"ठंडी का मौशम"
ठंडी धीरे धीरे बड़ रही है ,
दिन छोटे तथा राते लंबी है ,
सभी के जुबान में एक ही चीज ,
है की बहुत सर्दी हो रही है।
लड़के - बच्चे , बूढे दादा ,
सब है ओढ़े है साल ,
पता नहीं कब जाएगी सर्दी।
शायद लग जाए कई साल ,
सर्दी में कपकपी छूटी है ,
क्यूंकि ये मुस्कान सर्दी की जूठी है।
कवि नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर।
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