शनिवार, 21 दिसंबर 2024

कविता : "संघर्ष "

 "संघर्ष "
देखो है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध | 
लोगो में थे आपसी संबंध,
न थी एक-दूसरे के प्रति घमंड | 
उम्मीदों की छाया बनते थे वह सब,
मुशीबतों के आने पर| 
जीत हो या हार हो,
पर संघर्ष जारी रहता था| 
देखा है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध| 
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

कविता :"बीत गई बाते "

"बीत गई बाते "
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था | 
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था | 
हुआ सुबह लालिमा छाया,
पल भर में यह अहसास हुआ | 
जो बीत गया,
उसे लेकर क्या रोना था| 
यह फूल खिले कलियों से,
कलयुग का जमाना था| 
सोचा था जिसे अपना,
वह अपना नहीं पराया निकला| 
जो बीत गए बाते,
उससे हमे क्या बेगाना था 
कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

कविता :"परेशान हूँ मै "

"परेशान हूँ मै "
मै परेशान हो गया हूँ,
आस-पास के लोगो से| 
हर किसी का सुनना,
जैसे कानो में काटे चुभना | 
मै थक गया हूँ चलते- चलते ,
बस मै चाहता हूँ सोना| 
मुझे मत जगाओ सोने से,
क्योंकि सपनो में नया संसार देखता हूँ|  
मै परेशान हो गया हूँ,
अब तो डर लगता है गलतियां करना| 
क्योंकि इसमें भी परेशानी है,
अब तो हमारी बातो में भी गलतियां है| 
बस अब एक कोने में ही बैठा रहता हूँ ,
मै परेशान हो  गया हूँ| 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

कविता:"मजदूर "

"मजदूर "
इस खुले आसमान के नीचे ,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है| 
आज तो दिन गुजार लिया,
पर कल कैसे गुजरोगे |  
न जाने कैसे अपने बच्चों का पेट पालोगे,
जाने कैसे कल की शाम गुजरोगे| 
हर बार सवाल ये आता है,
 पर दिल दब कर रह जाता है| 
परेशानी तो नजर आती है ,
पर देखकर नजरअंदाज कर जाते है| 
इस खुले आसमान के नीचे,
लाखों मजदूरों को रात बितानी है| 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

रविवार, 8 दिसंबर 2024

कविता :"समुद्र "

"समुद्र "
समुद्र के किनारे बैठ कर,
लहरों को देखना है| 
कैसे आता है और चला जाता है,
हमको समुद्र पार जाना है| 
पर समुद्र में क्या पता क्या होगा?
समुद्र के किनारे बैठ कर,
लहरों को देखना है| 
लहरों की आवाज कानो में सुनाई देती है,
ऐसा लगता है कुछ संदेसा लाकर 
कहना चाहती है|  
समुद्र के किनारे बैठ कर ,
लहरों को देखना है| 
कवि :रमेश कुमार , कक्षा :4th 
अपना घर 

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

कविता :"मासूम दुनिया "

"मासूम दुनिया "
बहुत मासूम है यह दुनिया ,
एक चीज के पीछे हजार लोग भागते है  | 
पर नसीब में किसी का न होता,
कुछ लोग अकेलापन को अपना दुनिया मानते| 
अब अनजान बनकर रहना चाहते है ,
बहुत मासूम है यह दुनिया|
सब लोग अपने आप को बड़े मानते है | 
जो चाह में आये वह करना चाहते है,
एक चीज के पीछे हजार लोग भागते है| 
बहुत मासूम है यह दुनिया ,
सिर्फ दूसरों में गलती निकालते है | 
पर अपने गलतियों पर अमल नहीं करते ,
बहुत मासूम है यह दुनिया| 
कवि : अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

 

गुरुवार, 26 सितंबर 2024

कविता:"लापरवाह हूँ मैं

"लापरवाह हूँ मैं "
हवाओ के लिए हवा हूँ मै,
पर जिम्मेदारिओं के लिए लापरवाह हूँ मै| 
जैसे-जैसे ही उम्र बढ़ रहा है,
जिम्मेदारिओं का सिलसिला चढ़ रहा है| 
सोचता हूँ करूंगा हर चीज,
पर समझ नहीं आता की क्या करून मै| 
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै,
सपने तो सजाये थे बहुत बड़े-बड़े| 
पर उनके समस्यांओ के लिए कभी नहीं लड़े,
मौज मस्ती में ही दिन कट गए सब| 
तब जाकर देखा की कंहा हूँ मै ,
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शनिवार, 21 सितंबर 2024

कविता : "दोस्त "

 "दोस्त "
कमी बस यही है एक संग जीना है तुम्हारे ,
ये दोस्त रूठना नहीं कभी मुझसे | 
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादे है संग तुम्हारे ,
जबतक संग हो तुम मेरे,करने का जज्बा है सब कुछ | 
जो छोड़ दिया साथ तुमने ,करने को नहीं है कुछ भी | 
तुमसे ही तो हिम्मत है,जीने की राह तुमसे ही है | 
नाकामी में साथ रहे तुम्हारा,कामयाबी में रहे हाथ तुम्हारा | 
लाखो मुसीबते आये बस,उम्मीद न छोड़ना | 
करके दिखाऊंगा मैं,सफल पाके दिखाऊँगा मैं | 
कमी बस यही है एक,संग जीना है तुम्हारे | 
ये दोस्त नहीं रूठना मुझसे तुम ,
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादे है संग तुम्हारे | 
कवि :साहिल कुमार,कक्षा :8th 
 अपना घर 


गुरुवार, 19 सितंबर 2024

कविता: "हिंदी दिवस "

 "हिंदी दिवस "
हम मुल्को का ,
नाचती- गाती है यह हिंदी | 
हर दरिया का पानी ,
हर मुशीबतों का हल है हिंदी | 
हम मुल्को का शान है हिंदी ,
सोते जागते सपनो का | 
पहचान है हिंदी ,
हर ख़ुशी का उल्लेख है हिंदी | 
हर बगिया का फूल है हिंदी ,
हर आंसूओ का बूँद है हिंदी | 
हर प्यार का जड़ है हिंदी ,
वह महकती खुशबू का अंग है हिंदी | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

रविवार, 15 सितंबर 2024

कविता:"चिड़िया "

"चिड़िया "
कितनी सुन्दर चिड़िया है ,
जरा उसके पंख और सुंदरता तो देखो | 
लगता है तुम्हे बुला रही है ,
सुरीली आवाज में चहचहा रही है | 
आसमान में उड़ती हवा को कटती ,
मस्त मगन लहरा रही है | 
लगता है किसी को बुला रही है ,
कितनी सुन्दर चिड़िया है | 
कवि :रमेश कुमार ,कक्षा :4th 
अपना घर 

बुधवार, 11 सितंबर 2024

कविता : "परिंदा "

 "परिंदा "
सोए हुए गुमसुम परिंदा ,
अब जाग जाओ तुम | 
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है ,
हर एक उम्मीदों पर | 
अब जरा एक झलक देख लो ,
अपने अंदर की आत्मा को | 
तुम्हारी हर बातो से दुःख है ,
सोए हुए गुमसुम परिंदा | 
अब जाग जाओ तुम ,
तुमने सबको देखा है | 
और देखा लोगो की कयामत  ,
अब क्या सोचते हो | 
बस एक ही बात में उलझे रहते हो ,
सोए हुए गुमसुम परिंदा | 
अब जाग जाओ तुम ,
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर  

सोमवार, 9 सितंबर 2024

कविता :"ये बेरंगीन हवाएं "

"ये बेरंगीन हवाएं "
गजब की है ये सदाएं ,
आसमान में उड़ा ले जाए ये बेरंगीन हवाएं | 
अपने  रंग में रंगकर बेहतरीन राग सुनाए ,
हर द्वेष भाव को क्षड़ ही भुलाए | 
मोहब्बत चारो ओर फैलाए ,
भुलवा देती है जीवन की बाधाएं | 
आसमान  में उड़ा ले जाए ये बेरंगीन हवाएँ ,
कोसो दूर  से सन्देश लाए | 
जीवन की सुंदरता से प्रेम मिलाये ,
रखती है दिलचस्पी बराबर सभी में | 
गजब की है सदाएँ ,
आसमान में उड़ा ले जाए ये बेरंगीन हवाएँ | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

रविवार, 25 अगस्त 2024

कविता :"संघर्ष "

"संघर्ष "
देख है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थे चीजे उपलब्ध | 
लोगो में थे आपसी संबंध ,
न थी एक दूसरे के प्रति घमंड | 
उम्मीदों की छाया बनते थे वह सब ,
मुशीबतो के  आने पर ,
जीत हो या हर हो 
संघर्ष जारी रहता था | 
देखा है हजारों की संघर्ष ,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध | 
कवि : अमित कुमार 
कक्षा : 10th 

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

कविता:"गलियां "

 "गलियां "
ये सुनसान सी गालिया ,
पता नहीं कहा तक जाती है | 
ये संघर्ष की मंजिल ,
पता नहीं कहा से आती है | 
अँधेरे से भरा है पूरी दुनिया ,
पता नहीं कब लोग जागेंगे | 
एक नई राह की तलाश में ,
कब हमारा साथ अपनाएंगे | 
ये सुनसान सी गलियां ,
पता नहीं कब होगा हमारा | 
कवि : रोहित कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

रविवार, 18 अगस्त 2024

कविता :"किताबे "

"किताबे "
ये  बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है ,
हर एक शब्दों पर बहुत कुछ बना जाती है | 
समुद्र से गहरा ज्ञान हमे दे जाती है ,
ये बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है | 
बुझे हुए दीप को जला जाती है ,
हर एक भटके को नई राह दिखाती है | 
 जो इस जिंदगी को हार कर बैठ जाता है ,
उसे जिंदगी का राह दिखती है | 
ये बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है 
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

कविता :"राह "

 "राह "
राह  जिस पर जिंदगी होती है शुरू ,
चल देते है अपने मकसद को लेकर | 
जिंदगी में लोगे खाते है ठोकर ,
फिर भी मुस्कुराते रहते है | 
नदी भी हमे कुछ बता जाती है ,
रुकना नहीं है सिखा जाती है| 
जिंदगी में आएगा  रूकावट,
उससे पार करना सीखा जाती है | 
चाह वाला राह सही होता है ,
बस कुछ बनने का अपना होता है | 
कवि :अजय कुमार,कक्षा :10th 
अपना घर 
  

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

कविता:"यारी दोस्ती "

"यारी दोस्ती "
छोड़ो अब यारी दोस्ती ,
दोनों एक तरफ़ा है | 
वे तुम्हे हंसाएंगे और रूलायेंगे ,
सच तो यह है वे तुमसे गलतियां करवाएंगे | 
छोड़ो अब यारी दोस्ती ,
मौका मिला है कुछ कर जाने का | 
कुछ बड़ा करने का ,
सपनो को साकार करने का | 
कुछ बनने का और बनाने का ,
अपनों को खुश करने का | 
समय नहीं बचा है तुम्हारे पास ,
ये यारी दोस्ती बढ़ाने का | 
छोड़ो यरी दोस्ती,जो एकतरफा  है | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

सोमवार, 12 अगस्त 2024

कविता :"पहरा "

"पहरा "
ख्वाबों पर पहरा ,
पर हर कदम कठिनाई से चला | 
किसी तरह उस ओर तक पहुँचा ,
जंहा कब्र का निशान मिला | 
जिज्ञासा हो रहा था मुझमे ,
पर हमारे लिए वक्त काम था | 
ख्वाबों पर पहरा ,
चांदनी रात की शाम थी | 
सोचा था कुछ अनोखा ,
पर यह बात दिल को दर्द देता था | 
ख्वाबो पर पहरा ,
जैसे सपनो का मर जाना | 
अब बस सुकून के लम्हे गुजरना ,
पर ख्वाबो पर पहरा | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा 10th 
अपना घर 

शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
गर्मी है या फि आग का गोला ,
गरम हवा या आग का प्याला | 
मुरझा दिया फिर नए पत्ते ,
सुखा दिया फिर ठंडे तालाब | 
ख़त्म हो गया वो हर चीज ,
जो प्रकृति ने था संभाला | 
गर्मी है या आग का गोला ,
लू चलती है आवाजे आते है | 
धूल साथ मे गर्म हवा पास में ,
गर्मी है या आग का गोला | 
कवि :रोहित कुमार ,कक्षा 7th 
अपना घर 

गुरुवार, 8 अगस्त 2024

कविता :"समय "

"समय "
बहुत वक्त गुजर गया ,
 घडी को देख-देख  कर | 
बहुत देर से एक ही आवाज ,
सुनाई दे रहा घर-घर | 
दस बजे से देखना शुरू किया था ,
बज गए अब घडी में चार | 
पांच बजे खेलने जाएंगे,
वह समय हो जायेगा बर्बाद | 
छै बजे से फर पड़ने बैठेंगे ,
 वही पर थोड़ा सा ही-ही ,हा -हा करेंगे | 
बजा देंगे घडी में आठ ,
फिर खाना खाएंगे मिनट साठ | 
बहुत वक्त गुजर गया।,
घडी को देख-देख कर | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

मंगलवार, 6 अगस्त 2024

कविता: "सपना "

 "सपना "
एक सपना था जो कभी अपना था ,
वह एक जिंदगी थी जो कभी अपनी थी | 
चाह रहा था उंचाईओं को छूना ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था | 
ये खूबसूरत सी दुनिया को ,
चाह रहा था अपनाना | 
वो मंजिल का रास्ता ,
जो रहा था एक मोड़ पे | 
वह तो बस एक सपना था ,जो कभी अपना था| 
ये छोटी सी काली परछाई ,
चाह रही थी साथ अकेला | 
ये दुनिया को बदलने का जुल्म सहने को ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था | 
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

रविवार, 4 अगस्त 2024

कविता : "समय "

 "समय "
जीवन का पल-पल एक सोना है ,
कब बीता समय लौट नहीं पाता | 
इनका न एक पल भी खोना है ,
जो पल को न  संभल सका | 
उसे क्या पाता दिन और रात ,
मंजिल के ओर बढ़ते कदम भी  |
बरबस होकर पीछे को मुड़ जाता है |
जो इंसान पल को नहीं समझा ,
वह आगे कभी नहीं बढ़ता है | 
जो उपयोग करता है पल का,
वह उच्च शिखर पर पहुँचता है | 
कवि :संतोष कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

शनिवार, 3 अगस्त 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
गर्मी आई गर्मी आई ,
कड़क धूप की गर्मी आई | 
तन मन को खूब जलाए ,
कड़क धूप सब  सताए | 
गर्मी से राहत पाने के लिए ,
ऐसी कूलर ,पंखा ,खोज | 
गर्मी से राहत पाए ,
गर्मी आई ,गर्मी आई | 
कड़क धूप की गर्मी आई ,
कवि : अभिषेक कुमार ,कक्षा :6th 
अपना घर 

रविवार, 28 जुलाई 2024

कविता :"चाँद का टुकड़ा "

"चाँद का टुकड़ा "
मै नन्हा चाँद का टुकड़ा ,
मजदूर माँ- बाप का बेटा हूँ | 
मै नन्हा चाँद का टुकड़ा ,
माँ -बाप का छोटा का कलेजा हूँ | 
शाम सवेरे सूरज चाँद ,
एकटक से देखता हूँ | 
मेरे माँ बाप आपसे रूठता मै रोता हूँ ,
आसुंओ से भरे ,मै नयन से अपने | 
चमक को फिर से छूना चाहता हूँ ,
मै दीप दुआ में मांगता हूँ | 
पंख दिला दो हाथ में ,
मै गगन में उड़ना चाहता हूँ | 
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

  

शनिवार, 27 जुलाई 2024

कविता :"आज़ादी "

"आज़ादी "
आजादी मिली हमें  वीरों से ,
जब लिपटे थे जंजीरों से | 
चढ़ गया सूली पर लोगो ने ,
जब अत्याचार्य किया अंग्रेजो ने |  
ख़त्म किया साम्राज्य हमारा ,
लूट लिया था ज्ञान सारा | 
बेजान हो गया शान हमारा ,
खून खौल उठा तब लोगो में | 
लहक उठी जब सोलो में ,
ख़त्म किया राज्य उसका | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

कविता :"बारिश "

"बारिश "
बारिश का आहार था,
चमकती सी धूप बरकरार था | 
बाहर जाने का करता न मन ,
ये गर्मी भी कर रही है तंग | 
अकेले नहीं वो है सूरज के संग ,
कभी बादल वर्षा देता | 
तो कभी अपना रूप दिखा देता ,
हवा के बदलाव से बदल जाता मौसम | 
टाइम- तो- टाइम बूँद भी गिरा जाता ,
रूठे हुए पौधों को उठा जाता | 
कवि :अजय कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

 

गुरुवार, 20 जून 2024

कविता :"गहराइयाँ "

"गहराइयाँ "
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
हर राज को छुपा रही है | 
शामे ढल रही है ,
कुछ तो खो रही है | 
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
ढूढ़ती आँखों में आँसू | 
होती सिसकियाँ बेकाबू ,
हालात अब बदल रहे है | 
बंजारे बन चल रहे है ,
गहराइयाँ अब बढ़ रही है | 
दूरियां खुद से ही बढ़ रही है ,
बढ़ती हुई उम्मीदों को रोक रही है | 
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
कवि :साहिल कुमार, कक्षा :8th 
अपना घर 

गुरुवार, 13 जून 2024

कविता: " घर की राह है थोड़ा "

"घर की राह है थोड़ा "
 घर की राह है थोड़ा  
गर्मी है मुँह मोड़ा | 
पाँच  दिन की बात है 
और घर जाने  की बात है | 
जाने को बेतहाशा हो रहा हूँ 
धीरे धीरे तैयारी भी कर रहा हूँ | 
घर की राह है थोड़ा 
गर्मी है मुँह मोड़ा | 
अकेले काटना  होगा ये 
पॉँच  दिन बिना किसी के बिन | 
पाँच  दिन की बात है 
घर जाने की इंतजार है | 


कवि : पंकज,कक्षा :9th   
 अपना घर 

बुधवार, 12 जून 2024

कविता:" फूल भी कितने अच्छे "

 " फूल भी कितने अच्छे "
ये फूल भी कितने अच्छे है 
ये फूल भी कितने अच्छे है | 
इन्हें देखते ही 
हम लोग खुश हो जाते है | 
पर जिस फूल को देखकर 
खुश होते है 
उसे ही पैरों के नीचे कुचल देते है | 
जब उसे कुचलना ही था 
तो उसे देखकर खुश क्यों हो जाते है | 
ये फूल भी कितने अच्छे है 
ये फूल भी कितने अच्छे है | 
कवि :अमरबाबू ,कक्षा :6th 
अपना घर 

मंगलवार, 11 जून 2024

कविता :"जिंदगी "

"जिंदगी "
जिंदगी में जीना आसान नहीं होता ,
जिंदगी कि हर एक कठनाईया झेलना होगा | 
गिर -गिर कर चलना सीखा ,
जिंदगी में हर एक कठनाईयो  को झेलना सीखा|  
मरकर और मार खाकर लड़ना सीखा ,
जिंदगी में जीना आसान नहीं होता | 
जिंदगी कि हर एक कठनाई से लड़ना सीखा, 
गिर-गिर कर चलना सीखा | 
मरकर और मार  खाकर लड़ना सीखा, 
कवि :रोहित कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

सोमवार, 10 जून 2024

कविता:"मेरा देश "

"मेरा देश "
मेरा देश है प्यारा ,
जीत के अंत तक कभी न हारा | 
मेरा देश है प्यारा ,
यह हिंदुस्तान हमारा| 
मेरा देश है प्यारा ,
गोलियों कि बरसा |
कभी अंग्रेजी हुकूमत कि अरसा, 
देश के शहीदों कि अस्त से |
उदय हुई खुशियाँ जवानों कि रक्त से, 
होठों पर था दम भरा नारा |
जीत के अंत तक कभी न हारा , 
मेरा देश है प्यारा |
                                                                                                                           कवि :संतोष कुमार ,कक्षा :9th                                                                                                                                                       अपना घर 

रविवार, 9 जून 2024

कविता :"घर की छुट्टिया "

"घर की छुट्टिया " 
जा रहा हूँ मैं घर इस बार 
और सब कहते है 
वहां पर मजे करोगे 
पर घर जाकर पता चलता है 
कि किया होगा वहां पर हाल 
ऊपर से ये तेजी गर्मी 
कर देगा लोगों को परेशान 
ये पांच दिन की छुट्टिया 
जा रहा हूँ घर इस बार 
सारी चीजें हमें पता है 
कि किया होगा वहां पर हल 
इस गर्मी को झेलना 
मुश्किल हो जाएगा 
हो जाएगा बुरा हाल 
घर पे जो मेहनत करते है 
वो मेहनत नहीं है आसान 
कर -करके हो जाते परेशान 
फिर भी काम छोड़ते नहीं 
क्योकि हम लोगों का यही है काम 
इस पांच दिन कि छुट्टिया में 
जा रहा हूँ घर इस बार 
परिवार को हाथ बटाऊगा 
ताकि थोड़ा मिले आराम 
क्योकि हमेशा मेहनत करते रहते है 
मौका ही नहीं मिलता है करने का आराम 
इस पांच दिन की छुट्टिया में 
जा रहा हूँ घर इस बार 
कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :दस 
अपना घर 















   

गुरुवार, 6 जून 2024

कविता: "राहों पर चलना सीखा दिया "

 "राहों पर चलना सीखा दिया "
ना चाहते हुए भी उसने हमें बताया 
बार -बार कह कर हमसे वह काम करवाया 
रोज डाटना ,रोज कहना 
कह -कह कर थक जाना 
पर हार ना मानकर वही चीज 
बस गया नस-नस में 
फिर हमने भी ठान लिया 
अब कहने का मौका ही नही देना  है 
कहने से पहले ही वह काम कर लेना है 
पर अब दुबारा कहने का मौका  ही नहीं देना है 
ना  चाहते हुए भी उसने हमें बताया 
बार -बार कह कर हमसे वह काम करवाया 
कवि : गोविंदा कुमार, कक्षा :8th 
अपना घर  

बुधवार, 5 जून 2024

कविता :"चिड़िया "

"चिड़िया "
चहक -चहक कर आती चिड़िया 
 फुदक -फुदक कर जाती चिड़िया 
फुर्र से वो उड़ जाती चिड़िया 
कभी नहीं वो जल्दी आ पाती चिड़या
दाना चुग कर ही आती चिड़िया 
अपने बच्चों को भी दाना चुगती चिड़िया 
नन्हे -नन्हे बच्चे के साथ 
खुश हो जाती चिड़िया 
कवि :अजय कुमार,कक्षा :5th 
अपना घर 

गुरुवार, 30 मई 2024

कविता:"छुट्टी "

 "छुट्टी "
जल्दी हो छुट्टी स्कूल से ,
इंतजार नहीं हो रहा | 
गर्मी तो हो रही है बहुत ,
पसीना का बौछार हो रहा | 
गर्म हवा और लू चलती है ,
कूलर भी उससे लड़ती है | 
पेड़ -पौधे भी सूख गए ,
पर एक बूँद नहीं बरसती है | 
कवि :विरेन्द्र कुमार ,कक्षा : 3rd 
अपना घर 

बुधवार, 29 मई 2024

कविता :"एक चाह"

"एक चाह"
ठुकरा दिए सारे नाते इस जंहा से ,
छोड़ दिए हर ख्वाब को राह में |
 मुछत से थी जो चाह इस दिल में , 
वो भी छूट गई कंही अँधेरी राह में | 
अब डर क्या और खौफ क्या ,
सब छुप गए गहराई के समुन्दर में | 
बस रोना ही था इस जिंदगी में ,
वो भी छूट गए कंही अँधेरी राह में | 
आंसूओ ने भी छोड़ दिया साथ उसका ,
जीने की भी न रही आस उसकी | 
कोई मौका सफल न रहे ,
बस बर्बाद रहा समय उसका | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा 8th 
अपना घर 

शनिवार, 25 मई 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
इस बार की गर्मी ,
मानो सूरज सर पर आई है | 
सुबह से लेकर शाम तक ,
पसीना ही पसीना आई है |
नहीं है अच्छे से आराम , 
बह -बहकर भर गया तालाब | 
इस बार की गर्मी ,
पेड़ -पौधे झुलस गए ,
अब उनको भी पानी पीना है | 
सड़क से भी गर्म हवा अब आती है ,
मुश्किल हो गाया अब जीना है | 
इस बार की गर्मी | 
कवि :अभिषेक कुमार ,कक्षा :6th 
अपना घर  

शुक्रवार, 24 मई 2024

कविता :"सोच "

"सोच "
काश कोई मेरे बारे में सोचता ,
तो आज यंहा नहीं होता | 
काश कोई मेरे लिए काम करता ,
तो आज यंहा नहीं होता | 
काश कोई मेरे लिए रोता ,
तो गंगा से भी एक और नदी बहता | 
धूप से तपती आग में ,
मेरे लिए काम करती है | 
काश कोई मेरी भी दुनियां होता ,
फूलों से सजा होता | 
कवि :नीरू कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

मंगलवार, 21 मई 2024

कविता "दिखावे "

 "दिखावे "
सब तो दिखावे है ,
असलियत तो कुछ और ही है | 
ये भाईचारा ,ये दोस्ताना ,ये प्यार ,
भरी बाते सब तो दिखावे है | 
असलियत कुछ  और ही है,
कहते है सब अपने है | 
भीगी मुस्कान देकर ,
सब को  पिघला देते है | 
सब दिखावे है ,
असलियत तो कुछ और ही है | 
बाते भी संभल कर करते है ,
ताकि कोई उसका उधार न मांग ले | 
प्यार ऐसे जताते है जैसे कुछ हुआ ही न हो ,
सब दिखावे है असलियत कुछ और है | 
कवि :अप्तार हुसैन ,कक्षा :7th 
अपना घर 

सोमवार, 20 मई 2024

कविता:"अलग और बीरान "

"अलग और बीरान  "
कुछ चाहिए जो अनजाना है ,
सबसे अलग और बीरान  है | 
अकेला रहा करता था हमेशा वह ,
दुःख का बाधा न बना करता किसी का |  
हर वक्त चाहता कुछ अनोखा ,
पर मुशीबत न करने देता ऐसा | 
समुद्र की लहरों की तरह ,
बार -बार मुशीबतों से जूझता | 
और उम्मीद की चिंगारी हमेशा जगाए रहता ,
उसे उम्मीदों की माले की तरह | 
वक्त मिलने पर  गुथा करता , 
यह सब सुनकर मर जाना क़ुबूल करता वह | 
कुछ चाहिए जो अनजाना है,
सबसे अलग और बीरान है | 
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

रविवार, 19 मई 2024

कविता :" नजरे "

" नजरे "
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है ,
मस्ती के रंग में रंगीन हो नाच रही है| 
कितने ही शिकवों और शिकायतों से झुक रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
अश्कों को छुपाकर बातों को भुलाकर ,
अपने को रुलाकर किसी को हंसाकर | 
खुद से जुदा हो के लोगो से मिल रही है ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
ख्वाबो में डूबकर सबकुछ भूलकर ,
ये नजरे नसीहतों को पार कर रही है | 
कवि :साहिल कुमार ,=कक्षा :8th 
अपना घर 

शनिवार, 18 मई 2024

कविता :"मैंने सीखा "

"मैंने सीखा "
छोटी -छोटी गलतियों से ,
मैंने आगे बढ़ना सीखा है | 
दूसरो को देख -देखकर ,
मैंने पढ़ना सीखा है | 
जब बचपन में पापा ने ,
मेरे उंगलिंया छोड़ी तो | 
मैंने अकेला ही चलना सीखा है ,
मैंने इन हाथों से लिखना सीखा है | 
छोटी -छोटी गलितयों से ,
मैंने आगे बढ़ना सीखा है | 
कवि :रमेश कुमार ,कक्षा :4th 
अपना घर 

शुक्रवार, 17 मई 2024

कविता :"लोग "

"लोग "
धरती पर लोग गुमसुम क्यों है ,
आस -पास खुश और दुखियों से | 
और या आपसी सम्बन्ध में तालमेल न होने से ,
धरती पर लोग एक- दूसरे से दूर क्यों है | 
आपसी रिश्ते में कुछ कमी होने से ,
या फिर लोगो को देखकर | 
एक दूसरे के प्रति घृणा प्रकट करने से , 
धरती पर लोग एक -दूसरे का मदद क्यों नहीं करते | 
अपने -अपने कामो में लगे रहने के कारण से , 
धरती पर लोग गुमसुम क्यों है | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 
 

गुरुवार, 16 मई 2024

कविता :"हाँ सीखा मैंने "

"हाँ सीखा मैंने "
गिर -गिर कर मैंने चलना सीख लिया,
गलती कर-कर के वो चीज करना सीख लिया | 
छोटी -छोटी प्रयासों से ही मैंने ,
कठिनाइओं से लड़ना  सीख लिया | 
कठिनाईओ से लड़ -लड़ कर मैंने ,
जिंदगी को जीना सीख लिया | 
आगे बढ़ -बढ़ के रास्तों पर ,
कैसे चलना है मैंने वो भी सीख लिया | 
गिर -गिर कर मैंने चलना सीख लिया ,
मेरे जिंदगी ने और कुछ भी सिखाया | 
मैंने वो भी सीख लिया ,
गलती कर-कर के वो चीज करना सीख लिया | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

बुधवार, 15 मई 2024

कविता :"खुशी बाटी है "

"खुशी बाटी है "
क्या तुमने भी किसी को खुश किया है ?
या फिर दो पल हंसाया है | 
क्या तुमने भी गिरे लोगो को उठाया है ?
या फिर रूठे हुए को मनाया है | 
क्या कभी शांत वातावरण में जिया है ?
या फिर शोर- शराबे में रोया है | 
क्या तुमने किसी को धमकाया है ?
या फिर किसी को मारा है | 
मेरे तो दिन बुरे है आज ,
पर क्या तुमने इसे कभी आजमाया है ?
कवि :पंकज कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 
 

मंगलवार, 14 मई 2024

कविता:"वह लड़का "

"वह लड़का "
कड़क धूप में भी गुनगुनाता है ,
बरसती बरसात में भी चलता है | 
हर बार फिसलता है ,हर बार घिसटता है | 
हिम्मत हर कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का है जो सारे आसूं पी जाता है | 
सबके ताने सह जाता है ,
हर गम झेल जाता है 
हर पल धोखा दे जाता है | 
हिम्मत हर कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का जो सरे आंसू पी जाता है | 
कभी जब फेल होता है ,
सब कहते है तू करेगा जिंदगी में 
ये सब सुनकर भी हँसता रहता है | 
हिम्मत हार कर भी नहीं रूकता है ,
वह लड़का है जो सारे आंसू पी जाता है | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

सोमवार, 13 मई 2024

कविता :"नया करे "

"नया करे "
चल आज कुछ नया करते है ,
हाथ में हाथ मिलाकर 
एक विश्वाश बनाते है| 
अपने सोच विचार को बदलते हुए ,
एक नए विश्वाश के साथ 
उम्मीद की आस जगाते है | 
चल आज कुछ नया करते है ,
हाथ में हाथ मिलाकर 
एक दूसरे को साथ देते है 
चल आज कुछ नया करते है| 
हाथ में हाथ मिलाकर 
अपने विचार को बदलते है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

रविवार, 12 मई 2024

कविता :"वक्त का जख्म "

 "वक्त का जख्म "
कर देते है बर्बाद अपने वक्त को जब हम ,
चाहकर भी वो वक्त कुछ नहीं कह पाता है  | 
जब रुलाकर दे जाते जख्म उसे हम ,
चुपचाप वक्त उसे सह जाता है | 
हर मुश्किलों को झेलकर ,
अपने आप को समझाता है | 
होते देख बर्बाद खुद को ,
रोते हुए भी नहीं रो पता है | 
जो जख्म देते है वक्त को हम,
चुपचाप उसे वह सह जाता है | 
लेकिन मै वक्त हूँ जो अपना सही समय तरसता हूँ ,
अपने को बर्बाद होते देख खुद को समझाता हूँ | 
वक्त को फिजूल जया करने वालों को ,
जब वक्त का जख्म लगता है | 
वो इंसान चाहकर भी जिंदगी में ,
कुछ कर नहीं पाता है | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शुक्रवार, 10 मई 2024

कविता: "संघर्ष "

 "संघर्ष "
दो पल की छांव है ,
और दो पल की धूप है | 
यह संघर्ष की सफर में ,
अनेक रूप है कई शुकून की लम्हे नहीं | 
बस हर पल डर है और है नमी ,
यह संघर्ष की सफर में | 
रूठी है मुझसे यह जमी ,
हर पल ढूंढ़ता हूँ | 
शुकून की जिंदगी ,
अब तो दुवा  यही करता हूँ | 
ना रहे कोई कमी ,
यह संघर्ष की सफर में | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

बुधवार, 8 मई 2024

कविता:"सोच "

"सोच "
अपनी सोच को सुधारो लोगो ,
क्यों इतना जीवन में भाग रहे हो | 
इनसे डर कर क्यों जीवन काट रहे हो ,
अपनी हिम्मत पर रखो विश्वास | 
हर पल न होगा इनका विकाश ,
याद करलेंगे सारे वादे | 
जितना इन्होने हम पर  बांधे ,
खुद पर रखना संयम | 
आगे बनेगा अपना नियम ,
अपनी सोच को सुधारो लोगो |
 क्यों इतना जीवन में भाग रहे हो,
कवि :अवधेश ,कक्षा :11th 
अपना घर 

सोमवार, 6 मई 2024

कविता :"मज़दूर "

 "मज़दूर "
मजदूर है हम ,कोई चोर नहीं | 
मेहनत करते है ,पसीना भाते है | 
एक वक्त का पेट भरने के लिए ,
पहाड़ो से टकराते है हम | 
मजदूर है हम ,
किसी का छीनकर नहीं खाते | 
खेती करते है फसल उगाते है ,
जरूरत पड़ने पर हम ही बताते है | 
हर अमीरों तक अनाज पहुँचते है हम,
महदूर है हम | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

शनिवार, 4 मई 2024

कविता:"दुनिया "

"दुनिया " 
अब अंत आ रहा है,
न जाने ये दुनिया किस ओर जा रहा है | 
सारी  चीजों को कर दिया बर्बाद ,
अब करते है इनको बचाने का फरियाद | 
अब अंत आ रहा है,
सूरज की किरणे भी जहर बरसा रहा है | 
अब जीवन बनता जा रहा है जिन्दा लाश ,
अब अंत आ रहा है | 
कवि :गोपाल कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

शुक्रवार, 3 मई 2024

कविता "बड़े होना "

 "बड़े होना "
क्या कभी हम बड़े हुए हो ?
अपने पैरों पर खड़े हुए हो ?
क्या कभी अपने आप को तुम ने बदला है ?
क्या तुम्हारी जिंदगी कभी गिरके सम्भला है ?
हाँ मै जनता हूँ ,
क्योंकि ये हर किसी की जिंदगी की बात है | 
कभी दिन है तो कभी रात है ,
क्या तुमने अपने से छोटे की माफ़ी दी है ?
क्या तुमने सच में कोई इंसाफ़ी दी है ?
क्या तुम्हारे कोई निर्णय दिल ,
से है या दिमाग से | 
या फिर तुम्हारी हार के रोटी की मजबूरी है ,
हमेशा जिंदगी में हसीन शाम नहीं होता 
बड़े होना आम नहीं होता | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

गुरुवार, 2 मई 2024

कवि ता:"प्रकृति "

"प्रकृति " 
ये जंहा है मुझको प्यारा ,
जहा पनपती है जीवन सारा | 
यंहा हर प्रकार की बहार है ,
जंहा सूरज के उगने से जगमगाता संसार है | 
कितना प्यारा और सुन्दर जंहा है ,
जंहा बस्ती हर तिनको पर जान है | 
हर रीतियुओ की यंहा बौछार है ,
जंहा चमचमाता हमारा ब्रह्माण्ड है | 
ये जहान है मुझको प्यारा ,
जंहा पनपती है जीवन सारा | 
कवि :संतोष कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर

बुधवार, 1 मई 2024

कविता :"आजादी"

"आजादी"
आजादी यूँ ही नहीं मिलती ,
इसमें कुछ खोना पड़ता है | 
कई जंग लड़ना पड़ता है,
और मुस्किलो से गुजरना पड़ता है | 
आजादी हमें यूँ ही नहीं  मिलती  है,
कई कुर्बानिया लेनी  पड़ती है | 
तो कई कुर्बानिया देनी पड़ती है ,
न जाने कितनो ने अपना खून बहाया होगा | 
और कितनो शूली पर चढ़ा होगा ,
आजादी यूँ ही नहीं मिलती | 
न जाने कितना कष्ट सहा होगा,
और जाने कितना कोड़े खाये होंगे | 
तब जाके ये आजादी मिली होगी ,
आजादी यूँ ही नहीं मिलती | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

कविता:"वक्त"

"वक्त"
वक्त के साथ -साथ इंसान भी बदल जाता है ,
गरीब को सहारा देना | 
कोई नजर ही कान्हा आता है  , 
मरते गिड़गिड़ाते दूप में तपते| 
है वो नादान मानव ,
मगर सब नजरअंदाज कर देते है | 
जैसे कोई दानव ,
वो गरीब बच्चा दिन भर रोता है | 
मगर हर बुरे इंसान के पास भी,
अच्छा दिल होता है| 
आज कल दौलत ही सब कुछ बन गया है ,
यही पर उनका वक्त ही थम गया है | 
कवि :मंगल कुमार , कक्षा :8th 
अपना घर 


सोमवार, 29 अप्रैल 2024

कविता: "विशवास "

 "विशवास "
मै क्यों हर पल रुक जाता हूँ ,
न चाहकर भी मै डर जाता हूँ | 
सारी चीजे मालूम है मुझको ,
पर अंदर से हिचकिचाता हूँ | 
हर वक्त सोचा है उनको ,
पर क्यों कुछ कह नहीं पाता हूँ | 
मै क्यों हर पल रुक जाता हूँ ,
मरती आशाओ में डूब जाता हूँ | 
मै क्यों हर पल रुक जाता हूँ | 
न चाहकर भी मै डर जाता हूँ,
कवि :बिट्टू कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

रविवार, 28 अप्रैल 2024

कविता: "आज़ाद देश "

"आज़ाद देश "
कौन कहता है भारत देश आजाद है?
लोगो के जीवन में खुद का सहारा है | 
बच्चों के लिए न ही अच्छी शिक्षा ,
और न ही बराबर अधिकार है | 
कौन कहता है ये देश आजाद है?
अमीरों से भी ज्यादा ,
जंहा तक गरीबों की संख्या ज्यादा है | 
उन लोगो को मिलता सम्मान है ,
मेहनत तो कर के देखो | 
मेहनत करना भी न आसान है ,
तो कौन कहता है, भारत देश आजाद है?
अभी भी जाती के प्रति छुवा -छूत होता है | 
निचले जाती के लोगो को,
न मिलता बराबर अधिकार है|    
कौन कहता है भारत देश आजाद है?
कवि: नवलेश कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

शनिवार, 27 अप्रैल 2024

कविता:"मौसम "

"मौसम "
सुनहरे मौसम ये बता रहा है ,
बारिश में भीगना जो आनंद है | 
बादलों में चिड़ियों को उड़ना आजादी है ,
हवनों में इधर से उधर बात करना | 
सुनहरे मौसम ये बता रहा है,
रिमझिम बारिश में नहाना | 
सभी लोग के साथ नाचना, 
आनंद से यूँ रहना | 
सुनहरे मौसम ये बता रहा है,
कवि: शिवा कुमार , कक्षा :8th 
अपना घर 

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

कविता :"मौसम "

"मौसम "
अब मौसम को क्या बताना ,
कभी कड़क गर्मी और धूप से मंडराना | 
कभी काले बदलो से सूर्य  ढक ले जाना ,
बारिश की मौसम का अब न कोई ढिकाना | 
अब मौसम को क्या कहना ,
चलती और बहती झरनो को सुखा देना | 
प्रकृति में गर्मी से उथल -पुथल  होना ,
बारिश मौसम का अब न कोई ढिकाना | 
अब मौसम को क्या कहना ,
कभी कड़क गर्मी और धूप से मंडराना 
| कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

कविता:"खेल "

"खेल " 
खेल के मैदान में ,
हार -जीत का फासला बना रहता है | 
जो मंजिल बुना  है तूने ,
उस कोशिश में लगा रहना पड़ता है | 
आत्मा और अपने ये धीरज रखो ,
संघर्ष का रास्ता बहुत लम्बी होती है| 
उस पर कदम से  कदम मिलकर चलना उचित है ,
तूने तो अब बुनियाद रचना शुरू किया है | 
अब तो दूर सागर पार जाओगे ,
खेल के मैदान में | 
हर -जीत का फासला बना रहता है,
कवि :नीरू कुमार , कक्षा :8th 
अपना घर 

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

कविता :"नींद "

 "नींद "
सोया था मैं न जाने कहाँ ,
सपना खोया था मेरा जंहा | 
सबकुछ छूटता जा रहा है,
मेरा लक्ष्य मुझसे रूठता जा रहा है | 
मै ढूंढ रहा हूँ अपने आप को ,
वही फूर्ति और ऐहसास को | 
मै पूरा जोर लगा दूंगा ,
अपने सपने को अपना बना लूंगा | 
सोया था मै न जाने कंहा ,
सपना खोया था मेरा जंहा | 
कवि :कुलदीप कुमार , कक्षा :12th 
अपना घर 

रविवार, 21 अप्रैल 2024

कविता :"अकेला "

"अकेला "
शुक्र है की मैं अकेला मुस्कुराता हूँ ,
हर वक्त हर समय ख्यालो में खोया रहता हूँ | 
नहीं है कोई खौफ किसी का ,
अकेला हूँ अकेला रह लेता हूँ | 
जीने को नहीं चाहिए कुछ इस जंहा से ,
सोच की बस एक राह में रहता हूँ | 
अकेला हूँ अकेला रह लेता हूँ ,
खुद से कोई खता नहीं मुझे | 
दूसरों से कोई गिला नहीं मुझे ,
अकेला हूँ अकेला रह लेता हूँ | 
कवि :साहिल कुमार , कक्षा :8th 
अपना घर 

शनिवार, 20 अप्रैल 2024

कविता:"छुट्टी "

"छुट्टी "
हाय दिन भर सोना हो गया ,
यह छुट्टी नहीं अब रोना हो गया | 
सुबह शाम बस खुद में खो गया ,
न जाने किसने जगाया और सो गया | 
मेरा मन हर सपने में मचलता गया ,
न  जाने कब सूरज भी ढलता गया | 
जो सोया फिर सबकुछ खोया ,
पाने के लालच में मन को ढोया | 
हाय दिन भर सोना हो गया ,
यह छुट्टी नहीं अब रोना हो गया | 
                                                                                                                        कवि :कुलदीप कुमार ,कक्षा :12th
                                                                                                                                                          अपना घर  

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

कविता:" आंबेडकर जयंती "

" आंबेडकर जयंती "
आज बात कर रहे है उनका ,
जिसने भारत देश को स्वतंत्र बनाया | 
गरीबों के हक़ के लिए आवाज उठाया ,
और उन लोगो को सही सम्मान दिलाया | 
दलितों के लिए नवदीप जलाया ,
समाज में नया परिवर्तन लाया | 
और नीच जाती के लोगो को उच्च जाती तक पहुँचाया ,
लोकतंत्र देश के लिए बड़ा योगदान निभाया | 
                                                                                                                         कवि :नवलेश कुमार ,कक्षा :10th
                                                                                                                                                          अपना घर  

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

कविता :"आंबेडकर जयंती "

"आंबेडकर जयंती "
जिस जगह से मैं  गुजरूं ,
वह जगह अपवित्र हो जाता | 
जिस कुंआ का पानी मैं पिया ,
वह कुंआ का पानी अपवित्र हो जाता | 
हर कदम और हर जगह पर ,
छुवा -छूत से लड़ना पड़ता | 
इस समाज  में हर कठिनाइयों  को सहना पड़ता ,
जब एक ने आवाज इस पर उठाई | 
हजारो की संख्या के साथ लोग है आए ,
हर एक चीजों से हम सब को आजाद है कराया | 
छुवा -छूत और जात -पात से ,
इस समाज से छुटकारा है दिलाया | 
जिस जगह से मैं गुजारूं ,
उस जगह पर चैन से सो सकूं | 
                                                                                                                       कवि :संजय कुमार , कक्षा:12th
                                                                                                                                                      अपना घर 
  
                                                                                    






 

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

कविता : "मुसाफ़िर "

 "मुसाफ़िर "
हम मिसफ़िर बनकर | 
निकल पड़े अनोखी राह की तलाश में,
न तपती धूप की परवाह | 
न आंधी और तूफान की ,
और न वह डरावनी रातों की | 
 हम सब निकल पड़े ,
ढलते सूरज की ओर | 
चमकते लालिमा को देखकर ,
टिमटिमाते तारो को देखकर| 
बहती शीतल हवाओं में ,
 हम सब निकल पड़े| 
                                                                                                                     कवि : अमित कुमार , कक्षा :10th 
                                                                                                                                                      अपना घर