मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

कविता : अब का सोचना

" अब का सोचना "

कल को  क्या अब सोचना, 
वो तो यूँ ही  गुजर गया | 
तैयार रहना है अब हमें,
आने वाले कल के लिए | 
आने वाला जो कल है,
 शायद कल बदल जाए, 
और किसी की मिट  जाए | 
किसने सोचा होगा उस कल को,
क्या होगा उस कल को | 
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

कविता: ऐ खुदा कुछ ऐसा कर

" ऐ खुदा कुछ ऐसा कर "

ऐ खुदा कुछ ऐसा कर, 
कि मेरी जिंदगी सुधर जाए | 
काश कुछ ऐसा हो, 
जिस पर मैं चल सकूं | 
की झुक जाए सारा संसार 
तेरी ही बल पर जिऊँ,
तेरी ही शरण में मरूँ | 
काश कोई दे रह मुझे, 
चाहे जिऊँ या  मरूँ | 
ये परवाह नहीं मिझे, 
तेरी ही आचरण में रहूँ  | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर 
कवि परीचय : शांत स्वभाव के रहने वाले नितीश कुमार बिहार के गया जिले से अपनाघर में पढ़ाई के लिए आय हैं | कवितायेँ भी अच्छी -अच्छी लिखने लगे हैं २०१६ में पहली कविता  लिखी थी और आज उससे बेहतर | 

कविता: हैं बेचैन सभी

" हैं बेचैन सभी "

घर जाने को हैं बेचैन सभी, 
घर वाले इंतज़ार करते होंगें सभी | 
तड़प रहा हूँ यहाँ बेकरार, 
घर हो चाहे या हो बिहार | 
घर तो जाना है एक बार, 
करते होंगें मेरी फरियाद |  
आती है हर पल घर की याद | | 

कवि : संतोष कुमार , कक्षा 4th , अपनाघर 

कवि परिचय : कक्षा 4th में ही कविताएं लिखने लगे है तो ऐसा ही लगता है की आगे चलकर एक अच्छे कविता लेखन बनेगें | इस कक्षा में भी अच्छी कवितायेँ लिखते हैं | पढ़ाई करने के साथ - साथ एक कविकार बनना चाहते हैं 

कविता : जब सुबह मैं जागा

 " जब सुबह मैं जागा "

जब मैं सुबह सुबह -जागा,  
बिस्तर छोड़कर व्यायाम को भागा | 
तब बज रहे थे सुबह के चार,, 
बह रही थी ठंडी -ठंडी हवा,
चिड़िया उड़ रहीं थी पंख पसार | 
मानों प्रकृति कुछ रही हो, 
क्या घूमना चाहते हैं संसार | 
मैं तो था बिलकुल तैयार, 
लेकिन जब सपना टूटा तो | 
सब कुछ हो गया बेकार |  

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


 कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार जो की बिहार जिला के एक मजदूर परिवार से यहाँ पढ़ने के लिए आएं हैं ताकि वह भी दिखा दे की केवल जिसके पास खूब पैसा हो वही केवल पढ़ाई कर सकता है | खेल में भी  बहुत अच्छे हैं | कवितायेँ लिखने के साथ- साथ डांस करना भी बेहद पसंद है |  

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

कविता :छोटे - छोटे हाथ हमारे

"छोटे - छोटे हाथ हमारे"

छोटे - छोटे हाथ हमारे, 
फिर भी करते काम सारे | 
कूड़ा हम उठाते हैं, 
स्वच्छ हम बनाते हैं | 
भारत बहुत बेकार हो गया,
कूड़े का यहाँ भंडार हो गया  | 
कूड़ा न हम फैलाएंगे, 
स्वच्छ भारत हम कहलाएंगे | 


कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 6th , अपनाघर 

शनिवार, 14 अक्टूबर 2017

कविता: माँ का प्यार

"  माँ का प्यार  "  

मन करता है मैं छोटा बन जाऊँ, 
माँ का प्यार दोबारा पाऊँ | 
उंगली पकड़कर चलना सिखाती, 
नया संसार की बात बताती | 
क ,ख ,ग पढ़ना सिखाती,
एक से बढ़कर सपने दिखती | 
इस प्यार की प्यासी सारी दुनिया,
माँ ने दुनियाँ को सहराया | 
वो छोटी सी भी मुस्कराहट तेरी, 
हर माँ को ख़ुशी रौशनी देती | 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर 

कवि परीचय : यह हैं सार्थक कुमार जो की बिहार राज्य से अपनाघर पढ़ने के लिए ए हुआ है | दौड़ लगाना बहुत पसंद हैं | पड़े में बहुत अच्छे हैं | 

कविता: नई किरण

 " नई किरण " 


निकला नया सूरज जब,
नई किरणे कमरे में आई तब | 
मैं तो यूँ ही सोया हुआ था, 
सपनों की दुनियाँ में खोया था | 
प्यारी से एक आवाज़ आई, 
लगता था कोई जगाने है आई | 
थोड़ी गुनगुनाहट सी आवाज़ आई, 
बिस्तर से कोई जगाने है आई | 
रेशम की डोरी नया  संदेशा लाई, 
प्रेम का धागा बांधने है आई | 

कवि : संतोष कुमार , कक्षा : 4th , अपनाघर 

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

कविता : अपने आप को पहचानो

 " अपने आप को पहचानो "

इंसान अपने आप को पहचानो, 
अंदर छिपे हुए रहस्य को जानो | 
इंसान अपने आप को पहचानो, 
खुद करो काबिलियत जगजाहिर, 
जिसमें हो तुम सबसे माहिर |  
कुछ बिगड़ा नहीं ,कुछ गया नहीं, 
बात है यही सही ,खुद पर दया नहीं | 
हुनर भरा है कूट -कूट कर, 
रो रहे हो खुद से रूठकर |  
एक चीज करने की ठानों, 
इंसान अपने आप को पहचानों | 
अंदर छिपे हुए रहस्य को जनों | |

कवि : रविकिशन , कक्षा : 8th ,अपनाघर 

  
कवि परिचय : यह हैं रविकिशन जो की बहुत हसमुख है हमेशा हंसी इनके चेहरे पर रहती है | खेल में दौड़ /रेस पसंद है | कवितायेँ हमेशा अच्छी लिखते हैं | पढ़ाई के लिए हमेशा एफर्ट करते रहते हैं | बिहार राज्य से बिलोंग करते हैं | अपने परिवार की हमेशा देखभाल करता है | 

कविता : घबराइए मत

" घबराइए मत "

अगर ख्याल हो बड़ी तो घबराइए मत,
लाखो सपने पहले से ही सजाइये मत | 
मेहनत और लगन बरक़रार रखिये,
 अगर कदम रखा है अपने हौसलों से | 
तो वापसक़दमों को  लौटाइये मत, 
कुछ चलने के बाद विचार मन में आएंगे | 
लेकिन उन विचारों से लडख़ड़ाईये मत | | 

कवि : देवराज कुमार  ,कक्षा : 8th ,अपनाघर 


कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार ,कक्षा ५ से ७ तक इनमें एक ऐसी सिखने की लगन जाग उठी है कि  हर वक्त कुछ नया सिखने की कोशिश करते हैं चाहे वह डांस करना हो या फिर किसी प्रोग्राम में ऐंकरिंग करना हो इसके लिए हमेशा आगे रहते हैं |  खेल में भी बहुत अच्छे हैं | कवितायेँ तो गजब की लिखते हैं | 

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

कविता : जब अपना देश था गुलाम,

" जब अपना देश था गुलाम" 

जब अपना देश था गुलाम, 
अंग्रेजों का था यहाँ कोहराम | 
देश में न थी कोई खुशहाली, 
देशवासियों पर करते थे अत्याचारी | 
गाँधी ने देशवासियों का साहस बढ़ाया 
अपने हक़ के लिए विरोध करवाया | 
खाकी धोती और घड़ी लटकाये ,
जीवन में सत्य अहिंसा अपनाये | 
अंग्रेजों को कर दिया मजबूर ,
जाना पड़ा भारत छोड़कर दूर | 
स्वतंत्र हुआ अपना भारत देश,
खुशियों से भर उठा भारत देश | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा 8th ,अपनाघर 


कवि परिचय : हमेशा पढ़ाई में रूचि रखने वाले ये  हैं प्रांजुल कुमार | औरों के साथ हमेशा दोस्तों के तरह बातें करते हैं | कविताएं लिखने मैं रूचि रखते है | खेलने में वॉलीबाल बहुत पसंद है | 

कविता : आदत से लाचार

" आदत से लाचार " 

लोग हो गए हैं आदत से लाचार, 
इसीलिए गंगा को कर दिया है बेकार | 
एक नहीं नालें  बहाये हैं हज़ार, 
तभी मिलते है पिने को पानी बेकार | 
इसीसे बीमारी उत्पन्न हो रही है हज़ार, 
डॉक्टर के बढ़ गए हैं पगार | 
कुछ नहीं करवा रहे हैं सरकार, 
सिर्फ करते हैं फर्जी का प्रचार | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 6th , अपनाघर
कवि परिचय :- यह बालकवि कामता कुमार इन्होंने कवितायेँ लिखना कक्षा 5 से लिखना शुरू किया था और आज के दिन ये बहुत अच्छी कवितायेँ लिखने लगे हैं | कभी यह छात्र ईंट भठ्ठों में मिटटी से खेला करता था लेकिन अपनाघर की मदद से यह एक बहुत अच्छा छात्र बन गया है पढ़ाई में रूचि दिन पर दिन बढ़ती जा रही है | खेल में क्रिकेट बहुत पसंद है लोग इनको प्यार से जॉन्टी रुट कह कर पुकारते हैं | 

बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

कविता : पृथ्वी निराली

 " पृथ्वी निराली  "

सुंदर सा संसार हमारा, 
जिस पर बसा है दुनिया सारा | 
ढूंढ आए और जग सारा,
कहीं नहीं मिला पृथ्वी जैसा सहारा | 
पृथ्वी बानी खुली आसमानों में, 
तारे टिमटिमाएँ रत में | 
दिन में खो जाता है तारा, 
फिर न दिखाई देता तारा | 
क्योंकि पृथ्वी है सुंदर निराला | | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर

 कवि परिचय : यह हैं नितीश मांझी ये बिहार राज्य से यहाँ पढ़ने के लिए आये हैं | विज्ञान और अंतरिक्ष के बारे में पढ़ने की बहुत रूचि रखते है | कवितायेँ भी अधिकतर अंतरिक्ष पर लिखते हैं | बहुत ही शांत स्वभाव के रहने वाले नितीश के माता - पिता मजदूरी का कार्य करते हैं | क्रिकेट और फुटबॉल खेलना पसंद करते हैं | 

शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

कविता : वो सुबह कब आएगी

 " वो सुबह कब आएगी "

वो सुबह कब आएगी,
जब सारी दुनियाँ खुशियाँ मनाएंगी |  
सारे  सरहद ख़त्म हो जाएंगे, 
दुश्मन भी अपने भाई बन जाएंगे | 
वो सुबह कब आएगी | | 

जब सारी प्रथाएं दब  जाएंगी,
जाति -वादी की बातें ख़त्म हो जाएंगी | 
जब हर जगह दुआऍं होगी, 
हम सभी पर आशाएँ होगी | 
वो सुबह कब आएगी | | 

दुःख के मंजर न होंगे, 
खुशियों के समंदर होंगे | 
जहाँ अपना पराया छोड़कर, 
देश में एकताएँ होगी |  
वो सुबह कब आएगी | |

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th , अपनाघर

कवि परिचय : यह हैं  प्रांजुल कुमार जो की छत्तीसगढ़ से आए हुए  हैं | मन में सोच के समंदर से भरा हुआ है | ये कविताएं बहुत ही रोचकभरी होती हैं | हमेशा कुछ नया करने की सोचते हैं | गणित विषय को बहुत मनाता देते हैं |