बुधवार, 21 दिसंबर 2022

कविता:"माँ से प्यार"

"माँ से प्यार"
दिल में प्यार न हो तो 
सिर्फ एक दिल सूना लगता है 
लेकिन जिसने माँ तुम्हें  
जिंदगी भर चाहा 
उसके बिना पूरा जीवन अधूरा लगता है 
बहुतों को किसी और से 
प्यार करना अखरता है 
कुछ का व्हाट्सप पर जब मैसेज आता है 
तो मन खुश  हो जाता है 
पर जब मम्मी  का कॉल आता है तो 
पूरे दिन याद आता है
क्योंकि प्यार तो बड़े होकर  करते हैं 
पर बड़ा तो माँ ने किया है 
जिसने तुम्हारे लिए जिंदगी भर 
अपना योगदान दिया है 
 कवी: महेश कुमार ,कक्षा: 8th 
अपना घर

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

कविता: " हर मुकाबला "

" हर मुकाबला "

पैरों तले दरार पड़े हैं ,

पर फिर भी सीना तान खड़े हैं ।

आपदा से  लड़ने के लिए ,

जीत की ऊंचाई  चढ़ने के लिए ।

लौट जा तू निराले ,

अब हम न हार मानने वाले ।

चाहे कर दे ऊँची मुश्किलों की  दीवार ,

पर फिर भी कर देंगे हम उसको पार ।

एक नहीं,दो नहीं,

हम करोड़ों से लड़ जाएंगे ।

हर मुकाबला हम जीत के दिखाएंगे ।

कवी: देवराज कुमार, कक्षा; 12th 

अपना घर

मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

कविता: "पढ़ते - पढ़ते"

 "पढ़ते - पढ़ते"
 मैं पढ़ते - पढ़ते ,
किताबों की यादो  में खो गया ।
खोए हुए यादों में देखा की ,
रो - रो के किताबों को भिगो दिया ।
खेला, नाचा और खूब खाया ,
जितना हो सका उतना शोर मचाया ।
लेकिन जब यादों से बाहर आया ,
तो मैंने किताबों को फैला हुआ पाया ।
फिर मैं सोंच में पड गया ,
पता चला की ये उसका कारण है जब ।
 मैं पढ़ते पढ़ते ,
किताबों की यादों में खो गया ।
कवी: गोविंदा कुमार, कक्षा: 6th 
अपना घर 

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

कविता :"अपना घर "

"अपना घर "

अपना घर हैं अपना,

यहाँ रहकर कर सकते हैं ।

पूरा अपना सपना,

पढाई का माहौल है यहाँ ।

यहाँ से अच्छा जगह है कहाँ ?

चारों ओर हैं पेड़ पौधे ।

गमलों में उगे हैं फूल यहाँ,

यहाँ के बच्चे बड़े प्यारे ,बड़े न्यारे ।

जो खुद करते हैं काम सरे,

साफ-सफाई का रखते हैं ध्यान । 

बड़ों न कभी अपमान ।

कवी: अप्तर हुसैन, कक्षा: 5th 

अपना घर  

 

 



रविवार, 11 दिसंबर 2022

कविता: "कौन है वो जिसने बनाया है मेरा संसार "

"कौन है वो जिसने बनाया है मेरा संसार "

कौन है वो जिसने बनाया है मेरा संसार,

कौन है वो जो सिखाता जीने को संसार । 

रास्ते है जैसी कर देती आसान,

 आगे हमें बना देती महान ।

मेरे अँधेरे संसार मे फैला देती उजाला,

क्या कहूँ मै उसे मंदिर या पाठशाला ।

 जब कठिनाइयों से भरा हो यह जमाना,

तब ये सिखाते मुझको ।

इनका तो लगा रहता आना है आना जाना।

 है कहते है इसको ,

ईटा या फिर दीवार । 

 कौन है वो जिसने बनाया है मेरा संसार,

रास्ते है जैसी कर देती आसान । । 

कवी: नीरू कुमार, कक्षा: 6th  

अपना घर

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

कविता: "भरोसा"

  "भरोसा"
भरोसा एक ऐसा शब्द है जो,
धन,दौलत से खरीदा नहीं जा सकता ।
न तो इसे बेंचा जा सकता ,
कई जन्म लग जाते हैं ।
किसी पर भरोसा करने को,
जैसे ही  भरोसा टूट जाता है । 
एक पल में रिश्ता टूट जाता है,
भरोसा एक भयंकर शब्द है ।
 खरीदा नहीं जा सकता ।
कवी: सार्थक कुमार, कक्षा:12वीं 
अपना घर

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

कविता: "सवाल तो आते हैं मन में हजार"

 "सवाल तो आते हैं मन में हजार"
सवाल तो आते हैं मन में हजार,
जो कर देते हैं मुझे लाचार ।
सोंचने में मजबूर हो जाता हूँ ,
कि किस-किस का दूँ जवाब । 
हाँ  एक-दो सवाल हों तो,
शायद  दूँ अपने खयाल ।
पर इन सब चीजों से ,
आखिर कब तक उलझा रहूँगा यार ।
मैं बातें करता हूँ अपने आप से ,
ताकि सुन न ले कोई मेरे विचार ।
सवाल तो आते हैं मन में हजार ,
जो कर देते हैं मुझे लाचार ।
कवी: सुल्तान ,कक्षा: 8वीं 
अपना घर

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

कविता:"मेहनत की कमाई का एक रुपया "

"मेहनत की कमाई का एक रुपया  "

मेहनत की कमाई का  एक रुपया ,

सौ रूपए की कीमत को चुकता  है।

आपकी हर जरूरतों को पूरा करता  है।

मेहनत से कमाया  गया रुपया ,

आपके  हर अरमानों को पूरा करता  है।

 कमाए गए रुपयों पर  किसी का दबाव नहीं रहता,

मेहनत की कमाई का  एक रुपया ,

सौ रूपए की कीमत को चुकता  है।  

जो आपको गरीब से अमीर बना देता है।  

मेहनत की कमाई का  एक रुपया ,

सौ रूपए की कीमत को चुकता  है। ।  

कवी: अमित कुमार ,कक्षा: 8वीं 

अपना घर 


शनिवार, 3 दिसंबर 2022

कविता: "रोशनी"

"रोशनी"
इस रोशनी में भी मुझे ,
अँधेरा सा लगने लगा है।
ये ढालता सूरज भी मुझे अब ,
साथ देने लगा है।
कम्बख्त भी मेरे साथ,
क्या खेल खेला है।
जहाँ मुझे खड़ा होना था,
वहां मुझे गिरा दिया है ।
जिस तरह सूरज शाम को,
ढल जाने का इन्तजार करता है।
उसी तरह ढल जाने की राह में हूँ ।

कवी: सनी कुमार , कक्षा : 11वीं
अपना घर

रविवार, 27 नवंबर 2022

कविता: "आखिर कब तक"

 "आखिर कब तक"
आखिर कब तक हम इन जंजीरों में 
इस प्रकार बंधे रहेंगे 
और क्यों इनकी गोलियां सहेंगे 
मेरा भी हक़ है देश में रहने का 
इन आसमानों में उड़ने का 
आखिर कब तक हमपर अत्याचार 
करेंगे ये सब । 
मेरा भी हक़ है स्वतन्त्र होकर घूमने का 
अपनी मंजिलों को पाने का 
आखिर कब तक ये भूँखा रखेंगे हमें 
कोई फसल उगने को 
अपना नहीं तो गरीबों को ही सही 
आखिर कब तक हम इन जंजीरों में 
इस प्रकार बंधे रहेंगे 
मेरा भी हक़ है शिक्षा पाने का 
स्वच्छंद होकर लहराने का 
आखिर कब तक हम इन जंजीरों में 
इस प्रकार बंधे रहेंगे ।
कवी: सुल्तान कुमार , कक्षा: 8th 
अपना घर
 

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

कविता :"मौसम ने बदल लिया मोड़ "

"मौसम ने बदल लिया मोड़ "

मौसम ने बदल लिया मोड़ ,

गर्मी से सर्दी कर दिया जोर।

सर्दी से बचकर है रहना ,

सर्दी को सहते है रहना।

गर्मी से सर्दी कर दिया जोर,

टाइम का पता नहीं चलता।

कब हुआ सबेरा कब हुआ अँधेरा,

मौसम ने बदल लिया मोड़।

पौलुसन  से और बढ़ रहा है सर्दी,

मौसम ने बदल लिया मोड़। ।

कवी: राहुल कुमार ,कक्षा 9th 

अपना घर

गुरुवार, 24 नवंबर 2022

कविता :"वो तुम्हें नहीं भूली है"

"वो तुम्हें नहीं भूली है"

उसको छोड़कर ,

दोस्तों से गपसप सही  है। 

क्या तुम्हारे पास ,

माँ खातिर एक पल नहीं है। 

जिसने तुम्हे खुद से भी ज्यादा चाहा,

तुम तो उसे भूल गए।

पर उनके दिल में तुम्हारी जगह वहीँ है,

क्या तुम्हे नहीं लगता की।

माँ खातिर दोस्त छोड़ना सही है। 

उसे भूल चाहे याद कर पर ,

एक बात जरूर जान लेना तुम उसे भूल गए हो पर ,

वो तुम्हें नहीं भूली है। । 

कवी: महेश कुमार ' कक्षा:8th 

अपना घर

बुधवार, 23 नवंबर 2022

कवित: " जिंदगी है बहते सागर जैसा "

" जिंदगी है बहते सागर जैसी "

जिंदगी यह बहता सागर की तरह है ।

जिंदगी का कोई तो छोर होगा ,

सागर के बहते लहरों में ,

अपने हौसलों को बनाया है ।

इन नन्ही चीटियों को देखकर,

हर विपत्ति से लड़ने का हौसला आया है ।

अपने लक्ष्य की ओऱ बढ़ते क़म,

मुशीबतों को देखकर पीछे न होगा।

जिंदगी एक बहता सागर की तरह है,

इस जिंदगी का कोई तो छोर होगा ।

कवी: संजय कुमार ,कक्षा 12TH 

अपना घर 

 


मंगलवार, 22 नवंबर 2022

कविता : "रूठ गई वह डाली"

"रूठ गयीं वह डाली"

रूठ गई वह डाली,

जिस पर फूल खिले थे वह निराले ।

सुबह की वह किरण जो ,

पेड़ के मन को कर देती हरियाली ।

वह आज दिख नहीं रही है ,

कौन सी मौसम बन गई उसके लिए पराई ।

पूंछ  रही है वह सबसे ,

क्या हमने कोई गड़बड़ कर दी भाई ।

जिंदगी हो या फिर मौत ,

पलंग बनकर निभाता हूँ ।

जिंदगी में आखिरी समय भी ,

  तुम्हारे शरीर को पावन कर आता हूँ ।

फिर भी मेरी जिंदगी की ऐसी मजाल ,

उखाड़ने के लिए लोग हैं बेक़रार ।

कब पहुंचेगी मेरी लफ्जों की गुहार ,

एक सांस में है मेरे जीवन का संचार ।

फिर भी क्यों रूठ गई वह डाली ,

जिस पर फूल खिले थे वह निराले ।

कवी: विक्रम कुमार, कक्षा 12th 

अपना घर

शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

कविता: " दोस्त "

 " दोस्त "
दोस्त जा रहा है दूर,

पता नहीं कब लौटेगा।

कभी न कभी मुझे,

 उसकी याद सताएगी ।

पढ़ाया, लिखाया,खिलाया, पिलाया,

अच्छे गानों में नाच नचाया ,

पता नहीं कब आएगा उसका साया,

दोस्त न सही एक अच्छा इंसान है ।

वही मेरे लिए गुरु सामान है ।

दोस्त जा रहा है दूर ,

पता नहीं कब लौटेगा,

कभी न कभी मुझे उसकी याद आएगी ।

कवी : मंगल कुमार , कक्षा: 6th 

अपना घर

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

कविता : "पूरी दुनिया देखनी है तुमको "

"पूरी  दुनिया देखनी है तुमको "

अभी तो सिर्फ घर परिवार और गाँव देखा है ।

अभी तो पूरी दुनिया देखनी है  तुमको,

उसमे क्या गलत हो रहा है।

सुधारना है तुमको ,

अभी तो खुद के हक़ के लिए लड़े  हो ,

दूसरों के खातिर लड़ना है तुमको ।

लिंग जाती का भेद हटाकर ,

इस दुनिया को बदलना है तुमको ।

लड़के तो वैसे ही आगे हैं पर ,

लड़कियों के खातिर काढ़ना है तुमको ।

अभी तो सिर्फ घर परिवार गाँव देखा है ,

अभी तो पूरी दुनिया देखनी है  तुमको ।

कवी : महेश कुमार , कक्षा : 8th

अपना घर  

सोमवार, 19 सितंबर 2022

कविता : " डल के ये जो शाम आई है "

" डल के ये जो शाम आई है "

 डल के ये जो शाम आई है |

देख कितने रंग लाई है ,

जगमगा उठा सारा आँगन |

लगता जैसे आया सावन ,

मन मोह लेता  है दृश्य |

मुरझाये फूल भी ,

महकेंगे अवश्य |

एक नया उमंग आई है ,

डल के ये जो शाम  आई है | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर

रविवार, 18 सितंबर 2022

कविता : " शुरू हुआ त्यौहारों का महीना "

" शुरू हुआ त्यौहारों का महीना "

शुरू हुआ त्यौहारों का महीना  | 

शोर गूंजता  चारों ओर ,

ढोल पीटते मस्त मगन में |

मेले की वह चाट -बतासा ,

शुरू हुआ त्यौहारों का महीना  |

कुछ दिन बात दहशहरा के मेले में जाना है ,

भिन -भिन चीजों को गोर से देखना है |

मजे से मेले में आनंद उठाना है ,

शुरू हुआ त्यौहारों का महीना |

कवि : अमित कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर 

 


सोमवार, 18 जुलाई 2022

कविता : "हे दुनियाँ वालों जरा इन पेड़ों को तो बचालो "

"हे दुनियाँ वालों जरा इन पेड़ों को तो बचालो "

 हे दुनियाँ वालों | 

जरा इन पेड़ों को तो बचालो ,

जिसने कि तेरी जीवन से पहले खातिरदारी | 

पर बन गए तुम लोग अत्याचारी ,

काट -काट कर बनाया अपना आशियाना | 

अब पड़ रहा है हर एक सांस के लिए पछताना ,

प्रदूषित कर डाला पूरा हर तरफ | 

अब आ गया हमारा संकट ,

पेड़ थे हमारे जीवन दाता | 

पर हमने तोडा इनसे अपना नाता ,

हे दुनियाँ वालों | 

जरा इस पेड़ों को तो बचालो ,

कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर 

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

कविता : " धूप खिली चारों ओर "

" धूप खिली चारों ओर "

 धूप खिली चारों ओर | 

सुबह -सुबह हुई है भोर ,

हर तरफ है बादल घनघोर | 

बादल देख के नाचे मोर ,

है घर गली में शोर | 

धूप खिली है चारों ओर ,

कर देते मन को झकझोर | 

बादल गरजते आकाश ओर ,

कब पानी लेके बरसे जोर से |

धूप खिली है चारों ओर से ,

कविता : विक्रम कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर

 
                                                                   
 
              
                                               
                     

बुधवार, 29 जून 2022

कविता : "मेरा चाह"

"मेरा चाह"

 मेरा चाह है कि मैं जेई क्लियर करू | 

पर समझ न आए इसके लिए क्या करू ,

चक्कर खा जाता है इतना बड़ा सिलेबस देखकर | 

सोच में पड़ जाता हूँ उन सब को फेककर ,

टाइम मैनेज करना हो जाता है मुश्किल | 

सोच में पड़ जाता है क्या कर पाऊंगा लक्ष्य हाशिल ,

घण्टों विताना पड़ता है पढ़ने में | 

खूब दिमाग लगाना पड़ता है कुछ करने में ,

कविता : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर 



मंगलवार, 28 जून 2022

कविता : " चाह है दूर जाने की "

" चाह है दूर  जाने की  "

चाह है दूर  जाने की  | 

पास से टिमटिमाते तारे को देखने की ,

महकते फूलो की बगिया में बह जाने की | 

लहराते झरनों की लहर में बह जाने की ,

चाह है दूर जाने की | 

अपनी अभिलाषा को पूरा करने की ,

कदमो -कदमो से मिलाकर |

सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने की ,

महकते फूलो की बगिया में खो जाने की | 

चाह है दूर जाने की  ,

कविता : अमित कुमार , कक्षा :8th 

अपना घर  

शुक्रवार, 20 मई 2022

कविता : 26 जनवरी

26 जनवरी

 जान हथेली में लेकर वो चल दिए | 

बीन सोचे वह घर से  निकल लिए ,

चाह भी इस देश को आजाद कराऊ | 

इस भारत को एक स्वतंत्र देश बनाऊ ,

कोई खाया गोली तो कोई लगाया फासी | 

पर दी उन्होने हमें आजादी ,

26 जनवरी को उन्होंने बनाया अपना खास दिन |

याद रखा अपना हर रात -दिन ,

कुछ उनमें  सबके प्यारे |

पर कुछ छुपे हुए है बेचारे ,

कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर


 

शुक्रवार, 13 मई 2022

कविता : " आंधी"

" आंधी"

 किस ओर चली ये आंधी |  

ठण्ड हवाओ का झोखा अपने संग बांधी ,

थोड़ी वर्षा यहाँ भी गिरा जाओ |  

इस भीषड़ गर्मी में हमको न तड़पाओ ,

सारे पेड़ों में मारी है आम की झोली | 

तुम देखका डर गई हमारी पेड़ भोली ,

थोड़ा हमपर रहम है करना | 

सारे आम को तुम मत झोरना ,

खटटे  -मिट्ठे  पके  आम हमारे | 

तेरे आते डर जाते हम सारे ,

झोपड़ियों को तुम मत उड़ा ले  जाना | 

पड़ता है उन्हें फिर दुबारा बनवाना ,

किस ओर चली ये आधी | 

कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

मंगलवार, 10 मई 2022

कविता : "माँ "

"माँ  "

नहीं चाहता धन और दौलत | 

न चाँदी न सोना ,

मुझे चाहिए मेरी माँ का | 

कभी न हो ,

जीवन को त्यागना | 

नहीं चाहता धन और दौलत ,

न चाँदी न सोना | 

क्योकि मेरी माँ है सब से प्यारी ,

माँ की ममता भी अनमोल होता है | 

जिसको नहीं चाहिए खोना ,

ये  भी नहीं चाहता कि |

मेरी वजह  से मेरी माँ को ,

पड़ जाए रोना | 

नहीं चाहता धन और दौलत ,

न  चाँदी न सोना | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

कविता : " दोस्ती उसे बनाओ "

" दोस्ती उसे बनाओ "

 दोस्ती उसे बनाओ | 

जिनमें दोस्ती की लायक हो ,

अच्छे बुरे वक्त में काम आये | 

सफलता को एक राह बन जाए ,

मुसीबतों में पहाड़ बन जाए |  

बुलंद हौसले का त्यौहाररौनक  कराए ,

तारो की तरह टिम तिमाएँ | 

जुगुनू की तरह दोस्ती में फैलाए ,

दोस्ती उसे बनाओ | 

जिसमे दोस्ती का भरोसा हो ,

सूरज की तरह हर जिन्दगी में रौशनी बन जाए | 

विशाल दोस्ती का पहचान बनाए,

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

बुधवार, 9 मार्च 2022

कविता : " होली का त्यौहार"

" होली का त्यौहार" 

 होली का त्यौहार ही | 

कुछ ऐसा है ,

जिसमे सब के चेहरे खिले होते है | 

और रंगलगाने का तरीका तो देखो ,

पहले अबीर फिर रंग लगाते है | 

होली का त्यौहार ही कुछ ऐसा है ,

जिस में बुरा मानने का त्यौहार नहीं | 

सब लोग मिल जुल कर खेलते है ,

होली का त्यौहार ही कुछ ऐसा है| 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

 

सोमवार, 7 मार्च 2022

कविता : "कितना याद गार होगा "

"कितना याद गार होगा "

 ये बिताये हुए पल क्लॉस में | 

कितना याद गार होगा ,

छोटी -छोटी शरारतें करते | 

क्लॉस के बीच में खाना खाते ,

तो कभी पीरियड बेकार करता | 

और दोस्तों के संग मौज मस्ती करता ,

ये सब जाने के बाद याद आएगी | 

वे गुजारे हुए एक पल ,

जीवन मैं नया सीखा जाते है | 

ये बिताये हुए पल क्लॉस में ,

कितना याद गार होगा | 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

 

रविवार, 6 मार्च 2022

कविता : " काश मैं पेड़ होता"

" काश मैं पेड़ होता"

 काश मैं पेड़ होता तो | 

अपनी बात सबको बताता ,

जो हो रहा हम पर अत्याचार | 

उन सबका कोई तो हल निकालता ,

काश मैं पेड़ होता तो | 

अपनी महत्व के बारे में बताता ,

और खुशहाल जिंदगी गुजरता | 

हर समय साथ निभाता ,

काश मैं पेड़ होता तो | 

अपनी बात सबको बताता,

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

शनिवार, 5 मार्च 2022

कविता : " सूरज की ओर कड़कती किरण "

" सूरज की ओर कड़कती किरण "

 सूरज की ओर कड़कती किरण | 

हर जगह को अनजान बना देती है ,

पेड़ -पौधे को सुखा डालता है | 

जीना बेहाल कर देती है ,

जब उस जगह पर पहला बूंद गिरता है |

एक अनजान जगह से हरियाली में बदल जाता है ,

सूरज की ओ कड़कती किरण | 

हर जगह को अनजान बना देता है ,

मन का मनोबल डाउन कर देता है | 

सूरज की ओ कड़कती किरण,

कवि : अमित कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर 

मंगलवार, 1 मार्च 2022

कविता : "वायु प्रवाह "

"वायु प्रवाह "

 जन्म लेते ही हमसे मिल जाए | 

साथ वो छोड़े मरने पर ,

न देखें वो राज महल को | 

और न जाने निर्धन -घर ,

कभी ममता मयी स्पर्श देती | 

कभी चूमे सबके मन को ,

सब को यह एहसास कराये | 

सुख न केवल है दुनियाँ में ,

कष्ट भी मिलता है तन को |

हिन्दू -मुस्लिम को न जाने सब जाने इंसान ,

उसी के दम से दुनियाँ सारी वरना है श्मशान | 

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर

शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

कविता : "गर्मी का मौसम हो गया सुरु "

"गर्मी का मौसम हो गया सुरु " 

गर्मी का मौसम हो गया सुरु | 

कही छाँव तो कही पंखा के नीचे ,

काटेंगे दिन अपना | 

पढ़ाई में तो मन नहीं लगेगा ,

क्योंकि सूरज निकलना हो गया सुरु | 

दिन भर इधर -उधर भटकते रहेंगे ,

कभी रूम में तो कभी लाइब्रेरी | 

सब इंतजार करते है उस समय का ,

जब खेलने का काम होता है सुरु | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर  

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

कविता : " नया कुछ करने का"

" नया कुछ करने का"

 अब जा के मन को राहत मिल रहा | 

फूलो के होटो पर एकनया मुस्कान खिला रहा है ,

चहचाती हुए चिड़िया भी | 

एक दूसरे से मिल रहा ,

गिलहरी की आवाज | 

मन को छू जा रहा ,

मन को न मिले | 

पर गिलहरी को राहत मिल पा रहा ,

ये फाल्गुन के मौसम में मन करता है | 

 कुछ नया करने का ,

आगे बढ़ने का और राह पर चलने का | 

ये फाल्गुन के मौसम में मन करता है ,

नया कुछ करने का | 

कवि : अजय कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर


मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

कविता : "गरजता है बरसता नहीं "

"गरजता है बरसता नहीं "

 गरजता है | 

बरसता नहीं ,

चक्कर घिन्नी -सा घूमता रहता है | 

माथे पर हर बार ,

जाने कहाँ से लेकर आया है | 

वो अपना रंग हर कोई दुसता है ,

आसमान में ठहर गए है | 

बादल अपनी मर्जी का मालिक है ,

गरजता है | 

बरसता नहीं,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर  

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कविता : "सब चाहते है उसका बेटा पढ़ लिख जाए "

"सब चाहते है उसका बेटा पढ़ लिख जाए "

सब चाहते है उसका बेटा पढ़ लिख जाए | 

पढ़लिखकर उँचा नाम कमाए ,

और अपने सोसाइटी में बदलाव लाए |

एक चोर भी यही चाहता है ,

कही उसका बेटा चोरी न सीख जाए | 

सब चाहते है,उसका बीटा पढ़लिख जाये ,

और संसार में एक | 

बड़ा नाम कमाए,

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

कविता : " मैं निकला हूँ अपने तालाश में "

" मैं निकला हूँ अपने तालाश  में "

 मैं निकला हूँ अपने तालाश  में |

कोई नजर नहीं आता आस -पास में ,

कहाँ खो बैठा उनको | 

जो रहता था मेरे पास में ,

मैं निकला हूँ अपने तालाश में |

भूखे प्यासे घूमता रहता हूँ ,

खोजने की कोशिश करता हूँ | 

मैं रहना चाहता था उसको पास में ,

मैं निकला हूँ अपने तालाश में | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर 

कविता : " धुआँ है कितना खराब "

धुआँ है कितना खराब "

 धुआँ है कितना खराब | 

पेड़ -पौधों को कर देता है खराब ,

धुआँ अब नहीं फैलाना है | 

सुद्ध ऑक्सीजन पाना है ,

हमें बिमार अब नहीं पड़ना है | 

अधिक से अधिक पेड़ लगाना है ,

धुआँ है कितना खराब |

पेड़ -पौधों को कर देता है खराब ,

कवि : गोपाल कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

 

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

कविता : "मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ "

"मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ "

 कहाँ से शुरुआत करू | 

आँगन आसमान लंबी -चौड़ी ,

सागर या वसुधरा | 

अपनी मन की चाह को ,

कहाँ से शुरुआत करुँ |

बीत गया सालों -साल ,

मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ | 

देखा था जो आँखों से अब देखनाचाहू न ,

बोला था जो मुँह से अब दोबारा कहना चाहू न | 

गलत सुना हुआ कानो से ,

सुनना और सुनाना किसी को चाहू न | 

अब दोबारा क्यों न सुनू ,

मन की माग कब और कैसे पूरी करुँ | 

कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 6th 

अपना घर 

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

कविता : "माँ की याद आती है "

"माँ की याद आती है "

माँ आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है | 

तेरी वो लोरिया लगता है मुझे बुला रही है ,

कैसे होगी मेरी माँ ये बहुत सताता है | 

फोन पर बात करते वक्त रोना भी आ जाता है ,

वो मुझे अपने गोद में उठाती थी | 

रूठ जाऊ तो बार -बार मनाती थी ,

पता नहीं इतना सारा प्यार मेरे लिए कहाँ से आती थी | 

अपने काम से लौट के ,

मेरे लिए कुछ न तो कुछ जरूर लाती थी | 

जब रूठ जाऊ तो खूब प्यार जताती थी ,

माँ आज तेरी बहुत याद आ रही है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12TH 

अपना घर

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

कविता : "जिन्दगी का सफऱ कहाँ खत्म होगा "

"जिन्दगी का सफऱ कहाँ खत्म होगा "

सागर के बहन में ये जिन्दगी का | 

इस जिन्दगी का कोई ,

तो किनारा होगा | 

मेरी  इस छोटी जिन्दगी में ,

मेरा कोई तो सहारा होगा | 

मैं राह के लक्ष्य के खतीर ,

मुझे उठाने वाला कोई होगा | 

मुझे उस किनारे का ही तो ,

मुझे है इन्तजार है | 

सागर के बहाव में ये जिंदगी का ,

इस जिंदगी का कोई | 

तो किनारा होगा ,

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 11TH 

अपना घर 

 

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

कविता : "जिन लोगो ने जन्म लिया था"

"जिन लोगो ने जन्म लिया था"

 भारत माता की गोद में | 

जिन लोगो ने जन्म लिया था ,

अपने लहू के हर कतरे से | 

भारत को आज़ाद कराया था ,

सीने में गोली खा कर भी | 

अग्रेज़ को मारा करता था ,

भारत माता की गोद में | 

वीरों ने जन्म लिया था ,

आज भी उन लोगो का नाम लिया करते है | 

जिन लोगों ने जन्म लिया था ,

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर 

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

कविता : "अपने मंजिल को पाने के लिए "

"अपने मंजिल को पाने के लिए "

शाम सूरज को ढलना सिखाती है | 

शमा परवाने को जलना सिखाती है ,

गिरने वालों को होती है तकलीफ | 

पर ठोकर ही इंसान को ,

आगे का रास्ता दिखाती है |  

हर तकलीफ से जूझती है ,

अपने मंजिल को पाने के लिए | 

हर गलतियों को माफ करती है,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर 

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

कविता : "उन बीते दिनों को याद करता हूँ "

"उन बीते दिनों को याद करता हूँ "

आज मैं याद कर रहा हूँ | 

उन बीते दिनों को ,

जब हमें चलना तक नहीं आता था | 

याद करता हूँ  ,

उन लम्हें को |

जो अपने गाँव में बिताया है ,

याद करता हूँ  |

उन दोस्तों को ,

जो मेरे साथ खेला करते थे | 

लेकिन आज मैं देखता हूँ ,

उन सब को | 

तो वो बात नहीं रही उन सब में ,

जो बचपन में हुआ करता था | 

कवि : संतोष कुमार , कक्षा : 6th 

अपना घर 

 

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

कविता : "जब -जब मुझको कुछ याद न आता "

"जब -जब मुझको कुछ याद न आता "

जब -जब मुझको कुछ याद न आता | 

 तो तेरी याद आती है ,

मेरी नजरें ढूढे तुझे | 

क्या तू मेरे पास बैठी है ,

जब भी मैं कुछ गलती करता | 

मुझको माफ़ तू करती है ,

लेकिन क्या है खाश तुझमे | 

जो तू मेरी गलती सहती है ,

जब भी मै फोन करता | 

मैं कैसा हूँ ,खाना खाया ,न खाया ,

पहले पूछती हूँ | 

मेरी माँ तू ही तो है ,

जो मुझसे प्यार करती है | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर 


मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

कविता : "कल -कल करते है सब "

"कल -कल करते है सब "

कल -कल करते है सब | 

फस गए है हम अब ,

हर काम में आ जाता है कल | 

पर कब आता है ये कल ,

काम से बचने का अच्छा तरिका | 

सबका कल इसी कल पर टिका ,

हर चीज में होता है कल | 

जीवन बिता पर ख़त्म न हुआ ये कल ,

किसने ये शब्द बनाया | 

सारी दुनियाँ को इसने है सताया ,

कल -कल करते है सब | 

कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

कविता : " ये कोरोना कब जाएगा "

ये कोरोना कब जाएगा "

 ये कोरोना कब जाएगा | 

एक साल जाता है ,

और दो साल के लिए आता है | 

पूरे स्कूल भी हो गए है बंद ,

ऑनलाइन में नहीं लगता है मन | 

सब का पढ़ाई हो गया है भंग,

 कोरोना कब होगा कम | 

ये कोरोना कब जाएगा ,

कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 7th 

 अपना घर


 

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

कविता : "मैं असफलता से जूझ रहा था "

"मैं असफलता से जूझ रहा था "

मै बैठकर कुछ सोच रहा था | 

 मंजिल की राह में कितना जूस रहा हूँ ,

छोटी - छोटी असफलता से जीवन में | 

कितना मुसीबतों से लड़ना पड़ रहा है ,

 कभी उदास होकर , रूम में रोता रहता हूँ | 

तो कभी खुद को मोटीवेट करता हूँ ,

खुद पर भरोसा रखकर मैं | 

और कड़ी मेहनत मैं लग जाता हूँ ,

हर एक चीज़ में ख़ुशी को तलासे करता हूँ | 

काश वो एक दिन तो आयेगा ,

जब असफलता भी मंजिल को कदम चूमेंगी | 

मैं बैठकर कुछ सोच रहा था,

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

कविता : "ये भारत का हर एक लाल कहता है "

"ये भारत का हर एक लाल कहता है "

ये भारत का हर एक लाल कहता है | 

 कि उनके दिल में हमेशा ,

भारत का नाम रहता है | 

भारत माता के लाल बनकर ,

वो हरदम आगे बढ़ते जाते है | 

और जब उनसे कोई कुछ पूछता है ,

तो वो खुद को हिन्दुस्तानी बताते है | 

आओ मेरे भारत के भाई एव बहनों ,

हम सब एक साथ भारत माता के नारे लगाते है | 

जिसके लिए भगत ,सुभाष ने प्राण गवाँए थे ,

ये भारत का हर एक लाल कहता है | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर


सोमवार, 24 जनवरी 2022

कविता : "पेन हमारा कितना प्यारा "

"पेन हमारा कितना प्यारा "

पेन हमारा कितना प्यारा | 

तुम हो हम सबका सहारा ,

तुम से हम लिखा पढ़ी करते है | 

तुम से हम हिसाब किताब करते है ,

पेन हमारा कितना प्यारा | 

पेन को अपने साथ रखते है  ,

क्यों कि पेन होता  दोस्त हमारा | 

पेन जिस कागज पर चल जाता है ,

समझ जाओ वह कभी नहीं मिटता है | 

पेन हमारा कितना प्यारा ,

तुम हो हम सबका सहारा| 

कवि : निरंजन कुमार , कक्षा : 5th 

अपना घर  


गुरुवार, 20 जनवरी 2022

कविता : "काश मेरा वह वक्त बदल जाये "

"काश मेरा वह वक्त बदल जाये "

काश मेरा वह वक्त बदल जाये | 

 शदियों से बन्दी जंजीर की ताला फीसल जाये ,

मैं आजाद हो जाऊगा | 

काश इस जिंदगी में कोई नई मोड़ आ जाये ,

पेरान रात्रि में जहाँ कोई न हो  | 

पेड़ शांत हो , आसमा में चद्रमा खोई हुई हो ,

बस मुझे उस पथ पर रौशनी दिखा जाये  | 

काश मेरा वक्त बदल जाये ,

इस मजबूर वाणी  , बनजर प्राणी में | 

कही से पानी आ जाये ,

फैल जायेंगी सारे जहाँ | 

सवर जाये वह पेड़ , खिल जायेगे वह फूल ,

काश इसका वह वक्त  आ जाये | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

बुधवार, 19 जनवरी 2022

कविता : "चलो पतंग उड़ाए "

"चलो पतंग उड़ाए "

चलो पतंग उड़ाए | 

इस महीने के माघ में ,

कभी बाएँ ,कभी दाएँ |

कभी नीचे ,कभी ऊपर ,

पतंगों को हम खुब लड़ाएं | 

एक दुसरे के डोरे काटे ,

सब बच्चे आंनद उठाए | 

इस मौसम के महीने में ,

चलो पतंग उड़ाए | 

कवि : सनी कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

सोमवार, 17 जनवरी 2022

कविता : "मेरा भारत कब ऐसा होगा "

"मेरा भारत कब ऐसा होगा "

मेरा भारत कब ऐसा होगा | 

जब सब पढ़े होंगे ,सब बढ़े होंगे ,

और सबके योगदान की कीमत | 

इस पर पैसो से बढ़कर होगा ,

मेरा भारत कब ऐसा होगा | 

जब सब के चेहरे पर ,

एक नया मुस्कान खिला होगा | 

जब सभी लड़कियों को ,

पढ़ने का अधिकार मिला होगा | 

मेरा भारत कब ऐसा होगा ,

जब बेटी के जन्म पर | 

ख़ुशी मनाया जाएगा ,

और शादी में पैसो का  दहेज़ | 

बंद कराया जाएगा ,

ये वक्त कब आएगा | 

जब सबको अपना -अपना अधिकार मिला होगा ,

मेरा भारत कब ऐसा होगा | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

 

शनिवार, 15 जनवरी 2022

कविता : "ये खिलखिलाते से चेहरे"

"ये खिलखिलाते से चेहरे"
ये खिलखिलाते से चेहरे पर | 
एक अनमोल सी मुस्कान खिली ,
खेल की मैदान में सोर उठी | 
छक्के -चौक्के की बरसात हुए ,
ढोल नागारे लगे बजने | 
छोटे -छोटे बच्चे लगे नाचने ,
लड्डू -पेड़ा लगे बाटने | 
ख़ुशी बाटने लगे हर ओर ,
ये खिलखिलाते से चेहरे पर | 
एक अनमोल सी मुस्कान खिली ,
कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 11th 
अपना घर

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

कविता : "कवि का एक मक्सद होता है "

"कवि का एक मक्सद होता है "
कवि का एक मक्सद होता है | 
उसके लिखे हुए पंक्तियाँ भी ,
 मुर्झाए को भी खिला देती है | 
हक़ीक़त में बदलना हो ,
तो देखते है सपने दिन -रात | 
क्योंकि पंक्तियाँ भी होती है कुछ खाश ,
कवि ऐसे ही नहीं बन जाते | 
उस कविता में ढालना पड़ता है ,
बस चार लाइनों में लिखा रहता | 
जैसे झरना गिरता हो कही आस -पास ,
यह कवि का संदेश है | 
मत भागों किसी के पीछे ,
खुद पर रखो विश्वास | 
कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7th 
अपना घर
 

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

कविता : "चमकता सूरज "

"चमकता सूरज "
चमकता हुआ सूरज | 
आज डूबने को है ,
कल यही सूरज | 
एक नया सवेरा लाने को है ,
कौन जानता है  | 
 जो आज हम सूरज देख रहे है ,
कल शायद हम न देखे | 
लोग सोचते  है ,
आज जो सूरज देखा  है | 
वो फिर कल निकलेगा ,
लोग सोच में रहते है | 
एक नई उम्मीद की ,
एक नई चमकती हुई रोशनी  की | 
शायद हम आज कुछ कर जाए ,
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11th  

बुधवार, 12 जनवरी 2022

कविता : "आ गई रौनक उन पौधों में "

"आ गई रौनक उन पौधों में  "

आ गई रौनक उन पौधों में |

जो कब से पड़ा था बेजान ,

गरज -गरजकर बरसा ऐसे | 

जो खिल -खिला उठे ,

मुड़ झाए हुए पौधे | 

इस बेमौसम बारिश ने ,

दे दिए एक ऐसा सौगात | 

जो पूरी उम्र रहेगा उन्हें याद ,

आ गई रौनक उन पौधों में | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर


मंगलवार, 11 जनवरी 2022

कविता : " आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा"

" आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा"

कुछ बातें आओ मै तुमको सुनाता हूँ | 

इस सुनसान में नहीं आओ ,

तुम्हे सपनो के दुनिया में ले जाता हूँ | 

चाँद -तारे के गलियारों में तुम्हे घुमाउँगा ,

अगर वक्त बचे तो सूरज के घर भी ले जाउँगा | 

तितलियोँ से मिलाकर उनसे बाते करवाउँगा ,

रैंबो को बहका कर उसके रंग चुरा लाऊंगा | 

फूल के पंखुड़ियों से नाव बना कर ,

तुम्हे उस छोर ले जाऊंगा | 

ये बात मैं सबको बताऊंगा ,

आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर

 


सोमवार, 10 जनवरी 2022

कविता : " माँ "

 " माँ "

जब आँख खुली थी आँगन में | 

तो माँ का एक सहारा था ,

माँ का नन्हा दामन मुझको | 

दुनिया से भी प्यारा था ,

उसी गोद में रहना हर पल | 

मेरा आसमान में उड़ने जैसा था ,

चाहे कितना भी हो जाऊ बड़ा | 

आज भी तेरा बच्चा हूँ , और कल भी बच्चा था ,

जी करता माँ रहू मैं तेरे पास हर पल | 

जब आँख खुली थी आँगन में ,

तो माँ ला एक सहारा था | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

रविवार, 9 जनवरी 2022

कविता : "चाह होती है "

"चाह होती है "

चाह होती है | 

सभी के दिलों में ,

कठिन से कठिन | 

मंजिले पाने की ,

सपनो को सजाए रखे है | 

अपने दिलों में सपनो से ही आगे बढ़ने की ,

चाह होती है ,

सभी के दिलो में | 

कवि : गोपाल कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

शनिवार, 8 जनवरी 2022

कविता : " नया साल "

" नया साल "

ये आखिर नया साल है क्या | 

जो इतने जोश और जुनून से मनांया जाता है ,

त्यौहार मनाने को बहुत सारे है | 

पर उनमे जोश और उत्साह देखेवह जाते ,

आखिर नया साल पर ही क्यों | 

क्योकि इस दिन नई शुरुआत करते है ,

नई सोच होते है | 

नई विचार होते है  ,

और नई हौसला होते है | 

मंजिल को पाने के लिए ,

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

 

शुक्रवार, 7 जनवरी 2022

कविता : "कोरोना का आया तीसरी लहर "

"कोरोना का आया तीसरी लहर "

कोरोना का आया तीसरी लहर | 

मजदुर काम करते दिन और दोपहर ,

जिसको होता वो जाते कहर | 

कोरोना का आया तीसरा लहर ,

कोरोना देगा मुश्किल दंड | 

कोरोना ने स्कूल को कर दिया था बंद ,

मौसम को बदल देता | 

हवा का लहर ,

कोरोना को जंग से | 

मिटाने में लगे है दिन और दोपहर ,

कवि : अजय कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

 

गुरुवार, 6 जनवरी 2022

कविता : "नए साल"

"नए साल"

नए साल की हार्दिक सुभकामनाऍ सभी को | 

विश करता हूँ दिल से तुम को ,

अब पुराने साल तो बीत गया | 

जो होना था वो हो  गया ,

अब जोर मत डालो गुजरे हुए दिन पे | 

सोचना है कुछ  नया करने का ,

 अब सुरु हो गया जिंदगी का दूसरा पाठ | 

बस जो करना सोच समझ कर करना है ,

लोगों में तो उमगें लाना है पर | 

साथ -साथ ही पढ़ना लक्ष्य हमारा है ,

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

बुधवार, 5 जनवरी 2022

कविता : "जिन्दगी इक रास्ता है "

"जिन्दगी इक रास्ता है "

जिन्दगी इक रास्ता है | 

जिसपे चलना आना चाहिए ,

कुछ करो य न करो लेकिन |

कुछ कराना व करना आना चाहिए ,

इस जिन्दगी के रास्ते में | 

बहुत से गलत रास्ते होते है ,

लेकिन उसमें कौन सा रास्ता सही है | 

आपको पहचानना आना चाहिए ,

इन्हीं रास्ते में | 

कुछ गढ्ढे व कुछ चढ़ाव भी होते है ,

जिसमें आपको उतरना | 

और चढान आना चाहिए ,

जिन्दगी इक रास्ता है | 

जिसमें चलना आना चाहिए ,

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

मंगलवार, 4 जनवरी 2022

कविता: "मंजिल"

"मंजिल"

कितना भी पास हो हमारी मंजिल | 

उसे पाना आसान नहीं ,

जिंदगी की हर एक मोड़ | 

सीधी नहीं होती ,

थक जाना थक कर फिर चलना | 

रुकने का जहन में कभी नाम नहीं ,

पसीने से लथपत हो जाना | 

 पर जिंदगी और मंजिल के ,

रास्तें पर न रुकना | 

दर्शाता है हर एक व्यक्ति की ,

मेहनत को और शाहस को | 

कभी भी अकेले न छोड़ना ,

कवि : समीर कुमार , कक्षा :11th 

अपना घर

सोमवार, 3 जनवरी 2022

कविता : "बिन हौसलो के"

"बिन हौसलो  के"

बिन हौसलो  के बिना | 

जिन्दगी सफल नहीं है ,

कठनाइयों से लड़ना पड़ता | 

बातों को सुनना पड़ता है ,

उम्मीदों को जगाना पड़ता है | 

बिन हौसलो के बिना ,

जिन्दगी सफल नहीं है | 

लोग तुम्हें रोकेंगे उस ओर जाने से ,

पर उम्मीदों को मत खोने देना | 

जिन्दगी में सफल होने के लिए ,

कवि : अमित कुमार , कक्षा :7th 

अपना घर