"चाह है दुनियां घूमूं "
चाह है मेरी दुनियां घूमूं ,
हर जगह मस्ती में झूमूँ |
देखूं मैं नई किरणों का शहर,
जहाँ न हो दुश्मनों का कहर |
पद यात्रा से हवाई यात्रा करूँ,
आसमान में जाकर साँसें भरूँ |
जहाँ - जहाँ भी जाऊँ मैं,
सारे संस्कृति को अपनाऊं मैं |
ठंडी गर्मी और झेलूं बरसाते,
घूमूं दिनभर और सारी रातें |
जहां भी जाऊँ ख़ुशी से झूमूँगा,
जिंदगी एक है खुल के जीऊंगा |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th ,अपनाघर
कवि का परिचय : छत्तीसगढ़ के रहने वाले ये हैं प्रांजुल | अपनाघर का सदस्य है | इनको कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | अपनी हर एक कविता को मन से लिखते है | खेलने का भी शौक है | इनके परिवार वाले मजदूरी का कार्य करते है | अपनाघर में रह कर ये अपनी शिक्षा को और भी मजबूत बना रहे है | हमें उम्मीद है कि इनकी कविता जरूर सबको पसंद आएगी |