बुधवार, 24 नवंबर 2010

कविता : स्कूल हमारा मांगे अब पैसा-पैसा

स्कूल हमारा मांगे अब पैसा-पैसा

स्कूल हमारा यह कैसा है ,
शिक्षा में अब तो पैसा ही पैसा है ....
शिक्षा में मिले सभी को मुनाफा ,
प्रिंसिपल साहब चेयर में बैठे हैं बाँध के साफा ....
एक दिन बैठे मुंह में उंगली डाले ,
दूर से देखा तो लगती आम की काली- काली डालें .....
न जाने उनके दिमाग में आया कहाँ से एक प्लान ,
बोले हम सब मिल बनाएं इस देश को महान .....
महान बनायेगें हम इसको कैसे ,
प्रिंसिपल से एक ने पूछा जैसे .....
सब अध्यापक बोले हाँ-हाँ कैसे ,
क्योंकि सेवा करने में भी लगते हैं पैसे .....
पैसों को तुम मारो गोली ,
भर दूंगा मैं तुम सब की झोली .....
येसी तो थी प्रिंसिपल की बोली ,
बोले स्कूल में बैठ लगाओ बच्चों की बोली ......
हम बच्चो को झूठा लालच देकर ,
अपने जाल में सभी को फंसाकर ......
भिजवा देगें दूर देश-विदेश ,
जिससे हम सब को मिलेगा कैस ही कैश .....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

सबके जीवन में प्रकाश हो

लक्ष्मी का हाथ हो ,

सरस्वती का साथ हो |

गणेश जी का निवास हो ,

माँ दुर्गा का आशीर्वाद हो |

माता - पिता के आशीर्वाद से ,

आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो |





नाम : लक्ष्मी देवी

कक्षा : 2th

सेन्टर : अपना स्कूल ,

पनकी सेन्टर

सोमवार, 22 नवंबर 2010

कविता : होशियार डंडी

होशियार डंडी
एक थी होशियार डंडी,
उसका नाम था सिखंडी.....
पेड़ के ऊपर से गिरी,
पानी में चलते थी मारी- मारी.....
जगह- जगह शैर करने निकल पड़ीं,
पानी में सब को देखे खडी -खडी.....
उसने एक आवाज सुनी,
कोयल गाना गा रही थी......
उसका मन बहला रही थी,
डंडी उसकी तारीफ करना चाह रही थी......
पर कुछ कह न पाई ,
आगे चल कर उसने एक गिलहरी को देखा......
उसके शरीर में खिची थी तीन रेखा,
आगे चली तो उसको मिला एक मेढक......
उसके शरीर में थी एक रेखा,
वह बैठकर कविता लिख रहा था......
डंडी को सुना रहा था,
मन्द- मन्द मुस्का रहा था.....
पर डंडी मुस्का न पाई,
और आगे बढ़ गई.....
उसने एक गुलाब का फूल देखा ,
जो सुगन्ध दे रहा था.....
हवा में झूल रहा रहा,
मन्द- मन्द मुस्का रहा रहा था....
एक थी होशियार डंडी ,
उसका नाम था सिखंडी......
लेख़क: मुकेश कुमार
कक्षा : ९
अपना घर , कानपुर

शनिवार, 20 नवंबर 2010

कविता :सावधान तुम रहना

सावधान तुम रहना

सुनों-सुनों हे भाई बहना ,
हरदम सावधान तुम रहना ....
गाँव भी बनें हैं अब तहखाना ,
सुरक्षित नहीं किसी का बाहर जाना ....
लूट-पाट के ढेर लगे हैं ,
लूटने वालों की भीड़ें लगी हैं ....
किसी की चेन लुटी है ,
तो किसी के गहनें चोरी ....
घरों का जिसने ताला तोड़ा है ,
उसने की है बड़ी हरामखोरी ....
मेरा तो बस एक ही कहना ,
भाई-बहनों सावधान तुम रहना ....
चोर लगें हैं आपके पीछे ,
ख़तरा मंडराता ऊपर नीचे ....
चोर है कोई बड़ा ही शातिर ,
वह करता रहता आपके घर की जांचे ....
तुम सब मिलकर लगाओ एक जुगत ,
जिससे चोर यहाँ से जावे भागत-भागत ....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

कविता :बरसात में

बरसात में

बरसात के महीने में ,
कागज़ की नाव बनाने में ....
पूरा महीना बीता पानी की बूंदों से ,
आसमानों में बादलों के गर्जन से ....
मेढक टर्र-टर्र कर निकले धरती से ,
पपीहा आवाज करता ऊपर बैठा पेड़ों से ....
कलियाँ खिली हैं हर डाली में ,
मछलियाँ तैर रहीं हैं नाली में ....
झूम-झूम कर चले पुरवइया ,
नदिया देखा तो उस पर तैरे नवैया की नवैया ....
राही को बैठा देख नवैया में ,
नाव को पाने के लिए कूद पडा पानी में ....
पानी था हल्का नरम-गरम ,
नाव पकड कर चढ़ गये उस पर हम ....
नाव को देखा तो वह बिल्कुल खाली थी ,
मैं स्कूल में बैठा इस सोच में खोया था
....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

कविता :बरसात आयी

बरसात आयी
बरसात आयी बरसात आयी ,
झूम- झूम कर बरसात आयी.....
कड़- कड़ाती बिजली लायी,
धड़- धड़ाते बादल लायी .....
झूम- झूम कर बरसात आयी,
चारों ओर हरियाली लायी .....
कही घास कही धान लायी,
झूम- झूम कर बरसात आयी..... लेख़क : प्रकाश
कक्षा :
अपना स्कूल धमीखेड़ा,कानपुर

कविता : रोबोट

रोबोट
रोबोट होते है बड़े दिमाग के ,
रोबोट होते हैं अमर....
ये मानव क्या जाने,
रोबोट कब मिलजुल जाये .....
मानव को बना ले अपना चेला,
मानव ने रोबोट को इतनी दे दी हैं शक्ति .....
रोबोट हो हैं गए शक्तिशाली,
रोबोट किसी से नहीं डरते हैं.....
रोबोट मोबाइल से जब बाते करते ,
मानव रोबोट को देखते रह जाते....
लेख़क : रामसिंह
कक्षा :
स्वामी विवेकान्द ,कानपुर

सोमवार, 15 नवंबर 2010

कविता : कैसे होगा जीवन पार

कैसे होगा जीवन पार
कैसे होगा अब जीवन पार ,
सबके ऊपर है कुछ पैसे का भर....
इस पैसे का भार चुकाने के लिए,
कोई चोरी करता हैं ,और कोई मरता हैं.....
कैसे होगा अब जीवन पार,
इस जीवन को चलाने के लिए....
कोई कमाता हैं, और कोई गुलामी करता हैं,
कैसे होगा अब जीवन पार.....
लेख़क : ज्ञान
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

रविवार, 14 नवंबर 2010

कविता :हमारी मांगे पूरी करो

हमारी मांगे पूरी करो

आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....


लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

ईंट के भट्टों से इंटरनेट के आकाश तक

ईंट के भट्टों से इंटरनेट के आकाश तक

शनिवार, 13 नवंबर 2010

कविता : अच्छा बनना

अच्छा बनना
लोगों से मै विनती ,
एक ही बात मै उनसे करता....
पढ़-लिख कर अच्छा ,
कोई न अनपढ़ रहना....
लूट पात तुम कुछ न करना,
न ही किसी की हत्या करना....
लालच एक भी न करना,
चोरी से हरदम बचना....
पढ़-लिख कर अच्छा बनना,
कोई अनपढ़ रहना....
लेख़क : अशोक कुमार
कक्षा : , अपना घर

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

कविता: चलो रण भूमि पर

चलो रण भूमि पर

उठो मेरे भारत वासी,
करो न तुम अब देरी।
लेकर इस वतन की मिट्टी,
बांध लो अपनी मुट्ठी ।
अपने पथ पर चलते हुए ,
पहुचो रण भूमि पर।
आज दुश्मन है अपना ही कोई ,
जो देश को चला रहे है ।
जो लूट रहे है खसोट रहे है,
देश की मिटटी पानी को बेच रहे है।
आज करो तुम अपनी माटी की रक्षा,
चुकी खतरे में हैं आज अपनी यह भूमि।


लेख़क : अशोक कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता : क्यों निराश बैठा हैं

क्यों निराश बैठा हैं
क्या हम सोच सकते हैं,
उस पक्षी की आहट।
जो बैठा है उस वृक्ष की डाल पर,
उसे आहट से परवाह नहीं ।
ये मरने के लिए बैठा हैं,
या फिर किसी का इंतजार कर रहा हैं।
न जाने क्या सोच रहा हैं,
यह हमें पता नहीं।
क्यों , निराश बैठा हैं,
क्यों यूं उदास बैठा है।
लेख़क : अशोक कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता: प्रभात सौन्दर्य

प्रभात सौन्दर्य
सुबह का है ये मौसम सुहाना ,
अच्छा लगता हैं टहलने जाना.....
सूरज अपनी लालिमा बिखेरता,
फिर इस संसार को निहारता.....
पर्वतों के बीच से सूरज निकलता,
उसकी लालिमा को देख कर जी मचल उठता ......
और चिड़ियों का चहचहाना,
अच्छा लगता उनका यह गाना.....
ह्रदय को हरने वाली यह सुन्दरता,
देख यह सब कितना अच्छा लगता.....
सूरज की ये प्यारी किरणें,
जो पानी में लगती हैं गिरने....
सौन्दर्यता का प्रतीक यह प्रभात,
सबको अच्छी लगती यह बात....
लेख़क : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : ८
अपना घर , कानपुर

कविता : मानव भी दानव हो गया

मानव भी दानव हो गया
क्या हो रहा हैं इस संसार में ,
कैसा शोर मचा हैं इस संसार में ....
अब क्या होगा इस संसार का,
मैं सब यह सोच रहा हूँ .....
मानव
भी दानव हो गया हैं ,
अब खेत भी खलिहान हो गये ....
पहले खेतों में होती थी हरियाली,
मानव के अन्दर आ जाती थी खुशहाली .....
लेकिन अब कहाँ होती हैं हरियाली,
अब मानव की बात हैं निराली .....
लेख़क : ज्ञान कुमार
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

कविता: बाल दिवस

बाल दिवस
बाल दिवस हैं आने वाला,
चाचा नेहरू की याद दिलाने वाला....
चाचा नेहरू को बच्चे प्यार कराते हैं,
बाल दिवस तक याद रखते हैं....
चाचा नेहरू करते थे सबसे प्यार,
सब बच्चे करते थे उनसे अच्छा व्यहार....
बाल दिवस हैं आने वाला,
चाचा नेहरू की याद दिलाने वाला ....
लेख़क: चन्दन कुमार
कक्षा :
अपना घर , कानपुर

सोमवार, 8 नवंबर 2010

कविता :अधिकार

अधिकार

जनमत निर्माण हमारा है ,
मानव-धिकार हमारा है ......
सूचना का अधिकार हमारा है ,
जन कल्याण हमारा है ......
जनता को शिक्षा की राह दिखलाता है ,
वह जनमत निर्माण कहलाता है ......
जहां सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक ,
एवं आर्थिक प्रदान किया जाता है ......
वह मानव-धिकार कहलाता है ,
सूचना का अधिकार हमारा है .......
सभी नागरिकों का प्यारा है ,

लेख़क :मुकेश कुमार
कक्षा : 9
अपना घर

रविवार, 7 नवंबर 2010

कविता :करें तैयारी अच्छी

करें तैयारी अच्छी

सो रहे हैं हम ,
रही है परीक्षा निकट .....
जागें और करें तैयारी ,
लायें परीक्षा में अंक अच्छे .....
जिससे खुश हो जाएँ सब ,
सो रहे हैं हम .....
रही है परीक्षा निकट ,

लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :8
अपना घर

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

कविता :विद्यालय जायेंगे जरुर

विद्यालय जायेंगे जरुर

विद्यालय जायेंगे जरुर ,
डांट पड़े या मार पड़े .....
बरसात में भीगेंगे खड़े-खड़े ,
विद्यालय जायेंगे जरुर .....
मार पड़े तो मार सहेंगे ,
चाहे जितना काम मिले .....
हम सब पूरा काम करेगें ,
विद्यालय जायेंगे जरुर .....
टीचर चाहे जितना डर दिखलायें ,
चाहे जितना कठिन पेपर बनाएं .....
उसको भी हम हल करेगें ,
विद्यालय जायेगें जरुर ......
हिंद निवासी हम मजदूर प्रवासी ,
हम बच्चे हैं हिन्दुस्तानी .....
संसार का उठाएंगे सारा भार ,
लेकर रहेंगे स्वतंत्रता का अधिकार ......
विद्यालय जायेंगे जरुर ....
इसकी उसकी चुगली नहीं करेंगे ,
हम सब मिलकर रहेंगे ......
इस देश पढ़ने का है सबको अधिकार ,
विद्यालय जायेंगे जरुर ......

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

कहानी :सपनों में परियाँ

सपनों में परियाँ

एक समय की बात हैबैजूपुर गाँव में जान नाम का एक लड़का रहता थावह प्रतिदिन स्कूल जाया करता थाउसको परियों की कहानी सुनने में बहुत पसंद थींवह जब भी सपना देखता,उसे सपने में परियाँ जरुर दिखतींउसका एक दोस्त बन्दर था,जिसका नाम जनारदन थाउन दोनों में बड़ी दोस्ती थीएक दिन जान स्कूल से वापस आया और आते ही बिस्तर पर जाकर सो गयाजान सोते हुये यह सपना देखने लगा की वह प्रथ्वी से बाहर,अपने परिवार से दूर,अपने दोस्त जनारदन के साथ वह परियों के देश में पहुँच गया हैवह और उसका दोस्त एक उडनतश्तरी में खड़े हैंऔर उनके आस पास कई परियाँ उड़ रही हैंअब वह दोनों अपने हाथों से चाँद-तारों को छू सकते थेतभी जान को भूख लगीउसने जनारदन से पूछा की क्या तुमको भूख लगी है?हाँ मुझे भी लगी हैजनारदन ने कहातभी वहां पर एक परी उनके लिए ढेर सारी मिठाइयां,फल और खाने की चीजें कई प्रकार की लेकर आयीउन दोनों ने जैसे खाना प्रारम्भ किया ही था,कि जान की माँ ने जान को सोते हुये से जगा दियाजान जैसे ही जगा,उसने देखा कि मैं तोअपने बिस्तर पर बैठा हूंउसका दोस्त जनारदन बाहर बैठा उसके साथ खेलने का इन्तजार कर रहा हैउसकी माँ ने कहा कि जाओ हाथ-मुंह धुल लो और अपने दोस्त के साथ खेलो जाकर,वह तुम्हारा इन्तजार कर रहा हैजान अपनी माँ से कहने लगा कि माँ अगर आप थोड़ी देर और उठाती तो मैं अपने दोस्त के साथ परियों के देश में अच्छा-अच्छा खाना खा लेता,मगर आपने उठा दियामाँ ने कहा अब सपने देखना छोड़ो और जाकर अपने दोस्त के साथ खेलो जाकरठीक है माँइतना कहकर जान अपने बिस्तर से उठकर,हाथ मुंह धुलकर अपने दोस्त जनारदन के साथ खेलने चला गया

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

कविता :एक गाय की प्यारी बछिया

एक गाय की प्यारी बछिया

एक गाय की बछिया नीली ,
आँखे थी उसकी पीली-पीली ....
दिखने में लगती छैल-छबीली ,
भागे तो लगती रंग-रंगीली ....
ताजी हरी घास को वो खाती ,
कभी-कभी वह उस पर सो जाती ....
उसकी माँ जब उसे बुलाती ,
मां-मां करती दौड़ी आती ....
सबको लगती थी वह प्यारी ,
इसलिए नाम था उसका रामप्यारी ....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8
अपना घर