गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

लेख:- शिक्षा से बनती समझ

शिक्षा से बनती समझ
अपना घर में रहने वाले बच्चे आजकल स्कूल से छुट्टी होने के कारण कुछ दिनों के लिए ईट - भठ्ठो में रह रहे अपने परिवार के पास गए है ताकि वे उनकी कामो में मदद कर सके। आज मै तातियागंज भठ्ठा गया उनमें से २ बच्चों ज्ञान और लवकुश से मिलने के लिए.......... लवकुश के परिवार वाले इस साल भठ्ठो पर काम करने नही आए है इसलिए लवकुश ज्ञान के परिवार के साथ रहकर ईट पथाई में उनकी मदद कर रहा है। जब मै भठ्ठे पर पंहुचा करीब १२ बज रहे थे..... आज धूप की तपिश बदन को झुलसा रही थी... और धूल भरी गर्म हवा के थपेड़े लगातार चेहरे पर अपने होने का एहसास करा जा रहे थे .... सामने लवकुश और ज्ञान मिटटी की गुथाई में लगे हुए थे ( ईट की पथाई के पहले मिट्टी की गुथाई की जाती है) मै उनके बीच पहुच गया। सभी से दुआ सलाम हुई उसके बाद सबसे बातचीत होने लगी ज्ञान के परिवार के सभी लोग आकर आसपास में बैठ गए। बातचीत में लवकुश ने अपने घर वालो से बात करने की इच्छा जताई। मैंने लवकुश से उसके गाँव का फोन न० लिया और अपने मोबाईल से डायल किया... लवकुश की उम्र करीब ११ साल की है कक्षा ५ में पढ़ाई कर रहा है... लवकुश का गाँव दुधिया टांड बिहार और झारखण्ड के सीमा पर बिहार के नेवादा जिले में है । इसी गाँव से झारखण्ड का कोडरमा जिला शुरू हो जाता है। दुधिया टांड पहाड़ के आँचल में बसा एक छोटा सा गाँव है....... ऊँचे - ऊँचे ताड़ के पेडों के बीच और पास के झरने से बह के आती छोटी सी नदी के धारा इस गाँव को और सुंदर बनाती है। काफी देर बाद मोबाइल कोई उठाता है किससे बात करनी है की आवाज आती है... मै मोबाइल लवकुश को दे देता हूँ... लवकुश अपने बारे में बताता है और कहता है घर पे बात करनी है । ५ मिनट बाद बात करने को कहता है। ५ मिनट बाद लवकुश फोन करता है फ़ोन उसकी माँ उठाती है... बातचीत शुरू हो जाती हो जाती है...(उनकी बातचीत अपनी भाषा में होती है मै उसका अनुवाद लिख रह हूँ )
माँ ..पूछती है क्या हाल है
लवकुश... सब ठीक है मै अच्छे से पढ़ाई कर रह हूँ
लवकुश... घर में सब ठीक है ? पिता जी कंहा है ?
माँ.... पिता जी ताड़ी पीने गए है.. और सब घर में ठीक है
लवकुश.... पिता जी को मना क्यो नही करती हो की ताड़ी मत पिया करे नही तो तबियत ख़राब हो जायेगी.... ताड़ी पीना ठीक नही है ये तो नशा है पिता जी को समझाना की ताड़ी ना पिया करे... बोलना की लवकुश ने पीने को मना किया है...
माँ... मना करुँगी औए कह भी दूंगी और बताओ तुम्हारी तबियत ठीक है न खाना पीना सब ठीक है ना
लवकुश... माँ तबियत ठीक है खाना - पीना भी सब ठीक है ... काजल और राहुल ((बहन और भाई ) की पढ़ाई कैसी चल रही है।
माँ.... काजल तो पढ़ने जा रही है राहुल नही जा रहा है दिनभर खेलता है अभी भी खेलने गया हुआ है...
लवकुश
... राहुल को समझाओ की पढ़ने जाए पढ़ना बहुत जरूरी है मै भी जब गाँव आऊंगा तो उसे समझाऊंगा... काजल को बराबर स्कूल भेजते रहना... और माँ गाँव, पड़ोसी और मेरे दोस्तों का क्या हालचाल है...
माँ .... गाँव में सब ठीक है तुम्हारे चाचा की लड़की रेखा की शादी होने वाली है इस माह में और पार्वती की भी शादी हो गई ....
लवकुश... क्या माँ रेखा की शादी हो रही है वो तो बस १२ साल की है इतनी छोटी है और शादी हो रही है तुमने रोका क्यो नही शादी करने से छोटे में शादी करना ग़लत है तुम्हे इस शादी को रोकना चाहिए था....
माँ.... खिलखिला कर हँसती है और कहती है वो छोटी कंहा है १२ साल की है तुमको तो पता है यंहा गाँव में छोटे में शादी हो जाती है ... तुम इतने बड़े हो गए हो की ये सब सोचो...
लवकुश... दुखी होकर मेरी तरफ़ देखता है और कहता है भइया वो अभी १२ साल की है और ये लोग उसकी शादी कर रहे है वो माँ से थोड़ा गुस्से में बोलता है आप लोगो को समझ में नही आता है की छोटे में शादी नही करना चाहिए उससे उसको कितना नुकसान होगा उसको अभी पढ़ना चाहिए था १८ साल के बाद शादी करना चाहिए था... आप लोगो ने ग़लत किया है... काजल को आप लोग पढ़ाई करा कर १८ साल के बाद शादी करियेगा... आपको गाँव में समझाना चाहिए की छोटे उम्र में किसी की शादी ना करे... हम भी जब गाँव आयेंगे तो लोगो को समझायेंगे...
फ़िर लवकुश अपने बुआ, दादी और गाँव के लोगो से बात करता है......
इस बात को सुन कर आज उन चर्चाओ का परिणाम समझ में आता है जो हम लोगो ने अपना घर में इन तीन वर्षो के दौरान की है अलग -अलग सामाजिक बुराइयों और अन्य मुद्दों पर ... साथ ही किस तरह से उन चर्चाओ से एक छोटे से बच्चे की पूरी सोच और समझ विकसित हो रहा है ये भी देखने को मिला ... शिक्षा का सही अर्थो में शायद यही मतलब होता है.... जो इन्सान को सही दिशा में ले जाए.... आज लवकुश को देखकर लगा की शायद हम सही दिशा में है और अंततः शायद इन बच्चों की मदद से हम एक बेहतर समाज बनाने की कल्पना को साकार कर पाए.... बच्चो की इस ब्लॉग पर आज मै अपने को लिखने से नही रोक पाया इस के लिए माफ़ी चाहूँगा...
महेश, अपना घर, कानपुर





मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

कविता:- नेता जी का मुंह में मच्छर

नेता जी के मुंह में मच्छर
आज सुनी मैंने गजब ख़बर।
नेता के मुंह में अटक गया मच्छर॥
नेता जी भागे खांसते - खांसते।
दौड़े पतली गली के रस्ते॥
पहुँच गए डाक्टर घसीटे के पास।
उसने सोचा दिन है मेरा खास॥
तभी नेता जी टप से तब बोले
जल्दी से अपना मुंह खोले॥
मुंह के अन्दर मेरे मच्छर।
फंस गया है वो उसके अन्दर॥
पकड़ा डाक्टर ने चिमटे से मच्छर।
जोर लगाया उसने कसकर॥
निकल गया फ़िर गले से मच्छर।
फ़िर भी मच्छर रहा सिकंदर॥
डंक टूट गया गले के अन्दर
नेता जी फ़िर बन गए बन्दर॥
खांस - खांस कर हुए बेहाल।
याद आया उनको ननिहाल॥
आदित्य पाण्डेय , अपना घर, कक्षा ६



शनिवार, 18 अप्रैल 2009

कविता:- हमारा अख़बार


हमारा अखबार
कितना अच्छा है, अखबार हमारा,
दुनिया भर की बातें भर लाया।
सुबह आता है जब अखबार,
पढ़ते हैं दुनिया की खबरे भरमार।
हिन्दुस्तान है अखबार हमारा,
हमको लगता है सबसे प्यारा।
सबसे अच्छा सबसे न्यारा,
हिन्दुस्तान अखबार हमारा।
इधर उधर की खबरे लाता,
यूं ही सबका मन बहलाता।
हिन्दुस्तान अखबार हमारा,
सबसे अच्छा सबसे न्यारा।
अक्षय कुमार, कक्षा 6
अपना घर,
बी-135/8, प्रधान गेट, नानकारी,
आई0आई0टी0, कानपुर-16

कहानी:- मेहनत का फल

मेहनत का फल
एक बार की बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था ।वह बड़ा दयालु किस्म का आदमी था वह रोज जंगल में जाता और लकड़ी काटकर लाता और उससे जो बीस पच्चीस रूपये मिल जाते उसी से अपना गुजर बसर करता वह किसान के पास एक विस्वा खेत था वह बेचारा इतना गरीब था कि वह अपना चप्पल जूता भी नही खरीद सकता फिर वह उसके पास थोड़ी बहुत जमीन थी वह भी बंजर पड़ी थी । बंजर के कारण उसके खेत खेलिहान सब सूख गये थे। उसके पास पानी का कोई साधन नही था तो बेचारा वह क्या करता। उसके पास टूटी -फूटी झोपड़ी थी वह उसी में रहता था। एक दिन वह फिर जंगल में गया और उसने कडी़ मेहनत करके लकड़ी काट कर लाया, फ़िर वह बाजार गया और उसने दस हजार की लकड़ी बेच दी फिर उसने दो बैल और दो गाय खरीदी सात हजार रूपये की और खुद के लिए १००० रुपये के बढ़िया कपड़े लाया, और अपने गाय बैलों के लिये भूसा चारा आदि के लिये २००० रुपये रख लिए। वह खुशी से रहने लगा, तभी एक दिन बहुत जोर बारिश हुई, बारिश के कारण नदी, तालाब, खेत खलिहान सब भर गये, अब किसान को बहुत प्रशन्नता हुई। वह बैलों को लेकर अपना थोड़ी बहुत जो खेती थी उसे जोतने लगा, फिर अब उसके पास धन नही था, फिर वह लकड़ी काटने गया। उससे जो पैसा मिला उससे वह अपने खेत के लिये बीज ले आया, फिर वह उसे बो दिया और उसके पास जो गाय थी, वह उसको चारा खिलाता कुछ दिन बाद गाय को एक बछड़ा पैदा हुआ, और अब वह दूध बेचने लगा, फिर उसने सोंचा कि गांव में कोई दूध नही लेगा, और उसने सोचा दूध को कैसे बेचा जाये, उसके पास साइकिल तो नही थी। उसने गेहूं को काटा और उसे पछोर कर बाजार में बेचने चला गया, और उसे बेचकर अपने लिये एक साईकिल लाया। अब वह रोज शहर मे जाकर दूध बेचने लगा, दूध बेचने पर उसे ढेर सारे पैसे मिले, उस पैसों से उसने अपनी टूटी फूटी झोपड़ी बनवा ली। अब वह सुख व शांति पूर्वक रहने लगा। इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की इस दुनिया मे जो मनुष्य मेहनत करता है वही सफल होता है।
आदित्य कुमार, कक्षा 6
अपना घर,
बी-135/8, प्रधान गेट, नानकारी,
आई0आई0टी0, कानपुर-16

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

कहानी:- चींटी की मेहनत


चीटीं की मेहनत
एक बार बहुत तेज बारिस हो रही थी। जंगल के सभी जीव-जन्तु पक्षी भीग रहे थे। बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण वह ठण्ड से कांप रहे थे। जंगल में चारो तरफ पानी ही पानी भरा था। हाथी सोचने लगे कि कितनी जल्दी धूप निकले तो अच्छा हो फिर थोड़ी देर बाद सूरज निकला और धूप चारो ओर तरफ फ़ैल गई । सभी हाथी छाया छोड़ कर धूप में आने लगे, बदन सूखने के बाद धीरे-धीरे सभी हाथी धूप से हटने लगे और इधर-उधर टहलने लगे। कुछ देर के बाद फिर जोर से बारिस होने लगी। इतनी तेज बारिस हुई कि सभी हाथी बहने लगे। एक चींटी पेड़ पर बैठी हाथी का बहना देख रही थी। हाथी ने चींटी से कहा मुझे बचा लो। चींटी ने कहा कि चिंता मत करो मै तुम्हें बचाने आ रही हूँ । यह कहकर चींटी पेड़ से कूद गयी और पानी में बहने लगी बहते-बहते वो हाथी के पास पहुंच गयी। थोड़ी देर बाद बारिस के रूकते ही पानी घट गया और हाथियों का बहना बन्द हो गया। सभी हाथी डूबने से बच गये, थोड़ी देर बाद चींटी ने हाथियों से कहा देखा मैंने तुम लोगों को कितनी मेहनत से बचाया है। यह सब सुनकर सभी हाथी जोर-जोर से हंसने लगे।
कहानी:- आदित्य कुमार, अपना घर, कक्षा ६
पेंटिंग:- मानस कुमार, अपना घर, कक्षा 6

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

कविता:- मेरी कहानी और मेरी परेशानी


मेरी कहानी और मेरी परेशानी
एक बार की एक कहानी।
कहती है यह मेरी नानी॥
पापा कहते हैं लाओ पानी।
मम्मी कहती हैं सुन मेरी बानी।।
भईया कहते बाहर न जाओ।
दीदी कहती यहाँ पर आओ।।
साथ मे खेलो साथ मे खाओ।
साथ ही रहकर गाना गाओ।।
यही सभी मिलके कहते है।
मेरी नहीं कोई सुनते है।।
क्या करू मै सुनकर बानी।
कैसे दूर करु अपनी परेशानी।।

आदित्य कुमार, कक्षा 6
अपनाघर, बी-135/8,प्रधान गेट, नानकारी,
आई0आई0टी0, कानपुर-16

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

कविता:- आम


आम

बात है बहुत पुरानी।
सुनो तो आएगा मुँह में पानी।।
पेड़ों में आम लगे थे।
हम उसके नीचे खड़े थे॥
इतने में हवा का झोंका आया।
आम टप से नीचे आया॥
मैंने झट से उसको पाया।
मुँह में मेरे पानी आया॥
धोकर मैंने उसको खाया।
खाने में बड़ा मजा आया॥
अशोक कुमार
अपना घर, कक्षा 6

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

कहानी:- थरंगा और पतरंगा


थरंगा और पतरंगा
एक बार की बात है । एक जंगल में एक भालू रहता था। जंगल में वह मस्ती से रहता था, ढेर सारे फल और शहद खाकर, आराम से पेड़ के नीचे सोता था। जंगल के सभी जानवर उसे थरंगा कहकर बुलाते थे। थरंगा अपना नाम बुलाने पर बहुँत खुश होता था। पेड़ के नीचे बैठकर वो कहानी और कविता लिखता था। धीरे - धीरे वो जंगल का बहुँत बडा लेखक बन गया। उसने एक कविता लिखी.....
भालू हूँ मै भालू हूँ।
खाता सौ ग्राम आलू हूँ
उसी जंगल में एक खरगोश रहता था। वो दिन भर गाजर खाता और जंगल में जगह - जगह पेंटिंग करता। उसके पेंटिंग जंगल में जगह - जगह बहुत सुंदर दिखाई देते थे। जंगल के सभी उसे प्यार से पतरंगा कहकर बुलाते थे। पेडों पर पर वो घूम - घूम कर मौज करता था। एक दिन थरंगा और पतरंगा दोनों आपस में मिल गए। थरंगा कहानी लिखता और पतरंगा उसमे पेंटिंग बनाकर लगा देता। थरंगा और पतरंगा दोनों मिलकर जंगल में सभी
जानवरों के साथ बड़े मजे से रहने लगे।
कहानी:- स्टुवर्ट, अपना घर, कक्षा ७
पेंटिंग:- जितेंद्र कुमार, कक्षा ६

कहानी :- बूढे की विरासत

बूढे की विरासत
एक बार की बात है, जंगल में एक व्यक्ति रहता था, जो अत्यन्त निर्धन था। उसके पास केवल दो आम और दो अमरूद के पेड़ थे। उन पेड़ों के फलो को बेचकर वो अपना गुजर - बसर करता था। इस तरह करते हुए कई साल गुजर गए और वह अब काफी बूढा हो चला था। उसके कामों में पास के ही गाँव का एक लड़का मदद कर देता था। उसके बदले वह बूढा ब्यक्ति उसे ढेर सरे फल खाने को देता था। उसके आम और अमरूद के पेड़ों में इस साल खूब सारे फल लद गए थे। बूढा किसान सोचने लगा की मै पता नही कब इस दुनिया से चला जाऊ, मेरे बाद इन पेड़ों को कौन देख - भाल करेगा। यही सोचते हुए उसने उस लड़के को बुलाया और उसे अपने पेडो को सौंप कर अपना दम तोड़ दिया। उस लड़के ने उन पेड़ों की खूब सेवा की उन्हें पानी और खाद दिया, पेड़ खूब हरे - भरे हो गए। हर साल पहले से ज्यादा फल पेड़ों पर आने लगे, उन फलों को बेचकर वो लड़का धीरे - धीरे काफी अमीर हो गया। उसने ढेर सारे पेड़ लगाये और सारी दुनिया हरी- भरी हो गई......
मुकेश कुमार, अपना घर, कक्षा 7

रविवार, 12 अप्रैल 2009

ब्यंग:- गाँधी जी के नक्शे कदम पर

गाँधी जी के नक्शे कदम पर....
अध्यापक ने छात्रों से पूछा....... ? हमारा देश गाँधी जी के नक्शे कदम पर चल रहा है इसका उदहारण दो......
एक छात्र ने अपनी जगह से खड़े होकर तपाक से जबाब देते हुए कहा कि ... गाँधी जी ने कहा था कि .... दुनिया में आप हर एक से कुछ न कुछ ले सकते है ..... इसलिए आज हमारे देश के नेता जो देश को चला रहे है.... गाँधी जी के नक्शे कदम पर चलते हुए विदेशियों से कर्ज, धनियों से चंदा और निर्धनों से वोट लेते रहे है और ले रहे है........
राम सिंह , कक्षा 5

कविता:- बसंत का महीना

बसन्त का महीना
बसन्त का महीना कितना सुहाना।
लगे सभी के मन को सुहाना॥
बाग - बगीचों में हरियाली।
खेतों में छाई हरियाली॥
क्यारी के किनारे फूल है॥
नीले - पीले, गुलाबी लाल है।
फूलों के ऊपर तितली है॥
कितनी सुंदर लगती है।
जब तितली आसमान में उड़ती है।
बिल्कुल परियों जैसी लगती है॥
उनको देख के ऐसा लगता।
काश की हम तितली बन जायें॥
उनके संग हम खेल - खेल में।
आसमान में उड़ते जाए ॥
बसंत का महीना कितना सुहाना।
लगे सभी के मन को सुहाना॥

आदित्य तिवारी, अपना घर, कक्षा ६




कहानी:- एक बच्चे की सीख

एक बच्चे की सीख
बहुँत साल पहले की बात है कि एक गाँव में सुंदर नाम का किसान रहता था, उसकी पत्नी का नाम पारो था। शादी के कई साल बाद उनके घर में एक बेटे ने जन्म लिया। सुंदर और पारो दोनों बहुँत खुश हुए , बड़े प्यार से उन्होंने अपने बेटे का नाम राम रखा, धीरे - धीरे उनका बेटा बड़ा हो गया। अब खेतो में काम करने सुंदर और उसका बेटा राम दोनों जाने लगे, लेकिन सुंदर अपने बेटे से सदा कहता रहता तुम आराम से पेड़ की छाया में लेटो खेती - बाड़ी का काम मै ख़ुद कर लूँगा। खेतो में जब पारो खाना लेकर आती थी तो अपने पति को अकेले काम करते देखकर उसे बहुँत दुःख होता था, वह कभी क्रोध में आकर कहने लगती क्या तुम सारी उम्र यूं ही काम करते रहोगे, राम अपना जवान हो गया है उससे भी काम करवाओ। सुंदर हंसकर कहने लगता कि काम करने से मेरा कुछ नही बिगड़ने वाला, पारो गुस्से में बोलती हां आपने शरीर को पत्थर समझ रखा है । सुंदर कहता ला खाना दे.... छोड़ इन बातो को और वो खाना खाने लगता। एक बार सारे गाँव में प्लेग की भयंकर बीमारी फ़ैल गई इसी बीमारी से पारो बेचारी मर गई। सुन्दर बहुँत रोया, कुछ दिनों बाद सुंदर ने अपने बेटे राम की शादी कर दी, और उसके पास चारा भी क्या था। वक्त के साथ सुन्दर बूढा हो गया, उसे बीमारी ने बुरी तरह से जकड़ लिया था, सुंदर का ठीक होने का कोई रास्ता नही था। इसी बीच राम के घर एक बेटे ने जन्म लिया उसका नाम पाल रखा गया, वो अब करीब १० साल का हो गया था। एक दिन राम ने अपनी पत्नी से कहा के ये पिता जी अब हम पर बोझ बन गए है और ये बूढा मरता भी नही की हमको इससे छुटकारा मिले। ऐसा करते है हम लोग इसे जंगल में ले जाकर जिन्दा दफना देते है । राम और उसकी पत्नी दोनों ने ये तय किया कि कल जंगल में जाकर पिता जी को दफ़न देते है। अगले दिन रात को राम अपने पिता जी का हाथ - पैर बाँध कर जंगल ले जाने लगता है, तभी उसका बेटा पाल आ के कहता है की मै भी चलूँगा। राम मना करता है लेकिन जिद के कारण वो पाल को लेकर जंगल की तरफ जाता है। जंगल में पहुच कर राम एक गड्ढा खोदता है और फ़िर अपने पिता जी से बोलता है कि पिता जी अब मै आपको इस गढ्ढे में डालकर आपके सारे दुःख: दूर कर दूंगा । पाल यह सब देखा रहा होता है दादा जी को जिन्दा दफनाना वो पिता जी से बोलता है पापा अब मैंने भी समझ लिया की दुःख दूर कैसे किया जाता है, आप चिंता मत करियेगा आपको मै इससे भी जल्दी दफना कर आपका दुःख दूर करूँगा। राम को अपने बच्चे के मुंह से ये बात सुनकर दुःख होता है उसे समझ में आ जाता है की वो कि वो कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था। राम पिता जी से अपनी इस गलती के लिए माफ़ी मांगता है , और उनको घर वापस लाता है। राम अब अपने पिता जी अच्छे से ख्याल रखने लगता है........
शिवांगी
अपना स्कूल, धामीखेडा, कक्षा ४

जानकारी:_ क्या आपको पता है

क्या आपको पता है....
  • कुत्ता २० हजार हटर्ज की ध्वनियां सुन सकता है जो इन्सान नही सुन सकता है....
  • कार ka दरवाजा जोर से बंद करना गैरकानूनी है स्विटजर लैंड में.....
  • जेम्स बुखानन आज तक अमेरिका के एक मात्र अविवाहित रास्ट्रपति रहे है।
    ध्रुव कुमार, अपना घर, कक्षा 7

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

कविता;- चुनमुन चिड़िया


चुनमुन चिड़िया
आओ बच्चों सुनो कहानी।
एक था राजा एक थी रानी॥
रानी ने एक चिड़िया पाली।
शक्ल की थी वो भद्दी काली॥
कद में तो वह छोटी थी।
पर कुप्पे से मोटी थी।।
गले में था चमड़े की पट्टी।
लड़ने में थी हट्ठी - कट्टी॥
मक्के की रोटी खाती थी।
फुर्र से तब वो उड़ जाती थी॥
रामकृष्ण
अपना स्कूल, भौति, कक्षा 3

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

कविता:- चूहा और बिल्ली


चूहा और बिल्ली
जब बच्चों ने देखा चूहा।
अपने बिल में भागा चूहा॥
बिल्ली ने चूहा को देखा।
चूहा ने बिल्ली को देखा॥
बिल्ली भागी उसके पीछे।
डर के चूहा भागा बिल में॥
बच्चें दौड़ें बिल्ली के पीछे।
बिल्ली भागी अपने घर में।।
जब बच्चों ने देखा चूहा।
चूहा भागा अपने बिल में॥
ज्ञान कुमार
अपना घर, कक्षा 5




कविता:- चिड़िया

चिड़िया
चिड़िया - चिड़िया उड़ती जा।
सबका मन बहलाती जा॥
फुदक - फुदक तुम उड़ती जा।
सबका मन बहलाती जा॥
चिड़िया हो तुम कितनी प्यारी।
सबके मन को भाती हो॥
चिड़िया जब तुम उड़ती हो।
अच्छी प्यारी लगती हो ॥
ज्ञान कुमार
अपना घर, कक्षा 5

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

कविता:- बचपन लौट के नही आता


बचपन

बचपन लौट के नही आता
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥
बचपन के अजब रंग थे
दोस्त और मस्ती के संग थे
जाति धर्म कोई भी रंग था
मज़हब सीमा कोई भी जंग था
आम के पेड़ अमरूद्ध की डाली
बेरों के कांटे मकड़ी की जाली
पापा की डांट मम्मी का प्यार
छोटा सा बछड़ा था अपना यार
पतंगो की डोर खीचें अपनी ओर
दादा के किस्सों का मिलता छोर
नानी का गाँव कभी धूप कभी छावं
बारिश का पानी डूबे कीचड़ में पावं
मछली पकड़ना फिर मिल के झगड़ना
आम के मोलों को कसके रगड़ना
जाड़ो में आग खेतों में साग।
बारिश के पानी में कागज की नावं।।
गुल्ली डंडो की प्यारी से खेल
चोर सिपाही में होती थी जेल
दुल्हे बराती से होता था मेल
बन जाती थी अपनी प्यारी सी रेल




कविता:- मास्टर जी


मास्टर जी
मास्टर जी कक्षा में आए
साथ में एक डंडा लाये
डंडा था पतला
मास्टर जी ने एक प्रश्न दिया
बच्चो ने प्रश्न नही किया
क्योकि उत्तर था लंबा
मास्टर जी ने डंडा मारा राम को
डंडा गया टूट
सरे बच्चे हो गए खुश
मास्टर जी को गुस्सा आया
खूब मोटा डंडा लाया
तब तक समय हो गया पूरा
मास्टर जी कक्षा से गए
सारे बच्चे खुश हो गए
मास्टर जी कक्षा में आए
चुप हो गए बच्चे सारे
अब तो खत्म हुई कहानी
गए सबके नाना नानी
अशोक कुमार
अपना घर, कक्षा 6



अभिव्यक्ति:- ईट की

मै हूँ ईटAlign Center
मेरे प्यारे दोस्तों मै एक नन्हीं सी ईट आज आपको अपनी कहानी सुनाती हूँ। मै आपको हर जगह मिलूंगी क्या गरीब की झोपड़ी या आमीरी के महल..... मै कभी किसी थके हुए मेहनतकश का पलंग बनती हूँ तो कभी बच्चों का खिलौना.... मेरा सफर सदियों से जारी है.... मुझे जन्म देने वाले लोग पहले मिट्टी की खुदाई करके उसे पानी से भिगोते है, फ़िर अच्छी तरह गूंथने के बाद ... प्यारे - प्यारे हाथों से मै सजती- सवरंती जन्म
लेती हूँ... लेकिन मै अभी बहुत ही कमजोर होती हूँ । मै धूप का आनन्द लेते हुई अपने जन्मदाता के खून पसीने की महक को महसूस करती हुई..., उनके सुख - दुःख: मै शामिल होती हूँ.... कुछ दिन धूप मे सूखने के बाद मै घोड़े की सवारी करके आग जलती भठ्ठे में पहुँचती हूँ.... गरम - गरम आग में पककर मै मज़बूत होकर करीब १४ दिनों बाद बाहर आती हूँ ... मेरा रंग अब बदलकर सूरज की तरह लाल सुर्ख हो चुका होता है......अब मै इंतजार करती रहती हूँ अपने गंतव्य को जाने का..... अलविदा ......................................

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

कहानी:- आपबीती


आपबीती
मै आशीष हूँ मै आपको आज आपबीती कहानी सुना रहा हूँ । २००८ अप्रैल की बात है मै कानपुर में लोधर के पास सेठ ईट-भठ्ठे में ईट की निकासी का काम करता था । शाम को निकासी का काम खत्म होने के बाद मै अपने ३ दोस्तों के साथ अपना घर, नानाकारी में रहने वाले दोस्त मुकेश, सोनू , हंसराज जो कभी मेरे जैसा ही निकासी का काम ईट भठ्ठे पर करते थे मिलने के लिए चल पड़ा। मुझे रास्ता मालूम नही था हम चारो लोग नानकारी चंदेल गेट से आई आई टी कानपुर में घुस गए। आई आई टी की पक्की सड़के देख कर मैंने सोचा की यंही कही पर अपना घर होगा वंहा पर मुकेश लोग होंगे तो पहचान लेंगे इस प्रकार हम लोग पहुच जायेंगे। हम लोग चलते चलते आई आई टी के हवाई अड्डे के पास पहुच गए थे तबतक हम लोगो को मालूम नही था की आई आई टी कानपुर में बिना पास के घूमना मना है। हम चारो लोग हवाई अड्डे की जाली फांदकर अन्दर जाने वाले थे पर नही गए। तब तक एक गार्ड (एस आई एस ) आया, उसने हम लोगो से पूछा की यंहा पर क्या कर करने आए हो और कहा तुम्हारे पास आई आई टी का पास है , हम लोग पास जानते नही थे हम लोगो ने कहा नही , तो उस गार्ड ने हम लोगो को गन्दी गली देते हुए एक -एक तमाचा मार कर भगा दिया। हम लोग वंहा से दुखी मन से वापस अपने ईट भठ्ठे पर आ गए। आज मै भी अपना घर हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रह हूँ। आज जब मै आई आई टी कानपुर के मैराथन में हिस्सा लेकर दौड़ रहा था वंहा पर सुरक्षा में लगे गार्ड ( एस आई एस ) को देख कर उस दिन की घटना याद आ गई...
आशीष कुमार, अपना घर, कक्षा ६

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

कहानी:- पागल कुत्ता

पागल कुत्ता
एक बार की बात है। एक गाँव में एक कुत्ता रहता था। वह इसलिए पागल हो गया था, क्योकि उसके सर पर किसी ने गर्म पानी डाल दिया था, जिसके कारण उसका सर जल गया था और उसके सर में एक बड़ा सा जख्म बन गया था। वह इधर उधर घुमा करता था, दर्द से परेशां होकर, लेकिन कोई उसका ख्याल नही रखता था। उसके सर में कीडे पड़ गए वह कुत्ता कभी दर्द से परेशान होकर रस्ते में आते जाते लोगो को कटाने के लिए दौड़ता था और जख्मी कर देता था। इससे गाँव के लोग बहुँत परेशान हो गए, उन्होंने सोचा की ये कुत्ता काटता क्यो है ? उनके समझ में नही आया तो उन्होंने लालच देकर कुत्ते को पास में बुलाया और उसका सिर में देखा तो उसमे कीडे पड़े था। तब उनको समझ में आया की कुत्ता काटता क्यो था, फ़िर तो सभी गाँव वालो ने मिलकर उसका इलाज कराया फ़िर वह अच्छा हो गया। अब वह गाँव वालो के साथ रहने लगा और लोगो को परेशांन करना बंद कर दिया।
मुकेश कुमार , अपना घर, कक्षा 7

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

कविता:- नेता मांगे भीख

नेता मांगे भीख
नेता मांगे भीख
वो है किस चीज की ?
वोटो की है भीख
गाँव गाँव घूमा करते
वोट की तलाश में
वोट है नेताओ की भीख
हाथ जोड़ कर वोट मांगते
न जाने कितने वादे करते
एक भी वादे पूरा नही करते
लंबे चौडे वादे करके
वोट हमसे मांगते
बैठ कर कुर्सी पर
शासन उल्टा हम पर करते
एक भी वादा पूरा नही करते
आदि केशव
अपना घर, कक्षा 6

कविता:- बिल्ली म्याऊँ


बिल्ली म्याऊँ
एक छोटा सा गाँव
उसमे रहती थी बिल्ली म्याऊँ
रात को चुपके से आती थी
दूध मलाई खा जाती थी
एक दिन रात को बिल्ली आई
पड़ गया पीछे कुत्ता भाई
बिल्ली ने बर्तन दूध गिराया
कुत्ते ने उसको मार भगाया
अक्षय कुमार
अपना घर, कक्षा 6