शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

कविता : बुखार, सर्दी और जुखाम

" बुखार, सर्दी और जुखाम "

बुखार, सर्दी और जुखाम 
परेशान करे दिनभर ,शाम | 

कर न पाए कोई भी काम, 
कर दे हमेशा यह बदनाम | 
बुखार, सर्दी और जुखाम, 
परेशान करे दिनभर शाम | 
न तुम स्कूल जा पाओ ,
न चैन से कुछ खा पाओ | 
ये मौसम है बहुत खतरनाक,
कभी जुखाम में बहता है नाक |  
खा न पाओ एक पपीता,
समीर ने बनाई यह कविता | 
जैसे कोई पकडे हो कान,
सर्दी से बचना नहीं है आसान | 
बुखार, सर्दी और जुखाम, 
परेशान करे दिनभर शाम | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह समीर की कविता है जिसका शीर्षक है बुखार सर्दी औरजोखम | इस कविता से यह सीख मिलती है की सर्दी को कभी भी हलके में नहीं लेना चाहिए | समीर को गीत गाने का बहुत शौक है और क्रिकेट खेलने का भी शौक है | 

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

कविता : खुशियाँ फिर आएंगी

" खुशियाँ फिर आएंगी "

अपने घर भी खुशियाँ आएँगी,
अपने घर भी रंग छाएँगी | 
बस धैर्यता का साथ चाहिए,
बस थोड़ा विश्वास भी चाहिए | 
हर वो ख्वाब पूरे होंगे , 
हम खुशियों के रंग में झूमेंगे | 
अपने सपनों को सच कर पाएँगे,
हम एक नई दुनियाँ बनाएँगे | 
जिसमें चन्द्रमा बच्चों को कहानी सुनाएंगे 
बच्चे अपने दोस्त के लिए ताली बजाएँगे | 
अपने घर भी खुशियाँ आएँगी,
अपने घर भी रंग छाएँगी | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह हैं देवराज जिसने यह कविता लिखी है और देवराज बिहार का रहने वाला है जो अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर  रहा है | देवराज को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है साथ ही साथ डांस करना और चित्र बनाना बहुत अच्छा लगता है | 

बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

कविता: हवा

" हवा "

सर - सर चलती हवा, 
फर - फर आती हवा | 
कपडे उड़ा ले जाती हवा, 
आसमान में छोड़ आती हवा | 
गर्मी में ढूढ़ते लोग, 
चले जाते हवा की ओर | 
न मिलता हवा उनको,
थक जाते गर्मी में वो | 
तब मिलता हवा उनको, 
तब लेते चैन की साँस वो | 
सर - सर चलती हवा, 
फर - फर आती हवा |

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | कुलदीप के परिजन साल में अधिक समय कानपुर में रहते हैं काम करने के लिए | कुलदीप को कवितायेँ लिखने के आलावा डांस और खेलना खूब पसंद है | 

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

कविता : मन करता है सागर बनकर

" मन करता है सागर बनकर "

मन करता है सागर बनकर,
दूर तलाक तक मैं लहराऊँ | 
मन करता है हवा बनकर, 
घने बगिया को छू आऊँ | 
मन करता है चंदा बनकर, 
अंधियारे को दूर भगाऊँ | 
मन करता है तारा बनकर, 
एक नया संसार बनाऊँ | 
मन करता है सूरज बनकर,
किरण की नयी उम्मीद जगाऊँ | 
मन करता है एक इंसान बनकर, 
इस धरती में मानवता के बीज उगाऊँ | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा :7th , अपना घर



 कवि परिचय : यह हैं कामता कुमार जो की बिहार के एक नवादा जिले के एक गांव के रहने वाले हैं इस समय कामता अपना घर में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं | सच में कामता मानवता के बीज बोन के लिए प्रयत्न करते  हैं | कामता को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है | 

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

कविता : " यही तो विज्ञानं है "

" यही तो विज्ञानं है " 

अच्छे कामों से ही नाम होती है,
आसमान में ही उड़ान होती है | 
माँ के चरणों में ही जहाँ होती है,
ऐसे पुरुष ही महान होते हैं | 
जो हम जमीं में एक बीज बोते हैं,
वो हज़ार पेड़ों के सामान होते हैं | 
दूसरों को सदा नमन करो,
वही तो सम्मान होती है | 
जो अपने दिमाग को सही से प्रयोग करे 
वही बंदा ही बुद्धिमान होता है | 
और चीजों को सही से पहचानना 
यही एक महान विज्ञानं होती है | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 



कवि परिचय : यह हैं देवराज जो की बिहार के रहने वाले हैं | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है | देवराज अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हैं | देवराज एक महान डांसर बनना चाहते हैं | 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

कविता : क्या है

"  क्या है "

क्या कोई ऐसी दुनिया है,
जहाँ खुशियाँ हर बच्चों के लिए हो |
क्या कोई ऐसी चिड़िया है,
जो हम बच्चो के लिए गाती हो | 
क्या वो दादी अभी भी है,
जो बच्चों को लोरी सुनाती हो | 
क्या वो हवा अभी भी स्वच्छ है,
जिससे हर नवजात शिशु जिन्दा हो | 
क्या  वो समाज भी है,
जिसमें हम आज़ादी से रह सके | 
यह सभी से पूछता हूँ,
क्या यह अभी भी है बच्चों के लिए | 
यह बार - बार  पूछता हूँ, 
क्या यह अभी भी है बच्चों के लिए | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 



कवि परिचय : यह हैं देवराज जो की बिहार के रहने वाले हैं और अपना घर में रहकर अपनी पढाई पूरा कर रहे हैं | देवराज को गतिविधियों में हिस्सा लेने में बहुत मजा आता  है | देवराज एक डांसर बनना चाहता है | देवराज को विज्ञानं में बहुत रूचि है | 

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2018

कविता : डर

" डर "

डर शब्द से क्या डरना,
यह तो मन का भय है | 
मंजिल से यह दूर है रखता,
हर कदम को है लड़खड़ाता | 
मुश्किलों का यह बांध बनाता,
हर एक ख़ुशी को चर है बनाता |
डर नई उम्मीदों को है रोकता,
नए जीवन को प्रकाश नहीं है  देता |
डर शब्द से क्या डरना,
यह तो मन का भय है | 

नाम " राजकुमार , कक्षा " 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह हैं राजकुमार जो की हमीरपुर के रहने वाले हैं और आजकल अपना घर में रहकर अपनी शिक्षा को पूरी कर रहे हैं | राज को राजनीती में बहुत रूचि है | वह नेताओं के बारे मैं बहुत पढ़ता है | राज की कविताओं क एक सार्थक अर्थ होता है | 

शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

कविता : हौशलों के उस सागर में

" हौशलों के उस सागर में "

हौशलों के उस सागर में,
लहरें चलती रहती हैं | 
छोटे से नाव साहस से,
मंजिल की ओर चलती है  
तन छोटा है तो क्या ,
साहस बड़ा होना चाहिए | 
बड़ी मंजिल है तो क्या,
पाने का जज्बा होना चाहिए 
पैर थक जाते हैं पर ,
साहस को मत थकने देना | 
जितनी भी कोशिश हो ,
मंजिल को पाकर ही दम लेना | 



नाम : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और अभी अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | प्रांजुल पढ़ने के साथ ही साथ कवितायेँ भी बहुत लिखते हैं और चित्रकला भी बहुत बनाते हैं | प्रांजुल एक इंजीनियर बनना चाहते हैं |