मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

कविता : " शायद तुमने भी लिखा होता "

 " शायद तुमने भी लिखा होता "  
शायद तुमने भी लिखा होता ,
इन जरजर हालातो को देखा होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
तरवटो पलंगों में जीवन बिता दिया ,
काश ! जमीन पर रहना सीखा होता ,
हर वक्त शोषण न किया होता ,
गरीबों की मेहनत को उड़ाया न होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
सूत - बूत पर रहना न सीखा होता ,
धोती कुर्ता पहनना सीखा होता ,
शयद तुमने भी लिखा। 
खाली पेट रहकर , रोरी का टुकड़ा खाकर ,
रातो को जमींन पर बिताकर ,
राते को बिताना सीखा होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
महलो में रहकर आराम न फरमाया होता ,
चिलचिलाती धुप में भरी दोपहरी  ,
खेत खलिहानो में काम किया होता ,
पाई - पाई का इस्तेमाल करना सीखा होता,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
कवि : साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 
 

कविता : " प्यारी माँ "

 " प्यारी माँ " 
माँ आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है। 
तेरी लोरियाँ लगता है मुझे बुला रही है। 
कैसी  होगी मेरी माँ ये बहुत सताती है। 
फोन पर बात करू तो रोना भी आ जाता है। 
 रूठ जाऊ तो बार बार मानती थी। 
वो मुझे अपनी गोद में उठाती थी.
पता नहीं इतना सारा प्यार कहाँ से लाती थी। 
माँ हमेश उचे दर्जे निभाती थी ,
माँ आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है। 
कवि : रमेश कुमार, कक्षा : 5th, 
अपना घर। 

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

कविता : " चेतक "

कविता : " चेतक "
 देखकर चेतक का रंग ,
दुश्मनों को भी कर दिया दंग।  
राणा के हर एक इसरो को भाप जाता था,
हर वार से बचकर लोगो को मार गिराता था।
हवा से भी तेज भागने वाला ,
वह चेतक कहलता था। 
जब युद्ध केबीच उत्तरा हो ,
महाराणा प्रताप का चेतक पुतला हो। 
बीन गिरे सबको गिरा जाता था , 
हवा के सम्मान वह चेतक कह लता था। 
प्राप्त हुआ वीरगति को ,
घायल चेतक राणा की जान बचाया था ,
खाकर तीरो की मार फिर भी मार गिराया था। 
हवा के सम्मान वह चेतक कहलाता था। 
हवा से भी तेज भागने वाला ,
वह चेतक कहलता था। 
वह चेतक कहलाता था ..............।  
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

कविता : " गर्मी के दिन "

 " गर्मी के दिन "
 गर्मी का दिन वो आया ,
सुबह और शाम को सिर्फ छाया ,
बाकी समय सिर्फ धूप आया। 
दिन को इस गर्मी में ,
पसीना का नदियाँ बह आया ,
गर्मी का वो दिन आया। 
आया पेड़ो के निचे है सिर्फ छाया  ,
बाकी जगह की रोशनी छाया ,
गर्मी का दिन वो आया। 
सुबह और शाम को सिर्फ छाया। 
गर्मी का दिन वो आया। 
कवि : विष्णु कुमार, कक्षा : 6th, 
अपना घर। 

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

कविता : " एकलव्य संग कर्ण महान हुआ "

 " एकलव्य संग कर्ण महान हुआ " 
 जिसके नाम से मौत भी काप उठती थी ,
हर तीर जाके वीरो के सीनो पर जाके लगती थी , 
जिसने लोगो को किया प्रभाभित ,
तीरो के ऊपर तीर लगाया ,
  ए ए ए  से एकलव्य इस धरती पर आया। 
लेकिन थे एक महा युद्धा कर्ण थे आए ,
जो थे अर्जुन से टकराए। 
न होने के बाबजूद भी उन्होने ऊपर चाहा ,
अर्जुन थे एक दुष्ट धनुष बाड़ ,
जिन्होने दोनों का अपमान चाहा। 
कुंती पहचान लिया अपने पुत्र को 
फिर भी मौन रही। 
कर्ण भी उस अर्जुन से से टकराए थे ,
युद्ध भूमि में हारकर भी महान कहलाए थे। 
लगा डाला मौत को पला था। 
तीरो के ऊपर तीर एकलव्य चला डाला था 
कोई नहीं था साथ तो फिर भी कर्ण ने उस अर्जुन पर तीर चलाई थी ,
सोच कर यह मन अभी भी लड़ाई जारी थी। 
कृष्ण ने भी उस अर्जुन को समझया था ,
कहकर हाथ में धनुष बाड़ थमाई थी 
की वो भी जीते युद्ध भूमि को ,
अगर उस कर्ण को न मारा होता। 
क्या होता अगर एकलव्य और कारन एक साथ होते ?
देख कर यह ताल - मेल सब हैरान होते। 
एकलव्य संग कर्ण महान हुआ ,
एकलव्य संग कर्ण महान हुआ ,
एकलव्य संग कर्णमहान हुआ ..............। 
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th, 
अपना घर।  

कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "

कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "
वैसे तो हम नजर अंदाज नहीं करते किसी को ,
न ही बुरी नजर से देखते है ,
अरे गलती हो गई उससे छोटी सी ,
पर कुछ हम भी समझते है। 
थोड़ी सी मजबूती होगी उसकी भी ,
पर हम देखकर सवरते है ,
क्योकि हम आपसी व्यव्हार रखते है। 
अकेला रहना भी हानिकारक है ,
यह मायाजाल दिलो - दिमाग पर हावी है ,
मयूष को भी संभालते है , 
हमें पता है हमसे नाराज़ है वे सब,
लेकिन हम हालातो को देखते है। 
क्योकि हम आपसी व्यव्हार  रखते है। 
क्योकि हम आपसी व्यव्हार  रखते है ...............।
कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर 

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

कविता : " समुद्र की लहरे "

" समुद्र की लहरे  "
वो समुन्द्र का किनारा ,
लगे आसमा जैसा प्यारा। 
लहरे तेजी से आती है और जाती है। 
लोगो के मन को भाती है। 
और लोगो भी पानी के लहरे में ,
सब स्नान कर कर आते है 
ये लहरे मन को खुश कर जाती है। 
 लहरे आती है और जाती है। 
लोगो के मन को भाटी है। 
वो समुद्र का किनारा ,
लगे आसमा जैसा प्यारा। 
कवि : अजय कुमार, कक्षा : 6th, 
अपना घर   

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

कविता : " स्कूल जाने की बारी आई "

 " स्कूल जाने की बारी आई "
 स्कूल  आ गया देखो खुलने को ,
मन करता है स्कूल चलने को।
वही टाइम  काटता सही से ,
पढ़ाई सुरु हो गई अभी से।
कभी - कभी बच्चे बोर हो जाते,
तो कभी समय मौज मस्ती में बिताते।
टीचर भी कभी पड़ने आते ,
बच्चे भी पड़ने से जान बचते।
स्कूल एक है घर के जैसा ,
जहा पर माँ - बाप का जाता पैसा। 
स्कूल में मिलता पढ़ाई अच्छा।
 
कवि : अजय कुमार, कक्षा : 11th, 
अपना घर।

कविता : " एकलव्य "

 " एकलव्य " 
थे वो एक महापुरुष , 
बिता डाली सारी जिंदगी जंगलो में , एक आदिवासी के रूप  में 
ठान रखा था बनुँगा अर्जुन जैसा धनुष बाड़ 
द्रोणाचार्य के मना करने पर भी सीखी धनुष की विध्या 
द्रोणाचार्य ने कहा अर्जुन जैसा कोई नहीं धनुष बाड़ हुआ 
तो फिर महायुद्धा एकलव्य कौन थे। 
जिससे छल से अँगूठा न माँगा होता। 
उसी समय जांगले में शिकार  के लिए गए थे अर्जुन ,
आगे - आगे उनका  कुत्ता था। 
कुत्ते ने जब देखा एकलव्य को लगा दी थी गोहार,
 था एकलव्य का सटीक निशना लगा दी तीरो की बाड़। 
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ। 
फिर उस अर्जुन ने भी द्रोणाचार्य से हरसाया था ,
की एकलव्य कौन जो  सटीक निशना तान रखा है. 
अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।
तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता। 
 फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती 
अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।  
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ। 
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ............ ।
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर 

कविता : " आपसी व्यवहार "

 " आपसी व्यवहार " 
हम लड़ते नहीं है, 
संभलते है। 
गुस्से में हो फिर भी हस्ते है ,
छोटी सी बात पर नाराज़ नहीं होते हम। 
ना ही बदला चुकाते है ,
अरे भूल जाते भूतकाल की बातो को ,
बस आपसी व्यवहार जताते है। 
तुम जैसे मुँह नहीं बनाते ,
न ही दिखावा करते है हम। 
बस किसी तरह संभल जाए ये जहाँ ,
इसलिए आपसी व्यवहार 
जताते है .................। 
कवि :  सुल्तान कुमार,  कक्षा 11th,
अपना घर। 

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

कविता : " कर्ण "

 "  कर्ण हूँ मैं   " 
जिसने मौत भी को ललकार दिया ,
युद्ध के मैदान में वीरो को भी पछाड़ दिया। 
थे वो एक महापुरष , 
न नसीब हो पाया माँ का प्यार।  
क्रोध भयंकर आता था लेकिन किया उनको नाकार 
युद्व के लिए हमेशा रहते थे वो त्यार। 
लोगो ने निचा कहा  और अपमान किया,
परशुराम ने दिया कर्ण को विद्द्या ,
महा युद्धा  कर्ण हमेशा से किया प्रतिज्ञा। 
और कोई नहीं वह परशुराम का शिष्य दानवीर कर्ण हुआ। 
उसभरे समाज में कर्ण ने अर्जुन को भी ललकारा दिया। 
फिर कर्ण का  देख यह रूप कुंती भी नाकार किया। 
था गुरु परशुराम मेरा नाम दानवीर कर्ण हुआ। 
जिसने मौत भी को ललकार दिया ,
युद्व के मैदान में वीरो को पछाड़ दिया। 
कवि : निरु कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर।