शनिवार, 18 मई 2024

कविता :"मैंने सीखा "

"मैंने सीखा "
छोटी -छोटी गलतियों से ,
मैंने आगे बढ़ना सीखा है | 
दूसरो को देख -देखकर ,
मैंने पढ़ना सीखा है | 
जब बचपन में पापा ने ,
मेरे उंगलिंया छोड़ी तो | 
मैंने अकेला ही चलना सीखा है ,
मैंने इन हाथों से लिखना सीखा है | 
छोटी -छोटी गलितयों से ,
मैंने आगे बढ़ना सीखा है | 
कवि :रमेश कुमार ,कक्षा :4th 
अपना घर 

शुक्रवार, 17 मई 2024

कविता :"लोग "

"लोग "
धरती पर लोग गुमसुम क्यों है ,
आस -पास खुश और दुखियों से | 
और या आपसी सम्बन्ध में तालमेल न होने से ,
धरती पर लोग एक- दूसरे से दूर क्यों है | 
आपसी रिश्ते में कुछ कमी होने से ,
या फिर लोगो को देखकर | 
एक दूसरे के प्रति घृणा प्रकट करने से , 
धरती पर लोग एक -दूसरे का मदद क्यों नहीं करते | 
अपने -अपने कामो में लगे रहने के कारण से , 
धरती पर लोग गुमसुम क्यों है | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 
 

गुरुवार, 16 मई 2024

कविता :"हाँ सीखा मैंने "

"हाँ सीखा मैंने "
गिर -गिर कर मैंने चलना सीख लिया,
गलती कर-कर के वो चीज करना सीख लिया | 
छोटी -छोटी प्रयासों से ही मैंने ,
कठिनाइओं से लड़ना  सीख लिया | 
कठिनाईओ से लड़ -लड़ कर मैंने ,
जिंदगी को जीना सीख लिया | 
आगे बढ़ -बढ़ के रास्तों पर ,
कैसे चलना है मैंने वो भी सीख लिया | 
गिर -गिर कर मैंने चलना सीख लिया ,
मेरे जिंदगी ने और कुछ भी सिखाया | 
मैंने वो भी सीख लिया ,
गलती कर-कर के वो चीज करना सीख लिया | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

बुधवार, 15 मई 2024

कविता :"खुशी बाटी है "

"खुशी बाटी है "
क्या तुमने भी किसी को खुश किया है ?
या फिर दो पल हंसाया है | 
क्या तुमने भी गिरे लोगो को उठाया है ?
या फिर रूठे हुए को मनाया है | 
क्या कभी शांत वातावरण में जिया है ?
या फिर शोर- शराबे में रोया है | 
क्या तुमने किसी को धमकाया है ?
या फिर किसी को मारा है | 
मेरे तो दिन बुरे है आज ,
पर क्या तुमने इसे कभी आजमाया है ?
कवि :पंकज कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 
 

मंगलवार, 14 मई 2024

कविता:"वह लड़का "

"वह लड़का "
कड़क धूप में भी गुनगुनाता है ,
बरसती बरसात में भी चलता है | 
हर बार फिसलता है ,हर बार घिसटता है | 
हिम्मत हर कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का है जो सारे आसूं पी जाता है | 
सबके ताने सह जाता है ,
हर गम झेल जाता है 
हर पल धोखा दे जाता है | 
हिम्मत हर कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का जो सरे आंसू पी जाता है | 
कभी जब फेल होता है ,
सब कहते है तू करेगा जिंदगी में 
ये सब सुनकर भी हँसता रहता है | 
हिम्मत हार कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का है जो सारे आंसू पी जाता है | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

सोमवार, 13 मई 2024

कविता :"नया करे "

"नया करे "
चल आज कुछ नया करते है ,
हाथ में हाथ मिलाकर 
एक विश्वाश बनाते है| 
अपने सोच विचार को बदलते हुए ,
एक नए विश्वाश के साथ 
उम्मीद की आस जगाते है | 
चल आज कुछ नया करते है ,
हाथ में हाथ मिलाकर 
एक दूसरे को साथ देते है 
चल आज कुछ नया करते है| 
हाथ में हाथ मिलाकर 
अपने विचार को बदलते है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

रविवार, 12 मई 2024

कविता :"वक्त का जख्म "

 "वक्त का जख्म "
कर देते है बर्बाद अपने वक्त को जब हम ,
चाहकर भी वो वक्त कुछ नहीं कह पाता है  | 
जब रुलाकर दे जाते जख्म उसे हम ,
चुपचाप वक्त उसे सह जाता है | 
हर मुश्किलों को झेलकर ,
अपने आप को समझाता है | 
होते देख बर्बाद खुद को ,
रोते हुए भी नहीं रो पता है | 
जो जख्म देते है वक्त को हम,
चुपचाप उसे वह सह जाता है | 
लेकिन मै वक्त हूँ जो अपना सही समय तरसता हूँ ,
अपने को बर्बाद होते देख खुद को समझाता हूँ | 
वक्त को फिजूल जया करने वालों को ,
जब वक्त का जख्म लगता है | 
वो इंसान चाहकर भी जिंदगी में ,
कुछ कर नहीं पाता है | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शुक्रवार, 10 मई 2024

कविता: "संघर्ष "

 "संघर्ष "
दो पल की छांव है ,
और दो पल की धूप है | 
यह संघर्ष की सफर में ,
अनेक रूप है कई शुकून की लम्हे नहीं | 
बस हर पल डर है और है नमी ,
यह संघर्ष की सफर में | 
रूठी है मुझसे यह जमी ,
हर पल ढूंढ़ता हूँ | 
शुकून की जिंदगी ,
अब तो दुवा  यही करता हूँ | 
ना रहे कोई कमी ,
यह संघर्ष की सफर में | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

बुधवार, 8 मई 2024

कविता:"सोच "

"सोच "
अपनी सोच को सुधारो लोगो ,
क्यों इतना जीवन में भाग रहे हो | 
इनसे डर कर क्यों जीवन काट रहे हो ,
अपनी हिम्मत पर रखो विश्वास | 
हर पल न होगा इनका विकाश ,
याद करलेंगे सारे वादे | 
जितना इन्होने हम पर  बांधे ,
खुद पर रखना संयम | 
आगे बनेगा अपना नियम ,
अपनी सोच को सुधारो लोगो |
 क्यों इतना जीवन में भाग रहे हो,
कवि :अवधेश ,कक्षा :11th 
अपना घर 

सोमवार, 6 मई 2024

कविता :"मज़दूर "

 "मज़दूर "
मजदूर है हम ,कोई चोर नहीं | 
मेहनत करते है ,पसीना भाते है | 
एक वक्त का पेट भरने के लिए ,
पहाड़ो से टकराते है हम | 
मजदूर है हम ,
किसी का छीनकर नहीं खाते | 
खेती करते है फसल उगाते है ,
जरूरत पड़ने पर हम ही बताते है | 
हर अमीरों तक अनाज पहुँचते है हम,
महदूर है हम | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

शनिवार, 4 मई 2024

कविता:"दुनिया "

"दुनिया " 
अब अंत आ रहा है,
न जाने ये दुनिया किस ओर जा रहा है | 
सारी  चीजों को कर दिया बर्बाद ,
अब करते है इनको बचाने का फरियाद | 
अब अंत आ रहा है,
सूरज की किरणे भी जहर बरसा रहा है | 
अब जीवन बनता जा रहा है जिन्दा लाश ,
अब अंत आ रहा है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर