मंगलवार, 31 अगस्त 2010

कविता हर इक गाँव में

हर एक गाँव में
हरे पेड़ की झाँव में,
देश के हर इक गाँव में....
आते लोग जाते लोग,
अपनी गलती पर पछताते लोग....
एक गाँव के छोर से,
मोर के सुन्दर पंखों से....
हंसते गाते चलते मुस्कराते,
सब चलते अपने -अपने रस्ते....
रास्ता कठिन हैं यही बताते,
अपनी मंजिल पाने से डरते.....
अपनी मंजिल वही पाते,
जो कभी विपत्ति से न डरते....
लेखक आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

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