शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

कविता: वो बचपन का भी किया जवना था।

"वो भी किया जवना था"
हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके, 
वो बारिश की गिरती बूंदे में हमने भी खेले है ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
 बारिश की पानी में नाव को बहाना था ,
तूफान हो या आंधी स्कूल ही था ,
दोस्ती यारी तो वही होती थी ,
घर में तो सिर्फ पापा की ही ख्वाफ चलती थी ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
   की हमने भी मार खाए है पापा से ,
गुस्सा हो के भी खुश रह लिया करता था ,
 नहीं तो पापा की वो मार याद कर लिया करता था। 
उनका गुस्सा भी हम ही दिलते थे ,
उस गुस्से को झेलना भी मेरे काम हो जाता था ,
हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
कवि: गोपाल II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

कोई टिप्पणी नहीं: