रविवार, 12 जनवरी 2025

कविता :"गुमसुम परिंदा "

"गुमसुम परिंदा "
सोए हुए गुमसुम परिंदा,
अब जाग जाओ तुम| 
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है,
हर एक उम्मीदों पर| 
अब जरा एक झलक देख लो,
अपने अंदर की आत्मा को| 
तुम्हारी हर बातों से दुःख है,
सोए हुए गुमसुम परिंदा| 
अब जाग जाओ तुम ,
तुमने सबको देखा है| 
और देखा है लोगो की कयामत,
अब क्या सोचते हो| 
बस एक ही बात में उलझे रहते हो,
सोए हुए गुमसुम परिंदा| 
अब जाग जाओ तुम,
कवि :पंकज कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर