सोमवार, 17 नवंबर 2025

कविता: "ठंडी का मौशम"

"ठंडी का मौशम"
 ठंडी धीरे धीरे बड़ रही है ,
दिन छोटे तथा राते लंबी है ,
 सभी के जुबान में एक ही चीज ,
है की बहुत सर्दी हो  रही है। 
लड़के - बच्चे , बूढे दादा ,
सब है ओढ़े है साल ,
पता नहीं कब जाएगी सर्दी। 
शायद लग जाए कई साल ,
सर्दी में कपकपी छूटी है ,
क्यूंकि ये मुस्कान सर्दी की जूठी है। 
कवि नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

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