बाल सजग

बच्चों का आकाश .... बच्चों के लिए

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

कविता; "मुस्कुराती दुनिया"

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"मुस्कुराती दुनिया"  ये हस्ती हम्मारी जमीन, सुबह का का उगता सूरज, खिलखिलाता सा आसमाँ , दिश बदलती हवाए चलती रहते है।  ऐसा लगता है क...

कविता: "क्या हो गया है मुझे ?"

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"क्या हो गया है मुझे ?" क्या हो गया है मुझे ? थोड़ा सा गुस्सा तो कही चिड़चिड़ापन होने लगा हूँ, मेरे शांत मन को बहकाने लगा है,, गुस्सा...

कविता: "मेरे पापा"

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"मेरे पापा" कभी - कभी उम्मीदे तो नहीं होती,  पर फिर भी उम्मीद खोऐ नहीं , आँखे से आसु तो आता है , मेरे पापा कभी रोते नहीं।  शरीर तो...
सोमवार, 1 दिसंबर 2025

कविता: "सितारे"

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"सितारे"  गिनने की कोशिश की तारो को,  सौ बार नहीं हजार बार , पाने की कोशिश की इन सितारों को , हस्ते और गाते चमकते है , रात अँधेरे ...
शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

कविता: वो बचपन का भी किया जवना था।

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"वो भी किया जवना था" हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके,  वो बारिश की गिरती बूंदे में हमने भी खेले है , वो बचपन का भी किया जवना थ...
गुरुवार, 27 नवंबर 2025

कविता: "दिल में राज करता मेरा भाई"

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"दिल में राज करता मेरा भाई"  भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में , तेरे हर एक बात याद दिलाती है , मुझे आज भी बहुत याद आती है।  तेर...

कविता: "स्वागत करने को तयार है"

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"स्वागत करने को तयार है"  हर कदम ,हर राह , परेशानियाँ परेशान करने को तयार है , कठिनाई तुम्हारी राह देख रही है ,  उन्हें बस तेरा स्...
मंगलवार, 25 नवंबर 2025

कविता: "मेरे गुरु जी"

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"मेरे गुरु जी"  गुरु बस तेरा ही एक सहारा था , राहो का वो एक सहारा था , चाँदो का वो एक तारा था , कठिन परिस्थित्यों में भी मुस्कुरान...
सोमवार, 24 नवंबर 2025

कविता: "नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"

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"नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"  ख्यालों में खो रहे हो अभी से राहो पर, तर्क करते हो बुजूर्गो के तजुर्बो पर , जिंदगी जो जी रहे हो यादो...
रविवार, 23 नवंबर 2025

कविता: "मेरा बचपन"

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 "मेरा बचपन" वो बचपन का क्या जवना था,  जब कार्टून के फोटो हमारे लिया खजाना है।  न काम की टेंसन न पढ़ाई की चिंता , बस मौज मस्ती में ...
शनिवार, 22 नवंबर 2025

कविता: "मेरे पापा"

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"मेरे पापा" सुबह से लेकर शाम तक काम है वे करते,  मेहनत कर के खाने को एक तिनका है लाते, उनके काम भी आसान नहीं होते, बड़ी ही मुश्किल ...
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BAL SAJAG
Kanpur, UP, India
प्यारे दोस्तों, बाल सजग एक हकीकत भरा प्रयास जिसके लिए हम सभी बच्चें कोशिश में लगे है. हमारे सपने, हमारी उमंगे हमको भी चाहिए एक जमीन जो हमारी हो, जिसके लिए किसी का मुहँ न देखना पड़े. हम भी लिखना चाहते है, सोचना चाहते है और घिसी-पिटी पढाई को छोड़ नया कुछ पढ़ना चाहते है, जो हमारे दोस्तों ने लिखा हो, जो हमने लिखा हो. बाल सजग एक ऐसा ही प्रयास है. हम सभी ईट-भठ्ठों पर काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चें है. हमारे बचपन का अधिकतर समय ईट की पथाई में गुजरा है, दहकतियों भठियों में झुलसा है. ईट-भठ्ठों की तपिश में न मालूम मासूम बचपना कंहा खो गया. हमको नहीं मालूम की जांत- पात, उंच - नीच क्या होती है, और हम जानना भी नहीं चाहते है ... हम जानना चाहते है कि, शेर खीरा ककड़ी क्यों नहीं खाता, आसमान के तारों पर कौन रहता है. हम सब कुछ जानना चाहते है, जो हमारे मन में आते है. तमाम ख्वाब आपके है ,पर कुछ हमारे भी है. हम अपने ख़्वाबों को आपके साथ जीना चाहते है. .. "बाल सजग" टीम
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