शनिवार, 21 दिसंबर 2024

कविता : "संघर्ष "

 "संघर्ष "
देखो है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध | 
लोगो में थे आपसी संबंध,
न थी एक-दूसरे के प्रति घमंड | 
उम्मीदों की छाया बनते थे वह सब,
मुशीबतों के आने पर| 
जीत हो या हार हो,
पर संघर्ष जारी रहता था| 
देखा है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध| 
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

कविता :"बीत गई बाते "

"बीत गई बाते "
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था | 
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था | 
हुआ सुबह लालिमा छाया,
पल भर में यह अहसास हुआ | 
जो बीत गया,
उसे लेकर क्या रोना था| 
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था| 
सोचा था जिसे अपना,
वह अपना नहीं पराया निकला| 
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था 
कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

कविता :"परेशान हूँ मै "

"परेशान हूँ मै "
मै परेशान हो गया हूँ,
आस-पास के लोगो से| 
हर किसी का सुनना,
जैसे कानो में काटे चुभना | 
मै थक गया हूँ चलते- चलते ,
बस मै चाहता हूँ सोना| 
मुझे मत जगाओ सोने से,
क्योंकि सपनो में नया संसार देखता हूँ|  
मै परेशान हो गया हूँ,
अब तो डर लगता है गलतियां करना| 
क्योंकि इसमें भी परेशानी है,
अब तो हमारी बातो में भी गलतियां है| 
बस अब एक कोने में ही बैठा रहता हूँ ,
मै परेशान हो  गया हूँ| 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

कविता:"मजदूर "

"मजदूर "
इस खुले आसमान के नीचे ,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है| 
आज तो दिन गुजार लिया,
पर कल कैसे गुजरोगे |  
न जाने कैसे अपने बच्चों का पेट पालोगे,
जाने कैसे कल की शाम गुजरोगे| 
हर बार सवाल ये आता है,
 पर दिल दब कर रह जाता है| 
परेशानी तो नजर आती है ,
पर देखकर नजरअंदाज कर जाते है| 
इस खुले आसमान के नीचे,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है| 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

रविवार, 8 दिसंबर 2024

कविता :"समुद्र "

"समुद्र "
समुद्र के किनारे बैठ कर,
लहरों को देखना है| 
कैसे आता है और चला जाता है,
हमको समुद्र पार जाना है| 
पर समुद्र में क्या पता क्या होगा?
समुद्र के किनारे बैठ कर,
लहरों को देखना है| 
लहरों की आवाज कानो में सुनाई देती है,
ऐसा लगता है कुछ संदेसा लाकर 
कहना चाहती है|  
समुद्र के किनारे बैठ कर ,
लहरों को देखना है| 
कवि :रमेश कुमार , कक्षा :4th 
अपना घर 

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

कविता :"मासूम दुनिया "

"मासूम दुनिया "
बहुत मासूम है यह दुनिया ,
एक चीज के पीछे हजार लोग भागते है  | 
पर नसीब में किसी का न होता,
कुछ लोग अकेलापन को अपना दुनिया मानते| 
अब अनजान बनकर रहना चाहते है ,
बहुत मासूम है यह दुनिया|
सब लोग अपने आप को बड़े मानते है | 
जो चाह में आये वह करना चाहते है,
एक चीज के पीछे हजार लोग भागते है| 
बहुत मासूम है यह दुनिया ,
सिर्फ दूसरों में गलती निकालते है | 
पर अपने गलतियों पर अमल नहीं करते ,
बहुत मासूम है यह दुनिया| 
कवि : अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर