गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

कविता: ग्लोबल वार्मिंग........

ग्लोबल वार्मिंग........

बस, कार, ट्रक सभी चलाते है
उससे वातावरण गन्दा करते है॥
यदि वातावरण साफ़ है रखना।
तो धुआँ रहित साधन प्रयोग करना
क्योकि हो रहा है ग्लोबलवार्मिंग।
यह है सभी के लिए वार्निंग॥
सभी को है यदि बचाना
हर इंसा पेड़ खूब लगाना॥
पर्यावरण पर पड़ता रहा जो खतरा।
नहीं बचेगा इंसा का एक भी कतरा॥

लेख़क: आशीष कुमार, कक्षा , अपना घर

कविता: एक नया देश बना दो .....

एक नया देश बना दो .....

चाँद से सूरज को मिला दो।
दिलो में जमी बर्फ पिघला दो॥
मै बहुत जोर से प्यासा हूँ।
मुझे थोड़ा पानी पिला दो॥
जमी को आसमां से मिला दो।
दिल की हर नफरत भुला दो॥
पर्दे तो हिलते ही है हवाओ से।
ताकत है तो दीवारों को हिला दो॥
बादल को बादल से लड़ा दो।
आकाश में बिजली चमका दो॥
क्योकि ये जमी है बहुत प्यासी।
इसे जी भर पानी पिला दो॥
हर भरे गोदामों को तोड़ दो।
अनाजों की बोरियां खोल दो॥
हर कोई है यंहा पर भूखा।
हर भूखे को खाना खिला दो॥
सत्य और न्याय को जगा दो।
शांति और प्यार फैला दो॥
हर कोई जी सके सुख से।
ऐसे एक नया देश बना दो॥

लेख़क : आशीष कुमार, अपना घर, कक्षा 8

कविता: पागल है क्या इंसा ओ ....

पागल है क्या इंसा ....

पागल है क्या इंसा ओ।
जो देता सबको दुःख ओ॥
परेशानी है क्या उसकी।
दिखता है क्यों हरदम दुखी
उसकी परेशानी को कौन उभारे।
जो हो जाये वो सबके सहारे॥
पागल है क्या इंसा ओ।
जो देता सबको दुःख ओ॥

लेख़क: ज्ञान कुमार, कक्षा ७, अपना घर

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

कविता: अपने देश के नेता...

अपने देश के नेता...

है अपने देश के नेता ऐसे।
देखो खाते जनता का पैसे॥
घोटाले ये खूब है करते।
नहीं किसी से अब ये डरते॥
अरबो का है किया घोटाला।
जनता को भूखो मार डाला॥
नेता मिलकर करे पैसो का हाजमा।
स्विस बैंक में करते सारा पैसा जमा॥
अगर ये सारा पैसा वापस जाये।
देश की जनता माला-माल हो जाये॥
नेताओं की अब तो मिलकर करो दवाई
भ्रष्ट है जो भी नेता उनकी करो सफाई
है अपने देश के नेता ऐसे।
देखो खाते जनता का पैसे

लेख़क: सागर कुमार, कक्षा ७, अपना घर

कविता: वे कुछ बनने आये है ....

वे कुछ बनने आये है ....

घुस- घुस कर ट्रेनों में।
लोग ही लोग आये है॥
वे अपने बड़े-बड़े बैगों में।
किताबे भर-भर लाए है॥
वे इंजिनियर बनने आये है।
वे पी० एच० डी करने आये है॥
वे डाक्टर बनकर जायेगें।
फिर वापस लौट के आयेंगे
अब प्रोफ़ेसर बनने आयेंगे
अपने को बदल कर आयेंगे॥
वे अब अंग्रेजी ही बोला करते है।
वे शायद अब हिंदी से डरते है॥
हिंदी में अब लिख नहीं पाते।
हिंदुस्तान में जी नहीं पाते
वे किताबे भर - भर लाये थे।
अब रुपया भर-भर ले जाते है॥
जो ट्रेनों में कभी आये थे।
आज प्लेनों में ही जाते है॥
घुस- घुस कर ट्रेनों में।
लोग ही लोग आये है॥
वे अपने बड़े-बड़े बैगों में।
किताबे भर-भर लाए है॥


लेख़क: अशोक कुमार, कक्षा , अपना घर
"संपादक ", बाल सजग

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

प्याज की बात निराली ....

प्याज की बात निराली ....
कहते है आलू सब्जी का राजा है।
मगर प्याज ने बजाया सबका बाजा है॥
प्याज की बात निराली है।
लेकिन इसे खाना अब खयाली है॥
प्याज बिना सब स्वाद है सूना।
जैसे पानी बिन तालाब है सूना॥
प्याज की बढती इस महगाई से।
प्याज बिक रहा सरकारी दुकानों से॥
सब जनता हो गई है बेहाल
क्या होगा अब इस देश का हाल॥
जो पड़ गया है प्याज का आकाल।
यूं लगता है देश में गया भूचा

लेख़क: सागर कुमार, कक्षा ७, अपना घर

रविवार, 26 दिसंबर 2010

कविता: सर्दी का ये मौसम...

सर्दी का ये मौसम.....

सर्दी का ये मौसम बड़ा ही ठंढा- ठंढा।
फिर भी टीचर मारे बड़े जोर से डंडा॥
डंडा पड़ते ही अंगुली अकड़ जाती।
जब हाथों में गर्मी पड़ जाती॥
तब दर्द वह हमको लगती ।
अंगुलिया दर्द से हमें तड़पाती॥
मौसम तो है ये सबसे अच्छा।
पर ठंढ़ाती है हर एक कक्षा॥
अगर सर्दी का मौसम न आता।
तो स्वेटर, जैकेट पहनने को पछताता।।


लेख़क: आशीष कुमार सिंह, कक्षा ८, अपना घर

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

कविता :बाँस के नीचे साँप

बाँस के नीचे साँप

बाँस के नीचे था एक साँप
जो बैठे वहाँ पर रहा था काँप
कंपन के कारण हिल रही थी गर्दन
जिसके कारण वहीं पे होने लगा अपरदन
अपरदन होने से टूटा एक बाँस
जिससे वहीं पर साँप की रुक गयी सांस
बाँस के नीचे था एक साँप
जो बैठे वहां पर रहा था काँप

लेख़क :ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

कविता; घरों में खुशहाली...


घरों में खुशहाली...

हवा चल रही है पुरवाई ।
खेतों में फैली है हरियाली ॥
कोयल की गीत है मधुर मतवाली।
सड़कों पर बज रहे है शहनाई ॥
घरों में बहुत है खुशहाली।
हवा चल रही है पुरवाई ॥


लेख़क: चन्दन कुमार, कक्षा ५, अपना घर

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

कविता: बचपन के रंग ....

बचपन के रंग ....

बचपन में माँ से लड़ना झगड़ना
उसके ही हाथों से रोटी फिर खाना
उसके साथ ही चलना और घूमना
गोदी में चढ़कर उसके मचलना
पापा से झट से पैसे ले लेना
पैसे से टाफी और इमली खाना
चिढ़ना-चिढ़ाना रोना-रुलाना
लुकना-छिपना हँसना-हँसाना
माँ की गोदी था प्यारा सा पलना
पकड़े जो कोई तो धोती में छिपना
ऐसा था प्यारा सा बचपन का रंग
गुजरा था जो मेरे माँ बाप के संग

अशोक कुमार , कक्षा , अपना घर

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

कविता: बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून

इस धरती पर है पानी की मारामार
तभी तो लोग करते पानी का व्यापार
क्या है ये गन्दा कोका कोला।
दिखने में लगता है काला-काला
गरीबो को लूटने वाला।
ये है लोगो की मौत का प्याला
फिर भी लोग इसी को पीते।
मना करो तो सीना तान के अड़ जाते
कहते मेरा पैसा हम कुछ भी पीये।
जीना हमें है हम कैसे भी जिए.. ?
पानी है धरतीवासियों का जीवन।
लोग सोचते है रूपए ही है जीवन
भला पानी हो इस धरती पर।
रुपया ही रुपया हो सबके घर
किसी नहीं ये सोचा होगा।
की बिन पानी तब क्या होगा
बिन पानी उगता अन्न बनता भोजन
तब असंभव हो जायेगा जीना सबका जीवन
पानी है तो ये धरती है जीवन सबको देती है
बिन पानी के रहने वालो की संख्या घटती है
अप्रैल, जुलाई, सितम्बर हो चाहे दिसंबर और जून
क्या होगा इनका मतलब जब बिन पानी सब सून


आशीष कुमार, कक्षा , अपना घर

बुधवार, 24 नवंबर 2010

कविता : स्कूल हमारा मांगे अब पैसा-पैसा

स्कूल हमारा मांगे अब पैसा-पैसा

स्कूल हमारा यह कैसा है ,
शिक्षा में अब तो पैसा ही पैसा है ....
शिक्षा में मिले सभी को मुनाफा ,
प्रिंसिपल साहब चेयर में बैठे हैं बाँध के साफा ....
एक दिन बैठे मुंह में उंगली डाले ,
दूर से देखा तो लगती आम की काली- काली डालें .....
न जाने उनके दिमाग में आया कहाँ से एक प्लान ,
बोले हम सब मिल बनाएं इस देश को महान .....
महान बनायेगें हम इसको कैसे ,
प्रिंसिपल से एक ने पूछा जैसे .....
सब अध्यापक बोले हाँ-हाँ कैसे ,
क्योंकि सेवा करने में भी लगते हैं पैसे .....
पैसों को तुम मारो गोली ,
भर दूंगा मैं तुम सब की झोली .....
येसी तो थी प्रिंसिपल की बोली ,
बोले स्कूल में बैठ लगाओ बच्चों की बोली ......
हम बच्चो को झूठा लालच देकर ,
अपने जाल में सभी को फंसाकर ......
भिजवा देगें दूर देश-विदेश ,
जिससे हम सब को मिलेगा कैस ही कैश .....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

सबके जीवन में प्रकाश हो

लक्ष्मी का हाथ हो ,

सरस्वती का साथ हो |

गणेश जी का निवास हो ,

माँ दुर्गा का आशीर्वाद हो |

माता - पिता के आशीर्वाद से ,

आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो |





नाम : लक्ष्मी देवी

कक्षा : 2th

सेन्टर : अपना स्कूल ,

पनकी सेन्टर

सोमवार, 22 नवंबर 2010

कविता : होशियार डंडी

होशियार डंडी
एक थी होशियार डंडी,
उसका नाम था सिखंडी.....
पेड़ के ऊपर से गिरी,
पानी में चलते थी मारी- मारी.....
जगह- जगह शैर करने निकल पड़ीं,
पानी में सब को देखे खडी -खडी.....
उसने एक आवाज सुनी,
कोयल गाना गा रही थी......
उसका मन बहला रही थी,
डंडी उसकी तारीफ करना चाह रही थी......
पर कुछ कह न पाई ,
आगे चल कर उसने एक गिलहरी को देखा......
उसके शरीर में खिची थी तीन रेखा,
आगे चली तो उसको मिला एक मेढक......
उसके शरीर में थी एक रेखा,
वह बैठकर कविता लिख रहा था......
डंडी को सुना रहा था,
मन्द- मन्द मुस्का रहा था.....
पर डंडी मुस्का न पाई,
और आगे बढ़ गई.....
उसने एक गुलाब का फूल देखा ,
जो सुगन्ध दे रहा था.....
हवा में झूल रहा रहा,
मन्द- मन्द मुस्का रहा रहा था....
एक थी होशियार डंडी ,
उसका नाम था सिखंडी......
लेख़क: मुकेश कुमार
कक्षा : ९
अपना घर , कानपुर

शनिवार, 20 नवंबर 2010

कविता :सावधान तुम रहना

सावधान तुम रहना

सुनों-सुनों हे भाई बहना ,
हरदम सावधान तुम रहना ....
गाँव भी बनें हैं अब तहखाना ,
सुरक्षित नहीं किसी का बाहर जाना ....
लूट-पाट के ढेर लगे हैं ,
लूटने वालों की भीड़ें लगी हैं ....
किसी की चेन लुटी है ,
तो किसी के गहनें चोरी ....
घरों का जिसने ताला तोड़ा है ,
उसने की है बड़ी हरामखोरी ....
मेरा तो बस एक ही कहना ,
भाई-बहनों सावधान तुम रहना ....
चोर लगें हैं आपके पीछे ,
ख़तरा मंडराता ऊपर नीचे ....
चोर है कोई बड़ा ही शातिर ,
वह करता रहता आपके घर की जांचे ....
तुम सब मिलकर लगाओ एक जुगत ,
जिससे चोर यहाँ से जावे भागत-भागत ....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

कविता :बरसात में

बरसात में

बरसात के महीने में ,
कागज़ की नाव बनाने में ....
पूरा महीना बीता पानी की बूंदों से ,
आसमानों में बादलों के गर्जन से ....
मेढक टर्र-टर्र कर निकले धरती से ,
पपीहा आवाज करता ऊपर बैठा पेड़ों से ....
कलियाँ खिली हैं हर डाली में ,
मछलियाँ तैर रहीं हैं नाली में ....
झूम-झूम कर चले पुरवइया ,
नदिया देखा तो उस पर तैरे नवैया की नवैया ....
राही को बैठा देख नवैया में ,
नाव को पाने के लिए कूद पडा पानी में ....
पानी था हल्का नरम-गरम ,
नाव पकड कर चढ़ गये उस पर हम ....
नाव को देखा तो वह बिल्कुल खाली थी ,
मैं स्कूल में बैठा इस सोच में खोया था
....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :बरसात आयी

बरसात आयी
बरसात आयी बरसात आयी ,
झूम- झूम कर बरसात आयी.....
कड़- कड़ाती बिजली लायी,
धड़- धड़ाते बादल लायी .....
झूम- झूम कर बरसात आयी,
चारों ओर हरियाली लायी .....
कही घास कही धान लायी,
झूम- झूम कर बरसात आयी..... लेख़क : प्रकाश
कक्षा :
अपना स्कूल धमीखेड़ा,कानपुर

कविता : रोबोट

रोबोट
रोबोट होते है बड़े दिमाग के ,
रोबोट होते हैं अमर....
ये मानव क्या जाने,
रोबोट कब मिलजुल जाये .....
मानव को बना ले अपना चेला,
मानव ने रोबोट को इतनी दे दी हैं शक्ति .....
रोबोट हो हैं गए शक्तिशाली,
रोबोट किसी से नहीं डरते हैं.....
रोबोट मोबाइल से जब बाते करते ,
मानव रोबोट को देखते रह जाते....
लेख़क : रामसिंह
कक्षा :
स्वामी विवेकान्द ,कानपुर

सोमवार, 15 नवंबर 2010

कविता : कैसे होगा जीवन पार

कैसे होगा जीवन पार
कैसे होगा अब जीवन पार ,
सबके ऊपर है कुछ पैसे का भर....
इस पैसे का भार चुकाने के लिए,
कोई चोरी करता हैं ,और कोई मरता हैं.....
कैसे होगा अब जीवन पार,
इस जीवन को चलाने के लिए....
कोई कमाता हैं, और कोई गुलामी करता हैं,
कैसे होगा अब जीवन पार.....
लेख़क : ज्ञान
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

रविवार, 14 नवंबर 2010

कविता :हमारी मांगे पूरी करो

हमारी मांगे पूरी करो

आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....


लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

शनिवार, 13 नवंबर 2010

कविता : अच्छा बनना

अच्छा बनना
लोगों से मै विनती ,
एक ही बात मै उनसे करता....
पढ़-लिख कर अच्छा ,
कोई न अनपढ़ रहना....
लूट पात तुम कुछ न करना,
न ही किसी की हत्या करना....
लालच एक भी न करना,
चोरी से हरदम बचना....
पढ़-लिख कर अच्छा बनना,
कोई अनपढ़ रहना....
लेख़क : अशोक कुमार
कक्षा : , अपना घर

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

कविता: चलो रण भूमि पर

चलो रण भूमि पर

उठो मेरे भारत वासी,
करो न तुम अब देरी।
लेकर इस वतन की मिट्टी,
बांध लो अपनी मुट्ठी ।
अपने पथ पर चलते हुए ,
पहुचो रण भूमि पर।
आज दुश्मन है अपना ही कोई ,
जो देश को चला रहे है ।
जो लूट रहे है खसोट रहे है,
देश की मिटटी पानी को बेच रहे है।
आज करो तुम अपनी माटी की रक्षा,
चुकी खतरे में हैं आज अपनी यह भूमि।


लेख़क : अशोक कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता : क्यों निराश बैठा हैं

क्यों निराश बैठा हैं
क्या हम सोच सकते हैं,
उस पक्षी की आहट।
जो बैठा है उस वृक्ष की डाल पर,
उसे आहट से परवाह नहीं ।
ये मरने के लिए बैठा हैं,
या फिर किसी का इंतजार कर रहा हैं।
न जाने क्या सोच रहा हैं,
यह हमें पता नहीं।
क्यों , निराश बैठा हैं,
क्यों यूं उदास बैठा है।
लेख़क : अशोक कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता: प्रभात सौन्दर्य

प्रभात सौन्दर्य
सुबह का है ये मौसम सुहाना ,
अच्छा लगता हैं टहलने जाना.....
सूरज अपनी लालिमा बिखेरता,
फिर इस संसार को निहारता.....
पर्वतों के बीच से सूरज निकलता,
उसकी लालिमा को देख कर जी मचल उठता ......
और चिड़ियों का चहचहाना,
अच्छा लगता उनका यह गाना.....
ह्रदय को हरने वाली यह सुन्दरता,
देख यह सब कितना अच्छा लगता.....
सूरज की ये प्यारी किरणें,
जो पानी में लगती हैं गिरने....
सौन्दर्यता का प्रतीक यह प्रभात,
सबको अच्छी लगती यह बात....
लेख़क : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता : मानव भी दानव हो गया

मानव भी दानव हो गया
क्या हो रहा हैं इस संसार में ,
कैसा शोर मचा हैं इस संसार में ....
अब क्या होगा इस संसार का,
मैं सब यह सोच रहा हूँ .....
मानव
भी दानव हो गया हैं ,
अब खेत भी खलिहान हो गये ....
पहले खेतों में होती थी हरियाली,
मानव के अन्दर आ जाती थी खुशहाली .....
लेकिन अब कहाँ होती हैं हरियाली,
अब मानव की बात हैं निराली .....
लेख़क : ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

कविता: बाल दिवस

बाल दिवस
बाल दिवस हैं आने वाला,
चाचा नेहरू की याद दिलाने वाला....
चाचा नेहरू को बच्चे प्यार कराते हैं,
बाल दिवस तक याद रखते हैं....
चाचा नेहरू करते थे सबसे प्यार,
सब बच्चे करते थे उनसे अच्छा व्यहार....
बाल दिवस हैं आने वाला,
चाचा नेहरू की याद दिलाने वाला ....
लेख़क: चन्दन कुमार
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

सोमवार, 8 नवंबर 2010

कविता :अधिकार

अधिकार

जनमत निर्माण हमारा है ,
मानव-धिकार हमारा है ......
सूचना का अधिकार हमारा है ,
जन कल्याण हमारा है ......
जनता को शिक्षा की राह दिखलाता है ,
वह जनमत निर्माण कहलाता है ......
जहां सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक ,
एवं आर्थिक प्रदान किया जाता है ......
वह मानव-धिकार कहलाता है ,
सूचना का अधिकार हमारा है .......
सभी नागरिकों का प्यारा है ,

लेख़क :मुकेश कुमार
कक्षा : 9
अपना घर

रविवार, 7 नवंबर 2010

कविता :करें तैयारी अच्छी

करें तैयारी अच्छी

सो रहे हैं हम ,
रही है परीक्षा निकट .....
जागें और करें तैयारी ,
लायें परीक्षा में अंक अच्छे .....
जिससे खुश हो जाएँ सब ,
सो रहे हैं हम .....
रही है परीक्षा निकट ,

लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :8
अपना घर

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

कविता :विद्यालय जायेंगे जरुर

विद्यालय जायेंगे जरुर

विद्यालय जायेंगे जरुर ,
डांट पड़े या मार पड़े .....
बरसात में भीगेंगे खड़े-खड़े ,
विद्यालय जायेंगे जरुर .....
मार पड़े तो मार सहेंगे ,
चाहे जितना काम मिले .....
हम सब पूरा काम करेगें ,
विद्यालय जायेंगे जरुर .....
टीचर चाहे जितना डर दिखलायें ,
चाहे जितना कठिन पेपर बनाएं .....
उसको भी हम हल करेगें ,
विद्यालय जायेगें जरुर ......
हिंद निवासी हम मजदूर प्रवासी ,
हम बच्चे हैं हिन्दुस्तानी .....
संसार का उठाएंगे सारा भार ,
लेकर रहेंगे स्वतंत्रता का अधिकार ......
विद्यालय जायेंगे जरुर ....
इसकी उसकी चुगली नहीं करेंगे ,
हम सब मिलकर रहेंगे ......
इस देश पढ़ने का है सबको अधिकार ,
विद्यालय जायेंगे जरुर ......

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

कहानी :सपनों में परियाँ

सपनों में परियाँ

एक समय की बात हैबैजूपुर गाँव में जान नाम का एक लड़का रहता थावह प्रतिदिन स्कूल जाया करता थाउसको परियों की कहानी सुनने में बहुत पसंद थींवह जब भी सपना देखता,उसे सपने में परियाँ जरुर दिखतींउसका एक दोस्त बन्दर था,जिसका नाम जनारदन थाउन दोनों में बड़ी दोस्ती थीएक दिन जान स्कूल से वापस आया और आते ही बिस्तर पर जाकर सो गयाजान सोते हुये यह सपना देखने लगा की वह प्रथ्वी से बाहर,अपने परिवार से दूर,अपने दोस्त जनारदन के साथ वह परियों के देश में पहुँच गया हैवह और उसका दोस्त एक उडनतश्तरी में खड़े हैंऔर उनके आस पास कई परियाँ उड़ रही हैंअब वह दोनों अपने हाथों से चाँद-तारों को छू सकते थेतभी जान को भूख लगीउसने जनारदन से पूछा की क्या तुमको भूख लगी है?हाँ मुझे भी लगी हैजनारदन ने कहातभी वहां पर एक परी उनके लिए ढेर सारी मिठाइयां,फल और खाने की चीजें कई प्रकार की लेकर आयीउन दोनों ने जैसे खाना प्रारम्भ किया ही था,कि जान की माँ ने जान को सोते हुये से जगा दियाजान जैसे ही जगा,उसने देखा कि मैं तोअपने बिस्तर पर बैठा हूंउसका दोस्त जनारदन बाहर बैठा उसके साथ खेलने का इन्तजार कर रहा हैउसकी माँ ने कहा कि जाओ हाथ-मुंह धुल लो और अपने दोस्त के साथ खेलो जाकर,वह तुम्हारा इन्तजार कर रहा हैजान अपनी माँ से कहने लगा कि माँ अगर आप थोड़ी देर और उठाती तो मैं अपने दोस्त के साथ परियों के देश में अच्छा-अच्छा खाना खा लेता,मगर आपने उठा दियामाँ ने कहा अब सपने देखना छोड़ो और जाकर अपने दोस्त के साथ खेलो जाकरठीक है माँइतना कहकर जान अपने बिस्तर से उठकर,हाथ मुंह धुलकर अपने दोस्त जनारदन के साथ खेलने चला गया

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

कविता :एक गाय की प्यारी बछिया

एक गाय की प्यारी बछिया

एक गाय की बछिया नीली ,
आँखे थी उसकी पीली-पीली ....
दिखने में लगती छैल-छबीली ,
भागे तो लगती रंग-रंगीली ....
ताजी हरी घास को वो खाती ,
कभी-कभी वह उस पर सो जाती ....
उसकी माँ जब उसे बुलाती ,
मां-मां करती दौड़ी आती ....
सबको लगती थी वह प्यारी ,
इसलिए नाम था उसका रामप्यारी ....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

कहानी :छोटे भाई का कमाल

छोटे भाई का कमाल

एक गाँव में रामू और प्रकाश नाम के भाई रहते थेइन दोनों भाइयों में प्रकाश बड़ा भाई और रामू छोटा भाई थाएक दिन दोनों भाई गधा चराने के लिए जाते हैंचलते-चलते वे दोनों भाई घने जंगल में पहुँच जाते हैंउसी घने जंगल में एक बड़ा शेर रहता थारास्ते में दोनों को वही शेर मिल गयाउन दोनों भाइयों में बड़ा भाई डरने लगा, तो छोटे भाई ने कहा भैया डरो मत हम दोनों शेर से लड़ाई करते हैंजब शेर उन दोनों भाइयों पर लपका तो, भाई लड़ने लगे अंत में छोटे भाई ने छुरा निकाला और शेर को मार डालाऔर दोनों भाई गघे को लेकर घर वापस गये

लेख़क :चन्दन कुमार
कक्षा :5
अपना घर

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

कविता :बन्दर दांत दिखावे

बन्दर दांत दिखावे

एक बन्दरिया नाच दिखती ,
बन्दर खड़े - खड़े दांत दिखाता....
मदारी रोज पैसा कमाता,
बन्दरिया बन्दर को रोज चिढ़ाती.....
एक दिन बन्दर बैठा था एठा,
बन्दरिया बोली ले खाले भांटा....
बन्दर चिढ़कर गुस्से में बोला,
चुप हो जा वरना जाग जायेगा मेरे अन्दर का शोला....
फिर भागेगी बरत के पास,
जहा पे खायेगी तू छोला.....
छोला के संग होगा पुलाव का चलाव,
तू खायेगी तो हो जायेगा बवाल....
मैं कर दुगा दिखाए बरत में धमाल,
लोग कहेगे क्या हैं इसका कमाल.....
एक बन्दरिया क्या नाच दिखावे,
बन्दर खड़े -खड़े दांत दिखावे.....
लेखक :मुकेश कुमार
कक्षा :९
अपना घर, कानपुर

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

कविता : ईमान

ईमान

सारे शहर में मचा हैं शोर ,
चारो ओर छायी संकट की घटा घन घोर.....
कौन हैं ईमानदार कौन हैं बेईमान,
इसका पता लागाए कौन.....
मुझको तो सभी हैं दिखते इंसान ,
नहीं बना किसी के माथे पर कोई निशान.....
कि यह हैं ईमानदार या बेईमान,
न ही उसकी कोई और पहचान.....
यह जीवन जीना हैं बड़ा मुश्किल,
इसको जीने के लिए सुख दुख करना होगा तुम को शामिल....
नहीं किसी का जुल्म चलेगा और न ठेकेदारी,
चाहे जितना कठिन हो काम करेगे भारी से भारी....
इस जंग में रहने वाले सभी हैं इंसान,
नहीं किसी के आगे झुकना मन में यह लो ठान .....
न बनी हैं आन बनी हैं सबका ईमान,
ऐसा na करना काम जिससे हो सभी इंसान बेईमान .....
लेख़क : आशीष कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता : मैंने देखा घोंघा

मैंने देखा घोंघा


मैंने देखा घोंघा ,
नाम था नकली लॉग....
पानी में वह रहता था,
नहीं किसी से डरता था.....
तभी वहां आया एनाकोंडा,
तुरन्त निकला फोड के अण्डा....
अगर निगल जाता उसको,
उसका असली नाम था डिस्को...
घोघा बड़ा हुआ था जब,
अच्छे - अच्छे जानवर डरते थे सब.....
लेख़क : सोनू कुमार
कक्षा :
अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

कविता :सूरज मामा चन्दा मामा

सूरज मामा चन्दा मामा

कलम और कॉपी लेकर ।
बैठे जब हम टेबल पर ॥
आसमान की ओर देखा जब ।
कितने तारे चमक रहे थे तब ॥
चन्दा मामा घूम रहे थे ।
अर्धवृत्त आकृति लिए हुये थे ॥
चल रहे थे अपने पथ में ।
मगन हुए थे अपनी धुन में ॥
गयी रात जब हुआ सबेरा ।
पंछी गाया तब मुर्गा बोला ॥
सूरज मामा लेकर आये ।
साथ में अपने लाल घटाए ॥
गुम हो गए चन्दा मामा ।
लाल हो गये सूरज मामा ॥
चन्दा मामा कहीं सो गये ।
शायद सपनों में खो गए ॥
चन्दा मामा सूरज मामा ।
दुनियाँ घूमें आधा-आधा ॥
सूरज मामा जब-जब जागे ।
सारी दुनियाँ तब-तब भागे ॥

लेख़क :अशोक कुमार ,कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

कविता : काले -काले बादल छाये

काले- काले बादल छाये

काले- काले बादल छाये,
बरसात का मौसम लाये....
रिमझिम- रिमझिम पानी बरसा,
छायी हैं खेतों में हरियाली....
बरसात की हर बूंदों में,
छिपा हैं शरबत का मीठा पानी.....
किसान भाई इसका करते खूब उपयोग,
लगाया करते इस मौसम में धान खूब.....
बरसात की हर बूंदों में,
छिपा हैं शरबत का मीठा पानी ....
काले- काले बादल छाये,
बरसात का मौसम लाये...
लेख़क : सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

कविता :बन्दर बड़े जोर से बमका

बन्दर बड़े जोर से बमका

एक मदारी खेल दिखाता ,
बन्दर और बंदरिया को नचाता ....
बंदरिया लगाती ठुमके जितने ,
मदारी को मिलते पैसे उतने ....
बंदरिया ने लगाया जब ठुमका ,
तब बन्दर बड़े जोर से बमका ....
कभी लेटकर नाचे तो कभी उठकर ,
गुस्सा बैठा था उसकी नाक पर ....
बन्दर येसा नाच दिखाया ,
की लोगों ने पैसों का ढेर लगाया ....
मदारी के गालों में दो-चार थप्पड़ मार ,
बन्दर और बंदरिया दोनों हो गये फरार ....

लेख़क :आशीष कुमार ,कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

कहानी :देवता प्रकट हुये

देवता प्रकट हुये

एक बार की बात हैएक गाँव में बहुत से आदिवासी रहते थेउसी गाँव के पास ही एक घना जंगल पड़ता थाउसी जंगल में एक लड़की जंगल काटने जाया करती थीएक दिन जंगल काटते-काटते वह बहुत आंगे निकाल गयीजब उसको प्यास लगी तो वह पानी की खोज में इधर-उधर भटकने लगीतभी उसे अचानक तालाब दिखाई पड़ाउस तालाब में सुंदर-सुंदर मछलियाँ थीउस लड़की ने मछलियों को देखा और पानी पीकर अपनी प्यास बुझाईपानी,पीने के बाद वह मन में सोचने लगी,कि मछलियों को पकड़ कर अपने घर ले जाऊं तो कितना अच्छा होगावह लड़की अपने घर चली आयी। फिर मछलियाँ अपने मन में सोचने लगती हैं,कि उस लड़की ने हम सभी लोगों को देख लिया है,वह हम सभी मछलियों को पकड़ ले जायेगीतभी एक देवता प्रकट हुयेऔर बोले कि जो भी बात है, वह कल सुबह ठीक हो जायेगीइतनी बात कहकर देवता गायब हो जाते हैंकल ठीक सुबह मछुआरा मछलियों को पकड़ने आता है,तभी रास्ते में उसे एक भयानक राक्षस मिलता हैऔर उस मछुआरे को मार डालता हैतभी से उस तालाब में कोई नहीं आता थाऔर मछलियाँ आराम से रहने लगीं

लेख़क :लवकुश कुमार
कक्षा :
अपना घर


शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

कविता :काले-काले बादल छाए

काले-काले बादल छाए

काले-काले बादल छाए ,
बरसात का मौसम हैं लाये ....
रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी ,
खेत सब भर गये हैं खाली ....
बरसात के एक-एक बूंदों में ,
छिपा है शरबत का मीठा पानी ....
किसान भाई होते हैं होशियार ,
धान लगा देते हैं खूब हजार ....
काले-काले बादल छाए ,
बरसात का मौसम हैं लाये ....

लेख़क :सागर कुमार ,कक्षा :
अपना घर

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

कविता :जीवन की अमूल्य कहानी

जीवन की अमूल्य कहानी

इस धरती पर जिसने जन्म लिया
उसकी है एक अमूल्य कहानी
नहीं किसी ने गौर किया है
अपनी जीवन की कहानी को
सोच-सोच के न जाने कितने
सपने रखे थे उसने अपने मन में
नहीं किसी की वो सुनता था
करता था अपनी मनमानी
क्योंकि ओ था एक बच्चा
कर दी उसने अपनी नादानी
जब आयी उसकी जिम्मेदारी
हुई उसको बड़ी परेशानी
जब सोचा उसने अपनी कहानी
गिर पड़ा वह भूमि पर
दोबारा नहीं उठा वह बेचारा
हो गया खुदा को प्यारा

लेख़क :अशोक कुमार ,कक्षा-
अपना घर

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

कविता : मैंने उसे मारा गिल्ली

मैंने मारा उसे गिल्ली

एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
रंग था उसका काला,
लगती थी भोली -भाली....
चलाती थी ट्रेन जैसी,
लगती थी क्रेन जैसी...
जब भी वह सोती थी,
रात में वह रोती थी...
एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
मैंने उसे मारा गिल्ली,
वह पहुँच गयी दिल्ली....
एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
लेख़क : मुकेश कुमार
कक्षा
:
अपना घर , कानपुर

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

कविता बेसहारा

बेसहारा
कोई क्या जाने उनकी बात ,
रहना जिनका हैं फुटपाथ ....
चलते रहते सड़क सड़क पर,
थकते नहीं वे भटक भटक कर.....
गुजरती सड़क पर उनकी रातें,
करते नहीं लोग उनसे बाते....
बचपन से होते बेसहारा,
देता नहीं घर में कोई सहारा ....
मिट सकता हैं यह अभिशाप,
लोग जब देगे उनका साथ....
लेख़क समीर सिंह S.V.V.लोधर कानपुर

सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

कविता :यह था मुखिया का कहना

यह था मुखिया का कहना

आ गए इलेक्शन-आ गए इलेक्शन ,
मुखिया चले गाँव-गाँव वोट मांगन ....
हाथ जोड़े-पैर छुएं ,
सबके घर पर मुंह बनाए खड़े हुये ....
बोले दादी अम्मा वोट देना हमको ,
पेंशन,राशन सब दिलवाएंगे तुमको ....
झूंठ नहीं अब सच है कहना ,
सब वोट हमीं को देना सुन लो भाई बहना ....
मैं चुनाव जो जीता तो बनूंगा मुखिया ,
गावों में काम करवाउंगा बढिया से बढिया ....
नाली सड़क आदि सभी को बनवाऊंगा ,
विधवा पेंशन सबको दिलवाउंगा ....
दादी माँ आयीं बोली नहीं है घर में दाना ,
मेरे घर से उठवाकर लाओ बोरी राशन .....
यह था मुखिया का कहना ,
आ गए इलेक्शन-आ गए इलेक्शन .....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

कविता ताजी खबर

ताजी खबर
आज की ताजी खबर ,
उल्लू चोंच दबाकर भागा.....
नेता जी को गुस्सा आया,
ली फिर मदद पुलिस की....
नेता जी ने लड़ा मुक़दमा,
गये बेचारे हार.....
आज की ताजी खबर,
उल्लू चोंच दबा कर भागा.... लेख़क -अनुज कुमार
कक्षा-
स्कूल -आर.के .मिशन स्कूल कानपुर

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

कविता मोर हमारा

मोर हमारा
मोर हमारा कितना रंग बिरंगा ,
फुदुक फुदुक कर नाच दिखाता....
फुर्र फुर्र कर वह झट उड़ जाता ,
मोर हमारा कितना रंग बिरंगा ....
हमारे पास न आता वो,
न हमारे संग खेला करता ....
फुर्र फुर्र कर वह झट उड़ जाता ,
मोर हमारा कितना रंग बिरंगा .....
लेख़क चन्दन कुमार कक्षा ५ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

कविता कौन वीर

कौन वीर
कोहरा वीर न ,
बदल वीर सबसे....
बड़ी हैं सर्दी वीर,
सर्दी में सिकुड़ जाते ....
हैं ठिठुर जब हम,
जाते हैं सूरज को....
बुलाते हैं जब नहीं,
वह आता गुस्सा....
हमें आता.....
लेख़क सोनू कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता देंगे हम को सदा सहारा

देगे हम को सदा सहारा
सत्य पथ के हम रही ,
हम अच्छे बच्चे उत्साही.....
हँसी खुशी में सदा रहते,
झगड़ा कभी नहीं हम करते....
हँसते और हँसाते रहते,
अपना घर में हम.....
प्यार सभी से करते हैं,
कभी न रोते और रुलाते.....
सब के मन को सुख पहुंचाते,
सब के गीत बनेगे बच्चे....
सच्चे मन के अच्छे बच्चे,
सारा जग परिवार हमारा.....
देगे हम सबको सदा सहारा,
विजय दीदी का यही हैं नारा.....
सबको शिक्षा यह अधिकार हमारा.....
लेख़क प्रदीप कुमार अपना घर कानपुर

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

कविता क्या होगा उनका

क्या होगा उनका
बाढ़ के प्रभाव से ,
संसार के हर गाँव में ....
लोग हुये परेशान,
डूब गये उनके घर द्वार....
उसमे से कुछ डूब गये
उन्ही में कुछ बचे....
जो बचे वो हो गये बेघर,
जो बचे तो घूम रहे....
उनको लोग देख रहे,
जहाजो से कुछ खाने को पंहुचा रहे ....
वे पैकटो को ऊपर से लोक रहे,
लोकने में कुछ कुचल गये
कुचल कर वही मार गये
क्या होगा उनका.....
क्या मिलेगा उन्हें मुआवजा .....
लेख़क अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता गुडिया प्यारी

गुडिया प्यारी
क्या कहती हैं गुडिया प्यारी ,
क्या मागती हैं गुडिया प्यारी....
खाने को मागती हैं गुडिया प्यारी ,
ठुमुक ठुमुक कर नाचती हैं गुडिया प्यारी.....
सबका मन बहलाती हैं गुडिया प्यारी,
सब को लगती हैं गुडिया प्यारी.....
क्या कहती हैं गुडिया प्यारी ,
क्या मागती हैं गुडिया प्यारी....
लेख़क ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

कविता :तितली आई

तितली आई

तितली आई तितली आई ।
रंग-बिरंगी तितली आई ॥
फूलों पर वह जाती है ।
मुंह में रस भर लाती है ॥
मीठे गीत सुनाती है ।
सबका मन बहलाती है ॥
तितली आई तितली आई ।
रंग-बिरंगी तितली आई ॥

लेख़क :अजय कुमार
कक्षा :
अपना स्कूल

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

कविता रेल चली

रेल चली
रेल चली रेल चली ,
छुक छुक करती रेल चली ....
डग मग करती रेल चली,
एक डिब्बे में पहिये होते चार....
लोग बैठे होते एक हजार,
उसमे से आधे होते गरीब....
ज्यादा होते हैं अमीर,
रेल चली रेल चली....
लेख़क चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

कविता :समाज को मूरख कहते

समाज को मूरख कहते

ये समाज है बुराइयों का ,
नहीं ठिकाना किसी की बात का .....
कौन सही है,कौन है गलत ,
नहीं किसी के पास कोई सबूत .....
सबूत है पर गवाह नहीं ,
जिन्दगी की राह पर किसी की कोई परवाह नहीं .....
जिसको नहीं है कोई परवाह ,
उसी को कहते हैं लापरवाह .....
लापरवाही करना हैं बहुत खराब ,
लोगों के पैसे चोरी कर लोग पीते हैं शराब .....
समझदार भी नासमझ की बाते करते ,
नहीं किसी के वो आगे झुकते .....
बाते करना है बहुत असान ,
पर ये पता नहीं की कैसे करें सभी का सम्मान .....
पता भी होता तो ये क्या करते ,
यही समाज को मूरख कहते .....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

कविता किसी को महशुस न करते

किसी को महशुस कराते
खूब चले अपने पैरो से ,
थकते तो किसी न कहते शाम को ....
एवं चुप रहते हर दम,
अपने दर्द को छिपाते अपनी आखों से......
कुछ न कहते निकलते आंसू तो,
फिर अगले दिन वही करते,
चलते अपने पैरो से....
पहुचाते मंजिल के किनारे,
कुछ संकट होता तो किसी से कुछ न कहते......
अपना फैसला खुद अपने आप करते,
अपने बदन से अपने दर्द को.....
अपनी आँखों में लाते,
लेकिन उसे आंसू के सहारे न निकालते.....
उस दर्द को मुस्कराहट से निकालते,
अपना दर्द अपने आप में बाँटते.....
किसी को दर्द महशुस न कराते .....


लेख़क अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

कविता समय की बात

समय की बात
समय समय पर क्या होता,
हर गाँव शहर में आदमी रोता.....
कोई रोटी के लालच में,
कोई पैसो के लालच में .....
समय समय पर क्या होता,
हर गाँव शहर में आदमी रोता .....
आदमी भूख से ही मार जाता,
और पता नहीं क्या होता....
जिधर भी देखो उधर ही,
आदमी ही हैं रोता.....
लेख़क ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010

मरना ही हैं सरल
मुसाफिर चला हैं लेके अपने खाली हाथो को ,
तुम भी तो समझो मुसाफिर की इंसानियत को....
सफ़र हैं बहुत ही दूर,
पर उसकी ताकत हो चुकी हैं चूर....
मुसाफिर चला हैं अपना पेट भरने को,
पेट के वास्ते सभी को छोड़ा एस ज़माने को .....
किसी को छाया हैं अमीरी का नशा,
कंगाल वही हैं जो न देखे गरीबो की दशा....
मुसाफिर चाहे मारे चाहे भूखे ही तडपे ,
हर कोई उसको ही हदाकाए.......
पेट भरना बड़ा ही हैं मुश्किल,
इससे अच्चा मरना ही हैं सरल....
लेख़क आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

रविवार, 3 अक्टूबर 2010

कविता :वो हामिद कहाँ है

वो हामिद कहाँ है

मेला वही है ,
ईद वही है ....
चूल्हा वही है ,
दादी वही है ....
आज भी अगुंलियाँ ,
जलती दादी की हैं ....
आखों में उसके ,
समंदर भरा है ....
मगर आज अपना ,
वो हामिद कहाँ है ....
इस भीड़ में ,
वो खोया कहाँ है ....


लेख़क : महेश
अपना घर

कविता सही हमें नहीं पता

सही हमें नहीं पता
असमान हैं नीला नीला ,
कपडे पहने पीले पीले....
पानी बरसे होले होले,
असमान हैं क्या .....
हमें नहीं हैं पता ,
पानी क्यों बरता हैं....
बिजली क्यों गरजती हैं,
असमान हैं नीला क्यों....
यह हमें नहीं पता हैं,
यह हमारी मजबूरी हैं....
दूसरे हमें सताते हैं,
जो कोई भी पूछता हैं....
तो गलत बताते हैं ,
सही उत्तर हम नहीं जानते हैं....
असमान हैं नीला नीला,
कपडे पहने पीले पीले ....
लेख़क मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

कविता छोटे पौधे

छोटे पौधे
छोटे पौधे कितने अच्छे ,
फूल लागे हैं कितने ....
गेंदा गुलाब हैं फूल अनेक,
बगीचे में लगते हैं सब इक....
पौधे हमें लगते अच्छे,
कितने प्यारे कितने अच्छे ....
कलियाँ खिलती खिलता फूल,
छोटे पौधे कितने अच्छे.....
पौधे हमें लगते अच्छे ,
कलियाँ खिलती खिलता फूल ....
कितने अच्छे लगते फूल....
लेख़क धर्मेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

कविता :अरे यह जीभ भी अजीब

अरे यह जीभ भी अजीब

अरे भाई यह जीभ भी अजीब
नाक के भरोसे है
खुशबू बाहर से आती है
पानी से यह भर जाती है
अरे भई यह जीभ भी अजीब ।
जो वह आखों से देखती है
खाने को वह मांगती है
जब खाना मिल जाता है
तो pet भर जाता है
बड़ा मजा आता है

लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

शनिवार, 25 सितंबर 2010

कविता :सुनो-सुनो माताओं और बहनों

सुनो-सुनो माताओं और बहनों

सुनो-सुनो माताओं और बहनों ।
चोरो और लुटरों से बचकर रहना ॥
अपनी रक्षा खुद ही करना ।
पुलिश को तो है अब कुछ नहीं कहना ॥
उन्हें है अब बस ड्यूटी करना ।
चोर जब चोरी कर के भागता है ॥
तो पुलिश कुछ नहीं कर पाती है ।
जब चोर पकड़ जाता हैं ॥
आधा-आधा पैसा बट जाता है ।
सुनो-सुनो माताओं और बहनों ॥

लेख़क :सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

कविता देखो आसमान में उड़ रही पतंगे

देखो आसमान में उड़ रही पतंगे
देखो भाई कितनी रंग बिरंगी पतंगे ,
उड़ रही आसमान में ये सारी पतंगे....
आसमान में सभी पतंगों को उड़ाते...
जब पतंगे कट जाती हैं,
लडके सब दौड़ -दौड़ कर लूटने जाते....
नहीं इनकी होती कीमत जादा,
एक दो रुपये में मिल जाती अच्छी -अच्छी पतंगे...
लोग इनको खूब उड़ाते,
और बच्चे करते मौज मस्ती....

लेख़क चन्दन कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

सोमवार, 20 सितंबर 2010

कविता बचकर रहना

बचकर रहना
सुनो -सुनो व भाई बहना,
आई फ्लू से बचकर रहना....
आई फ्लू हैं एक ऐसी बीमारी,
सबको कर देती हैं हैरानी....
सुनो -सुनो व भाई बहना,
आई फ्लू से बचकर रहना....
साफ सफाई से रहना हर दम,
आई फ्लू को दूर भगाना....
सुनो -सुनो व भाई बहना,
आई फ्लू से बचकर रहना....
लेख़क सागर कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

कविता महात्मा गांधी

महात्मा गांधी

गांधी जी ने की थी जो लड़ाई,
मारी किसी को गोली दी गाली....
प्रेम और अहिंसा के बल से,
दिला दी उन्हों ने आजादी....
चले गए अंग्रेज छोड़ के ये देश ,
बापू हो गये दुनिया के प्यारे....
बापू ने बोली ग़ली -ग़ली पर एक ही बोली,
हिन्दुस्थान हमारा सबसे न्यारा....



लेख़क लवकुश कक्षा ७ अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

कविता :लगाओ दस पेड़ हर साल

लगाओ दस पेड़ हर साल

होगें जंगल,झरने, नदी और तलाब
और होगें ये मानव
उजड़े पेड़ होंगें और खेत खलिहान
जब ये प्रक्रति होगी
करो कोई येसा काम
जिससे प्रक्रति का हो नुकसान
येसी करो प्रतिज्ञा हर साल
लगाओ दस पेड़ हर साल


लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

कविता ऐसी कौन सी बात

ऐसी कौन सी बात
एक बात हैं बेनकाब,
जिसका नहीं किसी के पास जवाब.....
जवाब भी होता तो क्या करते,
डर के मारे इधर -उधर छिपते रहते....
यह बात जरा ध्यान से सुनो भाया,
हर बात के पीछे छिपी हैं काले धन की माया....
काला धन हो या मेहनत का पसीना,
किसी के आगे नहीं झुकता अब ये जमाना.....
सभी को अपने कामों की पड़ी हैं जल्दी,
घर में नहीं हैं तेल, नून और हल्दी....
उनको तेल, नून, हल्दी से क्या लेना -देना,
जिस तरह निरमा से अलग हो जाता फेना.....
बहुत हुआ अब बेनकाब बात बताओ,
बात बता दी पूरी सुना नहीं क्या तुम हो बहरे.....
कुआँ, नदी होती जैसी गहरी नहरे,
अब अपने आस पास यह बात बताओ....
ढोल डुग्गी पीट कर आवाज लगाओ,
भ्रष्ट नेताओं से अपना देश बचाओं .....
लेख़क: आशीष , कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 8 सितंबर 2010

कविता मंगाते हैं अब पैसे

माँगते हैं अब पैसे
ये नेता हो गए हैं कैसा ,
माँगते रहते हैं अब पैसे....
सड़को रोड़ो और चौराहों पर,
पुलिस को भी अब देखो....
कैसे वसूलते हैं पैसे,
ये सब हमने अपने आँखों से हैं देखा.....
ये नेता हो गए हैं अब कैसे,
माँगते रहते हैं अब पैसे....
लेखक ज्ञान कक्षा अपना घर कानपुर

रविवार, 5 सितंबर 2010

कविता रक्षाबंधन

रक्षाबंधन
राखी आयी राखी आयी,
भाई ने बहनों के हाथो से राखी बंधवायी....
राखी नहीं ये हैं रक्षाबंधन,
कभी न टूटे भाई बहन के रिश्तों का बंधन....
रक्षाबंधन का पर्व सभी मानते ,
हिन्दू हो या मुस्लिम सभी इसके गाते गुण....
श्रावण माह की तिथि में इसे मानते,
भाई अपनी बहनों को रक्षा का आशीष देते....
हर पर्व सभी के लिए खुशियाँ लाते,
वह सभी के मन को हर्षाते.....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 4 सितंबर 2010

कविता कब चेतोगे

कब चेतोगे
एक सज्जन खा रहे थे खाना ,
खाने में था कड़ी और चावल.....
खाते चले जा रहे थे,
कुछ नहीं देख रहे थे....
जो भी आ रहा था,
गिर रहा था उनकी थाली में....
उनको कुछ होश नहीं था,
न ही वो देख रहे थे .....
अचानक एक मक्खी आयी ,
गरदन में उनके घुस गयी.....
झट से उनको पलती हो गयी,
अटक गयी उनके गरदन में मक्खी .....
पहुचे अपने घर के अन्दर,
निकालो जल्दी मेरी गरदन से मक्खी ....
नहीं तो हम मार जायेगे जल्दी....
लेखक अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

कविता ब्रहमाण्ड

ब्रहमाण्ड
यह ब्रहमाण्ड हैं कितना अनोखा
इसको गौर से हमने नहीं हैं देखा
कैसा हैं ये ब्रहमाण्ड हमारा
जिसमे छोटा सा हैं संसार हमारा
क्या कही और भी होगा जीवन
क्या वहां पर भी होगा अपना पन
यह तो हैं एक आनोखी कहानी
जो अभी तक हमने नहीं जानी
मै भी जाऊँगा एक दिन चाँद पर
जहाँ पर नहीं हैं हवा पानी और घर
ये अजीब सा ब्रहमाण्ड होगा कैसा
जैसा हमने सोचा क्या होगा वैसा
लेखक धर्मेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 1 सितंबर 2010

कविता रक्षाबंधन

रक्षाबंधन
रक्षाबन्धन का दिन आया रे ,
बहाने खुशिया खूब मनायेगी....
पापा बाजार जायेगे,
राखी खूब लायेगें ....
रंग बिरंगी राखियाँ हैं,
बहाना सोचे किसको बांधू.....
सबसे पहले भईया को बांधू,
मिठाई उसको खिलाऊगी....
पैसा हम तो पायेगें ,
उस दिन भाई खाते हैं कसम....
हर दम करेगें तुम्हारी रक्षा,
रक्षाबंधन का दिन आया रे....
लेखक जीतेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

कविता ये हैं घनघोर आसमान

ये हैं घनघोर आसमान
ये हैं घनघोर आसमान ,
हरदम रहता सीना तान....
लेकर अपनी तलवार और कमान,
हर वक्त करता पानी की बरसात.....
दिन हो या पूर्णा की रात,
पानी की करता हैं बरसात....
ये आसमान नहीं चमन हैं,
यहाँ राजपूतो का अमन हैं....
जहाँ पानी बरसता हैं,
बिजली गरजती हैं....
तब पानी बरसता हैं,
ये हैं घनघोर आसमान....
हरदम रहता सीना तान.....
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता हर इक गाँव में

हर एक गाँव में
हरे पेड़ की झाँव में,
देश के हर इक गाँव में....
आते लोग जाते लोग,
अपनी गलती पर पछताते लोग....
एक गाँव के छोर से,
मोर के सुन्दर पंखों से....
हंसते गाते चलते मुस्कराते,
सब चलते अपने -अपने रस्ते....
रास्ता कठिन हैं यही बताते,
अपनी मंजिल पाने से डरते.....
अपनी मंजिल वही पाते,
जो कभी विपत्ति से न डरते....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

कविता :आसमान में दिखते तारे

आसमान में दिखते तारे

आसमान में दिखते तारे
सुन्दर-सुन्दर कितने प्यारे
तारा जब टिमटिमाते हैं
बच्चे उछल-कूंद मचाते हैं
और जिस दिन तारा दिखता
उस दिन बच्चों का मन भरता
आसमान में दिखते तारे
सुन्दर-सुन्दर कितने प्यारे

लेखक :जीतेन्द्र कुमार
कक्षा :
अपना घर

सोमवार, 23 अगस्त 2010

कविता धर्म जाति का भेद भुलाए

धर्म जाति का भेद भुलाए
धर्म -धर्म क्यों करते हैं ?
धर्म जाति पर मरते हैं,
धर्म के खातिर मरने वाले ....
इस वतन के हैं जो रखवाले,
धर्म किसी का हिन्दू.....
धर्म किसी का मुस्लिम,
धर्म किसी का सिक्ख....
धर्म किसी का इसाई,
धर्म सभी का अलग -अलग हैं.....
सभी की रंघो में खून तो एक हैं,
हाथ पैर सब कुछ तुम्हारे हैं......
हाथ पैर सब कुछ मेरे भी हैं,
सबके कोई न कोई अपने हैं....
हर एक मानव के भी सपने हैं,
इस सपने को हम कैसे पाये....
आओं हम सब आपस में मिल जाये ,
धर्म जाति का भेद भुलाए.....
आपस में एक का मेल बढाए.....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

कविता सोच के बताइए मैं कौन हूँ

सोच के बताइए मैं कौन हूँ
मुझे लगता हैं की मैं एक गुलाम हूँ ,
क्या मैं दूसरे का दास हूँ.....
क्या आप बता सकते हैं,
मेरे सवालों का जवाब दे सकते हैं....
मै सोच सकता हूँ,
देख सकता हूँ.....
सुन सकता हूँ,
मै आप के विचार नहीं बदल सकता हूँ.....
देखने में आप मुझे भोले लगते हैं,
मुझे क्या पता आप क्या सोच रहे हैं.....
चलो जरा आगे बढते हैं,
सोच के आप मुझे बताइए.....
क्या मैं दास हूँ या गुलाम हूँ,
विचार कर के बताइये जरा आप मुझे .....
आखिर मैं कौन हूँ .....
लेखक अशोक कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

रविवार, 22 अगस्त 2010

कविता पुलिस और वकील

पुलिस और वकील
सुनो सुनो यह बात अमन की ,
यह हैं अपने मुल्क का हाल....
पुलिस कहलाते देश के रक्षक,
वकील कहलाते कानून के रक्षक....
हो रही थी पुलिस और वकील में संघर्ष,
जब आई बात अपने खातिर दरी की .....
लड़ मरे दोनों सकरी भाई,
इनके ऊपर क्यों नहीं हुई कारवाही .....
क्यों की पता चले जनता को भाई,
ये कर रहे थे नेतों के काम भाई.....
जब चुनाव आयेगा भाई,
वोट कौन देगा इनको भाई.....
इस लिए नहीं हुई थी इनकी कारवाही......
लेखक सागर कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

कविता :मंहगाई

मंहगाई

इतनी बढ़ी है मंहगाई
किसी ने की जिसकी आवाज सुन मेरे भाई ॥
पूँछा आलू का क्या दाम है भइया ।
उसने बोला एक किलो का दस रुपया ॥
टमाटर का दाम वो सुनकर
अब खायेगें इसको लेकर
बैंगन की वो बात निराली
खेतों में लहराती गेंहू की बाली
धनियाँ का जब लिया गट्ठा
दाम सुनकर बैठा दिमाग का भट्ठा
बाकी सब्जी का भाव सुनकर
बाजार से भागे दौड़ लगाकर
जब लगी सभी को मंहगाई
तब सबने मिलकर आवाज लगाईं ॥
रुकी पर एक भी मंहगाई
लोगों के आंसू की धारा उसने बहाई

लेखक :आशीष कुमार ,कक्षा :,अपना घर

सोमवार, 16 अगस्त 2010

कविता तारा

तारा
एक हैं तारा ,
कई सितारे....
जग मग करते,
आकाशा में सारे....
एक चमकते हैं तारे,
नहीं कभी जिन्दगी से हारे.....
आकाशा में घूमता मारा मारा,
पूछने वाला कोई नहीं बेचारा.....
तारे हैं बहुत पुराने,
सुनते हैं आसमान में गाने.....
जाते हैं रोज नहाने,
और आते हैं रोज खाना खाने.....
एक हैं तारा,
कई सितारे......
लेखक मुकेश कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 14 अगस्त 2010

कविता प्यारी तितली

प्यारी तितली
जब जब आती तितली प्यारी
मन को भाती तितली प्यारी
रंग बिरंगी तितली प्यारी ।
फूलों से भी है सबसे न्यारी ॥
फूलों पर मंडराती है ।
यंहा वंहा उड़ जाती है ॥
हाँथ में हमारे आती ।
पंख फैलाकर उड़ जाती ॥
तितली प्यारी सबसे न्यारी ।
कई रंगों की तितली लगती प्यारी ॥
लाल गुलाबी नीली पीली ।
हाँथ में आते लगती पोली पोली
लेखक - ज्ञान कुमार
कक्षा -
अपनाघर , कानपुर

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

कविता :कैलेन्डर

कैलेन्डर

आसमान में टंगा कैलेन्डर ।
उसको पड़ रहे हाथीं-बंदर ॥
आसमान से गिरा जब बंदर ।
चिपक गया वह धरती के अंदर ॥
धरती के अंदर थे तीन बंदर ।
तीनों ने मारा तीन-तीन थप्पड़ ॥
डर के मारे घुस गया किचन के अन्दर ।
खाने लगा घी और चुकंदर ॥

लेखक :सागर कुमार ,कक्षा :,अपना घर

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

गर्मी आयी
गर्मी आयी गर्मी आयी,
गर्मी में हम रोज नहाते....
गर्मी में हम पानी पीते,
पानी पी कर प्यास बुझाते....
गर्मी आयी गर्मी आयी,
गर्मी में हम रोज नहाते....
गर्मी में हम सब के,
खूब पसीना निकले.....
गर्मी में हम पंखा चलाते,
उससे अपनी गर्मी भागते.....
फिर हम गहरी नीद में सो जाते,
गर्मी आयी गर्मी आयी.....
गर्मी में हम रोज नहाते ....
लेखक जीतेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 7 अगस्त 2010

कविता वर्षा आयी

वर्षा आयी
वर्षा आयी वर्षा आयी |
बड़ी जोर से वर्षा आयी||
वर्षा जब आती हैं|
नाले भर -भर जाते हैं||
तीन दिन से झकझोर|
पानी आया जोर दर ||
साथ में अपने हवा न लाया |
वर्षा आयी वर्षा आयी||
नदी तालाब भर - भर जाये|
पानी से शहर बेहाल||
स्कूल जाने में क्या होगा हाल||
लेखक मुकेश कक्षा अपना घर कानपुर

बुधवार, 4 अगस्त 2010

कविता :वीर बनो

वीर बनो

वीर बनो तुम वीर बनो ।
पढ़-लिखकर शूर वीर बनों ॥
पढ़ लिखकर अच्छा काम करोगे ।
जग में अपने माँ-बाप का नाम करोगे ॥
और लोगों को अच्छी सीख दोगे ।
छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाओगे ॥
तुम किसी बच्चे को अगर पढ़ाना ।
उसे सरकारी स्कूल की तरह मत रटवाना ॥
दो चार दिन तो याद रहेगा ।
अभ्यास करने से पूरा जीवन याद रहेगा ॥
यह जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है ।
जिसने इसको खोया यह तो असली मूर्खता है ॥

लेखक :आशीष कुमार, कक्षा :, अपना घर

सोमवार, 2 अगस्त 2010

कविता : भारत देश महान

भारत देश महान

अपना भारत देश महान
इस पर मत करो अभिमान
जहाँ पर गंगा है बहती
जहाँ पर गंगा माँ है रहती
हिन्दू हो या मुसलमान
सब करते हैं अच्छा काम
रोशन करते देश का नाम
अपना भारत है मतवाला
हरा-भरा और फल-फूलों वाला
भारत में थे वीर महान
नहीं करते थे वे अभिमान
सबको समझते थे एक समान
अपना भारत देश महान
इस पर मत करो अभिमान

लेखक :मुकेश कुमार , कक्षा :९, अपना घर

रविवार, 1 अगस्त 2010

कविता कलम प्यारी

कलम प्यारी
कितनी प्यारी कलम हमारी |
इससे निकली विधा सारी||
लिखती कविता और कहानी|
कितनी प्यारी कलम हमारी||
इससे निकली विधा सारी|
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शनिवार, 31 जुलाई 2010

कविता जल

जल
इस समय पानी का हैं बहुत तोता|
पैसे में बिकता हैं पानी एक लोटा ||
बरसात में करोड़ों लीटर बर्बाद हो जाता|
लेकिन किसी का इस पर ध्यान न जाता||
बरसात के पानी का कैसे करें उपयोग|
अब हम न करे इसका दुर्पयोग ||
बहुत लोग पानी बचने पर देते हैं तर्क|
लेकिन इसका किसी पर न पड़ता फर्क||
बरसात के पानी का हम करे सरंक्षण|
न होने देगे हम अब इसका भक्षण||
पोस्ट प्रकाशित करें
लेखक धर्मेन्द कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

कविता मोर आया

मोर आया
देखो रंग बिरंगा मोर आता हैं |
बच्चे देखकर करते हैं शोर||
मोर आते हैं बच्चों के शोर से|
बच्चे देखकर करते शोर||
एक बच्चे ने मोर को पकड़ा|
बच्चे करने लागे लड़ाई झगडा||
लड़ाई झगडा मत करो|
मिल जुल कर रहे हम सब बच्चे||
लेखक चन्दन कक्षा अपना घर कानपुर