रविवार, 29 अप्रैल 2012

कविता :-बागों में आये आम निराले

बागों में आये आम निराले 
बागों में अब आये आम....
उनके बढ़ जायेंगे दाम,
पेड़ों में है, आम निराले....
उनके रंग है, हरे और पीले,
बागों में हम जायेंगे....
तोड़ आम खूब खायेंगे,
आमों से अब उपवन महका....
चिड़ियों से अब उपवन चहका,
आम फलों का राजा है....
जिसको खाने का कुछ अलग मजा है,
आम से आचार और जूस बनाओ....
उसको तुम भरपेट खाओ,
बागों में अब आये आम....
उनके बढ़ जायेंगे दाम,
   नाम : मुकेश कुमार
कक्षा :10 
अपना घर 
  

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

कविता :-मौसम नें बदला मिज़ाज

मौसम नें बदला मिज़ाज
मौसम नें बदला मिज़ाज....
बादलों नें आसमां को दिया साज,
हवा चल रही है, अपने धुन में....
पेड़ों की डाली हिलाए संग में,
खेतों में गेंहू की बाली लहलहाती....
जो किसान के मन को भाती,
मन ही मन सोंचता और कहता....
अन्न से भर दे कोठी दाता,
कहीं धुप है, कहीं छाँव है....
बागों के बीच गाँव है,
हमको लगता है, सबसे प्यारा....
जो है गाँव हमारा,
इस मौसम में यदि पानी बरसा....
बड़े जोर की ठण्ड पड़ेगी सहसा,
ये है मौसम का मिज़ाज...
कोई न जाने कब कर ले, सब पर राज,
नाम :आशीष कुमार 
कक्षा :9 
अपना घर
 

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

कविता :-सहारा

सहारा
इस काले अंधेरे में....
हमें उजाला चाहिए,
आये हुए पतझड़ में....
हमें सहारा चाहिए,
इस तरह अनगिनत....
हममें से निकलते रहेगें,
और कुछ इसी तरह....
इस दुख को सहेगें,
बस इसी तरह....
गर मिलता रहा सहारा,
तो हम ये लेते है प्रण....
जल्द ही दूर हो जायेगा,
ये अशिक्षा का पारा....
नाम :सोनू कुमार 
कक्षा :10 
अपना घर 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

कविता :-एक सरकार

एक सरकार
समय आ गया अब तो....
तुम सब के सब जग जाओ,
सभी लोग देने जाओ वोट....
अपनी एक अलग सरकार बनाओ,
करो चुनाव तुम एक....
जिम्मेदार अपने एक नेता का,
जो दे तुम्हे एक डगर....
सफलताओं से भरे विकास का,
तुम्हारा विकास हो ऐसे कि....
आसमान छु लो तुम,
अपने सपनों का एक....
आसमान बुन लो तुम,
समय आ गया अब तो....
तुम सब के सब जग जाओ,
सभी लोग देने जाओ वोट....
अपनी एक अलग सरकार बनाओ,
नाम :सोनू कुमार 
कक्षा :10 
अपना घर 

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

कविता :-चुनाव

चुनाव 
शुरू होते ही चुनाव के, नेता जी आते....
करके मीठी बातें, है हमें फसातें,
पांच साल के पहले, वे नजर नहीं आते....
आज के नेता बड़े कंजूस,
मार के मक्खी और पीते जूस....
पड़े-पड़े है भाषण देते,
बैठ के गद्दे पर, विस्की लेते.... 
शुरू होते ही चुनाव के, नेता जी आते....
करके मीठी बातें, है हमें फसातें....
नाम :जमुना कुमार 
कक्षा :6 
 अपना घर

कविता :-मानव

मानव 
इस दुनिया खतरनाक प्राणी है मानव....
जो वर्तमान काल में बन गया है दानव,
परमाणु, अणु और हथगोलों को बनाया....
उसकी ले कर मदद हिरोशिमा, नागाशाकी को उड़ाया,
मानव अपने भाग्य का विधाता है....
मानव अपने भाग्य का ज्ञाता है,
सबसे खतरनाक प्राणी, दो पैरों वाला है.... 
सम्पूर्ण विश्व ये, दो पैर वालों से ही डरता है,
पूरी पुस्तक में मानव का चित्र है....
और दो पैरों वाला मानव, वाकई में विचित्र है,
पूरे विश्व में मानव की पहचान है....
इतिहास के पन्नों पर, उसका ही गुणगान है,
नाम :मुकेश कुमार
कक्षा :10
अपना घर

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

कविता :-भ्रष्टाचारी संसार

भ्रष्टाचारी संसार 
जिन्दगी की राहों में....
आँखों की पलकों और निगाहों में,
दुःख सुख ही क्यों होता है....
स्वर्ग क्यों नहीं होता है,
इस भ्रष्टाचार के संसार में....  
पहले बेटा बाद में पिता क्यों होता है,  
पहले बेटा बाद में नाती होता है....

नाम :हंसराज कुमार 
कक्षा :8 
अपना घर 
 

कविता :-समान अधिकार

समान अधिकार 
लड़का हुआ तो ढ़ोल बजाया....
लड़की हुई तो मातम छाया,
लड़की का उसमें दोष है। क्या....
लड़का और लड़की में तो,
फर्क हमने ही किया है....
लड़की को एक बार मौका,
अजमाने तो दीजिये....
उसको समाज में आगे,
एक बार आने तो दीजिये....
उसको अपना हुनर दिखाने तो दीजिये,
उसकी अपनी भी इच्छाएं है....
पूरा करने का मौका दीजिये,
लड़का और लड़की होने पर....
हम समान ख़ुशी में ढ़ोल बजायेंगे,
दोनों को समान अधिकार हम दिलवायेगें....
तभी तो एक साथ दोनों आगे बढ़ पायेगें,
नाम :-मुकेश कुमार 
कक्षा :10 
अपना घर   

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

कविता :-अँधेरी रात

अँधेरी रात
रात के अँधेरे में ....
दिन के सवेरों में ,
मैं सो रहा था ....
अचानक सपनों में ख्याल आया,
हमें उड़ते हुए पक्षियों का ध्यान आया....  
अपने जिन्दगी का एक सवाल उठाया,
तुम कब तक ऐसे जाते रहोगे....
क्या तुम मंजिल पाओगे,
होनी चाहिए कोई एक ख्वाइस....
जिसमें हो मंजिल और लक्ष्य का रहस्य,
नाम :लवकुश कुमार 
कक्षा :8 
अपना घर
 

कविता :-बीते पल

बीते पल 
बीते हुए वो पल....
अभी भी याद आते है,
अच्छी ख़ुशी में भी....
वो हमें रुलाते है,
उस समय थी किसी से....
यारी किसी से दोस्ती,
लेकिन आज इस मेले में.... 
है केवल कवियों की गोष्ठी,
आज भी हमें उनकी....
शक्लें याद आती है,
कभी-कभी चेहरे पर मेरे....
मुस्कान दे जाती है,
पल वो कोशिश करते हैं याद आने की....
पल वो कोशिश करते है रुलाने की, 
नाम :-सोनू कुमार 
कक्षा :10 
अपना घर   

रविवार, 22 अप्रैल 2012

कविता :-देश की आजादी

देश की आजादी
सरसों के खेत में दौड़ रहे हो बच्चे....
देश के भविष्य और मन के हैं सच्चे,
लेकर झंडा सब हाथ में.... 
दौड़ रहे सब मिलकर साथ में, 
झंडा हवा में लहराता है....
देश में फहराया जाता है,
ये तिरंगा देश की शान है....
तिरंगा से भारत महान है,
देश की आजादी को....
फिर से आजाद करना है,
झंडा लेकर साथ में हमको....
लाल किले पर फहराना है,
नाम :-जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा :-8 
       अपना घर     
 

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कविता :-रंग दे बसंती

रंग दे बसंती 
रंग दे बसंती चोला....
हर जगह शहीदों का टोला,
नव वर्ष की इस बेला....
उन शहीद वीरों का मेला,
जिन शहीदों ने अपनी जान पर खेला....
शहीदों के मेले जायेंगे,
अब हर वर्ष हम मनाएंगे....
जोश भरा रग-रग,
दुश्मन को मार गिराएंगे....
अब लगेगा हर वर्ष शहीदों का मेला,
मेरा रंग दे बसंती चोला....
नाम :चन्दन कुमार 
कक्षा :-6 
अपना घर 
                                                                                                                                         

कविता :-अचानक

अचानक 
एक दिन अचानक....
तूफान आया भयानक,  
उस तूफान के चपेट में.... 
बहुत से लोग फंस गए,
जो थे अपने खेत खलियान में....
उड़ गये वो आसमान में,
 जो गए थे अपने घर से....
घर का जीवन चलने के लिए,
वो भी नहीं वापस आ पाए....
अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए,
अचानक ही सब हो जाता है....
किसी का सपना मुश्किल ही पूरा हो पता है....
एक दिन में ही अचानक,
यह घटना बड़ी हो गई भयानक....
पता नहीं इस संसार में,
जीवन है किसका कितना....
अचानक ही सब होता है,
अचानक में ही कुछ न कुछ खो जाता है....
नाम :-ज्ञान कुमार 
कक्षा :-8 
अपना घर     
 

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

कविता :-सरकार हमारी है

सरकार हमारी है 
आज के इन नेताओं से....
और उनके कार्यकर्ताओं से,
परेशान हर व्यापारी है....
क्या करें ,सरकार हमारी  है,
लोग भी अब गरीब हो रहे....
गरीबी का बोझा ढ़ो रहे, 
घर घर यही बीमारी है....
क्या करें ,सरकार हमारी है,
घूँस के बल आज खड़े हैं....
घूँस से ही पले बढ़े हैं,
हर नेता अब भ्रष्टाचारी है....
क्या करें ,सरकार हमारी है,
होने न देंगे अब भ्रष्टाचार....
होगा न  किसी पर अब अत्याचार, 
संघर्ष हमारा ये जारी है....
क्या करें ,सरकार हमारी है, 
नाम :-धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा :-9 
अपना घर 

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कविता :-हम कुछ कर दिखाएगें

हम कुछ कर दिखाएगें
आज भी वहाँ पल रहे हैं....
हजारों नन्हे-मुन्ने छोटे-छोटे बचपन,
जहाँ चल रहीं हैं सर्द हवाएँ....
और झूम रहा है उसमें कण-कण,
आज भी वे ठिठुर रहें हैं....
इन ठंड भरी हवाओं में,
कुछ भट्टों में तो....
कुछ उन्ही घास से बने गाँवो में,
या आज फिर भूल रहें हैं हम....
उन हवाओं और उन गलियों को,
जहाँ गुजरा था हमारा बचपन....
और ईंट की उन भट्ठिओं को,
कोई साथ दे अगर....
इन कठिनाईयों से भरी राहों में,
तो हम कुछ कर दिखायेंगे....
इन वादों और आशाओं में,     
नाम :सोनू कुमार 
  कक्षा :10 
अपना घर

कविता :-गुजरती जिन्दगी

गुजरती जिन्दगी 
हर किसी का बचपन खो जाता है....
पता कहाँ जाकर सो जाता है,
चाह कर भी ढूंढा नहीं जा सकता....
सिवाए पछतावे के आलावा कुछ नहीं किया सकता,
बचपन से जवानी आ जाती है....
जवानी के आते ही नई कहानी आ जाती है,
इस कहानी की रचना करते-करते....
जवानी बुढ़ापे में बदल जाती है,
तब न पेट में आंत होती न मुंह में दांत होता....
सिवाए मरने के अलावा राम का नाम होता,
हर किसी का बचपन खो जाता है....
पता कहाँ जाकर सो जाता है,
नाम :-सागर कुमार 
कक्षा :8 
अपना घर 

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

कविता :-नींद

नींद 
नींद क्यों आती है हमें 
सोने के लिए बुलाती है हमें   
नींद  सपनें में क्यों ले जाती है हमें 
नींद सपना क्यों दिखाती है हमें 
नींद क्यों आती है हमें
सोचों नींद न आती हमारे पास 
तो सोते न माता पिता की गोद में आज 
नींद के बिना है जिन्दगी अधूरी 
नींद के आने से रातें होती हैं पूरी 
नींद की अपनी एक भाषा है 
नींद की अपनी एक परिभाषा है  
नाम :मुकेश कुमार 
कक्षा :१०
अपना घर 

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

कहानी :-पंडित की चतुराई

कहानी :-पंडित की चतुराई 
बहुत समय पहले की एक बात है। किसी एक पास के गाँव में एक पंडित रहता था। और वह पंडित पूरे गाँव में प्रसिद्ध था। इसके अलावा लोग दुसरे पंडितों को पूंछते भी नहीं थे।यह पंडित गाँव का सबसे अमीर पंडित माना जाता था। एक बार उसके घर में एक आदमी आ गया और कहने लगा की पंडित जी आज मेरे घर में कथा करनी है। वह पंडित बोला की ठीक जितने समय आना हो समय बता दीजियेगा मैं उतने ही समय आ जाऊंगा। आदमी नें कहा जब आप खाली हों तब ही चले आइयेगा। पंडित रात भर सोता नहीं था। वह सुबह-सुबह पांच बजे अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर उस आदमी के गेट पर पहुँच गया और उनका गेट खड़खडानें लगा। कुछ ही देर में उस आदमी की नींद खुली उसनें देखा कि अरे पंडित जी आप इतनी सुबह ! यंहा पर पंडित नें बोला आपनें ही तो कहा  था। जब आपको समय मिलेगा तभी चले आना इसलिए मैं चला आया पंडित उस आदमी के ऊपर बहुत गुस्साया और घर वापस चला गया। पंडित बड़ा उदास हुआ। कुछ दिन बाद फिर वही  आदमी पंडित के घर आया और बोला पंडित जी राम-राम पंडित गुस्सा कर बोला क्या है? आदमी नें कहा पंडित जी कथा करनी है। पंडित नें कहा ठीक है और समय बता जाओ कब आना है। उस आदमी नें कहा दोपहर को आ जाना पंडित जी अगले दिन पंडित जी दोपहर को उसके घर पहुँचा। पंडित जी बोले जल्दी-जल्दी दान दक्षिणा करो कथा शुरू किया जाये। पूजा का सारा सामान पंडित जी के पास रख दिया गया। पंडित बोला आप सभी पांच मिनट के लिए अन्दर चले जाएँ मैं थोडा-थोडा पूजा का सामान जरा झोले में रख लूँ। तत्पश्चात, उस झोले की पूजा करके सारा सामान बाहर निकालूँगा। उसी समय सभी लोग अन्दर हो गए। पंडित को रास्ता खाली दिखा तो पंडित नें सारा सामान भरा और झोला उठाया। पांच मिनट में पंडित गायब हो गया । जब पंडित गायब हो गया तो उस आदमी को बड़ा गुस्सा आ रहा था । उधर पंडित तो मन ही मन  मुस्कुराता हुआ घर पंहुचा। जब आदमी पंडित के घर पंहुचा तो पंडित बोला तूनें मुझे कितनी बार परेशान किया है।बालक ये उसी कर्म का फल है। पंडित नें कहा जो व्यक्ति मेरे साथ ऐसा व्यव्हार करता है। मैं उसे ऐसे ही सिखलाता हूँ। इसलिए मेरा नाम चतुर पंडित रखा है।

शिक्षा :-कभी भी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए 

नाम :-जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा :-८
अपना घर  

रविवार, 15 अप्रैल 2012

कविता :-बात

बात 
बात ही बात में.... 
हो गई जूता लात,
एक नें मारा दो जूता....
दूजा बोला तू है कुत्ता,
सुनकर झगडा आ गया....
कुत्ता बोला अरे ओ भईया,
हमनें आपका क्या किया....
जो आपनें हमें कुत्ता कह बुलाया,
एक नें बोला इसनें आपका मजाक उड़ाया....
कुत्ता कह आपको खूब गरियाया,
कुत्ते नें सुन अपनी बुराई....
एक दूजे पर झपट पड़ा भाई,
नाम :-जमुना कुमार 
कक्षा :-6 
अपना घर  

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

कविता :-बात

बात 
चलो चलो...
करते हैं कुछ छुप छुप के बात,   
कैसे कटती है यह रात....
करते हैं कुछ ऐसी बात,
बात भी क्या बात है....
समझने में कुछ खास है,  
यह संसार बात से बना....
बात में कुछ खास नहीं,
बात बिलकुल बेकार है....
जिसको सुनने को कोई नहीं है तैयार,
चलो चलो....
करते हैं कुछ छुप छुप के बात, 
 नाम:-अशोक कुमार
कक्षा :9 
अपना घर
 
 

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

कविता :-इस वर्ष

इस वर्ष 
जब चला था मैं....
घर से निकलकर,
तो देखा आगे थोड़ी दूर चलकर....
एक गाय के बच्चे की लाश पड़ी थी,
उसको खाने की ताक में....
आस पास कई कुत्ते खड़े थे,
अगर ऐसा होता रहा....
इस वर्ष की ठंडी में,
तो नहीं हो पायेगा भण्डारण....
दूध का दूध की मंडी में, 
नाम :-ज्ञान कुमार 
कक्षा :-8 
अपना घर 

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

कविता : चीटीं रानी

चीटीं रानी
चीटीं रानी चीटीं रानी....  
चिंता में क्यों पड़ी हो,
कण-कण जोड़-जोडकर हरदम....
रात दिन करती हो श्रम,
कभी नहीं करती आराम....
सबसे मिलकर रहती हो,
गर्मी जाड़ा हरदम सहती हो....
हम भी मेहनत करना सीखे,
हिल मिल कर हम रहना सीखे....
चीटीं रानी चीटीं रानी,  
चिंता में क्यों पड़ी हो.... 
नाम :जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा :8 
अपना घर

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

बेजुबान जानवर

बेजुबान जानवर 
क्या आप इन बेजुबानो....
को सुन  सकते है,
क्या आप इनकी भलाई....
में कुछ कर सकते हैं,
क्या है इनकी आशा....
इन भले इंसानों से,
क्या आप समझ सकते....
हैं दर्द बेजुबानों के ,
ये बेजुबान जानवर....
कुछ बोल रहे है,
इनकी बातों को क्या....
आप सुन रहे हैं,
दिन पर दिन बड़े-बड़े....
जंगल क्यों काटे जा रहे,
इन बेजुबान जानवरों के....
घर क्यों उजाड़े जा रहे हैं,
पल-पल क्षण-क्षण....
अब ये घटते जा रहे,
मनुष्य जैसे इस दुनिया में....
अत्याचारी बढते जा रहे,
मरे जा रहे हैं जानवर....
बनाये जा रहे हैं बंदी,
आज कल इनके लिए भी....
उपलब्ध है सुविधा चकबंदी,
अब इनकी सुविधा के लिए भी....
अपने हाथ बढाओ,
इस हरियाली हीन धरती पर....
बेजुबानों की दुनिया बसाओ,
इनकी भलाई तुम करो....
तो जरा मन से,
कैसा हो रहा है महसूस....
पूछ कर तो देखो इनसे,
मन ही मन दे रहे होंगे....
ये बेजुबान दुआएं,
शब्दों को नहीं इनकी भावनाओं को....
समझने का कष्ट उठायें,
लेखक :-सोनू कुमार 
कक्षा :-10 
 अपना घर

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

परीक्षा

परीक्षा 
परीक्षा का है ये समय....
याद नहीं अब कुछ होता,
दिन रात जो है रटते रहते....
हैं कहलाते वो रट्टू तोता,
जो दिन भर रटते रहते....
परीक्षा में हैं सब भूल जाते,  
यही एक बड़ा कारण है....
परीक्षा में है नम्बर कम आते,
हर चीज को तुम समझो....
फिर न भुला पाओगे कभी,
हर चीज जो समझ में आयेगी....
अच्छे नम्बर आएंगे तभी,
लेखक :-धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा :-9 
अपना घर 

रविवार, 8 अप्रैल 2012

बसंत ऋतु

बसंत ऋतु
बादल आ गए फिर....
पानी भर कर अपने अंदर,  
रात में था खूब उजाला....
सुबह दिखा आसमान सिर्फ काला-काला,
फिर तो चली हवा-हवाई....
खेतों में सरसों लहराई,
पक्षी उड़े हैं बिना लगाये जोर....
चारों ओर मचा है सर्दी का शोर,
सभी पौंधो में लगी है डाली.... 
किसने पौंधो के पत्ते किये खाली,
फिर बादल जोर-जोर से गरजा....
मम्मी बोली बेटा जल्दी सो जा,
बरसा पानी बहे सभी नाले नाली....
फिर देखा तो पौंधो में कोपें निकली,
देख कर ये सौन्दर्य नजारा मेरे में को भाया....
क्योंकि अब बसंत ऋतु का मौसम आया,
लेखक :-आशीष कुमार 
 कक्षा :-9 
अपना घर   

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

विद्यार्थी

कविता : विद्यार्थी

एक विद्यार्थी....
जो है बड़ा स्वार्थी ,
और एक विद्यार्थी....
जो है सबका सार्थी ,
विद्यार्थी जीवन....
जिसमें बिता सारा बचपन ,
ये पीढ़ी है प्रथम श्रेणी....
कहीं सुलभ है तो कहीं दुर्लभ  ,
इस श्रेणी का है जो मुकाम....
मत होना ऐ तू नाकाम ,
ऐ विद्यार्थी ....
तू न बन स्वार्थी
नाम :आशीष कुमार 
 कक्षा :9 
अपना घर,    

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

कविता : संसार

 संसार 
ये दुनियाँ कैसी,
कोई मोटा तो,कोई पतला.....
कोई अमीर तो,कोई गरीब ,
कोई पढ़ा लिखा तो,कोई अनपढ़....
जो भी जीवन में संघर्ष किया है ,
ओ अपने लक्ष्य को पा लिया है ...... 

लेखक : चन्दन कुमार 
कक्षा : 6
अपना घर   

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

कविता : गर्मियों की छुट्टियाँ

 गर्मियों की छुट्टियाँ

अब आने वाली हैं ,
गर्मियों की छुट्टियाँ...
अब लिखने में मजा आयेगा,
भइया-दीदी को चिट्ठियाँ....
गर्मियों में करेगें खूब मस्ती,
घूमेगें हर शहर,गाँव और बस्ती .....   
गर्मियों में खेलेगें खूब क्रिकेट ,
और लेंगे खूब सारे विकेट .....
बस थोड़ा सा इन्तजार है ,
चार पेपरों को करना पार है ......
साथ में करते रहेगें थोड़ा पढ़ाई ,
क्योंकि आगें है बहुत लड़ाई....

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर    

रविवार, 1 अप्रैल 2012

कविता : सब कुछ खो गया

 सब कुछ खो गया


पंक्तियों की खोज में ,
शरारतें ही खो गयीं....
शरारतें खो जाने से ,
बचपन भी खो गया ....
इन सब के खोने से ,
मुस्कराहट ही चली गयी....
मुस्करानें का मन किया ,
लेकिन मन की चाहत खो गयी ....
पंक्तियों की खोज में ,
सारा संसार ही खो गया....


लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर