मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010

मरना ही हैं सरल
मुसाफिर चला हैं लेके अपने खाली हाथो को ,
तुम भी तो समझो मुसाफिर की इंसानियत को....
सफ़र हैं बहुत ही दूर,
पर उसकी ताकत हो चुकी हैं चूर....
मुसाफिर चला हैं अपना पेट भरने को,
पेट के वास्ते सभी को छोड़ा एस ज़माने को .....
किसी को छाया हैं अमीरी का नशा,
कंगाल वही हैं जो न देखे गरीबो की दशा....
मुसाफिर चाहे मारे चाहे भूखे ही तडपे ,
हर कोई उसको ही हदाकाए.......
पेट भरना बड़ा ही हैं मुश्किल,
इससे अच्चा मरना ही हैं सरल....
लेख़क आशीष कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

2 टिप्‍पणियां:

  1. कंगाल वही हैं जो न देखे गरीबो की दशा
    बहुत सुन्दर भाव लिए बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....आभार
    नन्ही ब्लॉगर
    अनुष्का

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  2. इतनी निराशा क्यूँ बेटा...अपनी ताकत, बुद्धि और विवेक पर भरोसा रखो तो बड़े से बड़ी कठनाई पार कर जाओगे..


    निराशा इन्सान की सबसे बड़ी दुश्मन है, इससे सदा दूर रहो..चलो, नई उमंग के साथ, पूरे आत्म विश्वास से एक नई उर्जापूर्ण रचना लिखो.

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