सोमवार, 24 नवंबर 2025

कविता: "नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"

"नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"
 ख्यालों में खो रहे हो अभी से राहो पर,
तर्क करते हो बुजूर्गो के तजुर्बो पर ,
जिंदगी जो जी रहे हो यादो में। 
इसके किस्से रहते है उनके जज्बातो में ,
उड़ाने आओ असल जिंदगानी में। 
नादान हो तुम अभी ,
भीतर से खोखले और कमजोर हो अभी ,
खोओ नहीं किसी और की दुनिया पर ,
क्यूंकि नए नए उतरे हो रहो पर अभी। 
हाव - भाव से बहुत कुछ बदलाव दीखते है बाहर ,
इन बदलावे के लक्षण, खिखते है खतरनाक ,
ज्यादा बड़े नहीं हुए अभी। 
तर्क करो बुजूर्गो से इतने बड़े नहीं हो अभी,
अभी ठहरो जमी पर ,
क्यूंकि नए - नए उतरे हो रहो पर। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपन घर 

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