किताबो से नयी बनाते हैं ....
और इससे पैसा खूब कमाते हैं ,
पुस्तक किताबे हो गयी महंगी .....
किताब खरीदने के लिए कंहा से लाए इतना पैसा,
जो सौ रुपये रोज कमाता हैं उससे जा कर पूछो......
कि वह किताब कैसे लता हैं ?
ये कैसे हैं शिक्षा अधिकारी,
केवल अपनी करते हैं खातिदारी .....
हर महीने और सालो में ,
नयी- नयी किताबे चलाते हैं....
एक दो पाठ बादल कर ,
पुरानी किताबो से नयी बनाते हैं ....
और इससे पैसा खूब कमाते हैं ,
पुस्तक किताबे हो गयी महंगी .....
किताब खरीदने के लिए कंहा से लाए इतना पैसा,
जो सौ रुपये रोज कमाता हैं उससे जा कर पूछो......
कि वह किताब कैसे लता हैं ?
लेख़क - मुकेश कुमार
कक्षा - १० अपना घर कानपुर
कक्षा - १० अपना घर कानपुर
1 टिप्पणी:
bahut kub
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