इतनी बढ़ी है मंहगाई ।
किसी ने की न जिसकी आवाज सुन मेरे भाई ॥
पूँछा आलू का क्या दाम है भइया ।
उसने बोला एक किलो का दस रुपया ॥
टमाटर का दाम वो सुनकर ।
अब न खायेगें इसको लेकर ॥
बैंगन की वो बात निराली ।
खेतों में लहराती गेंहू की बाली ॥
धनियाँ का जब लिया गट्ठा ।
दाम सुनकर बैठा दिमाग का भट्ठा ॥
बाकी सब्जी का भाव सुनकर ।
बाजार से भागे दौड़ लगाकर ॥
जब लगी सभी को मंहगाई ।
तब सबने मिलकर आवाज लगाईं ॥
रुकी न पर एक भी मंहगाई ।
लोगों के आंसू की धारा उसने बहाई ॥
लेखक :आशीष कुमार ,कक्षा :८,अपना घर
बहुत सटीक...बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा बाल-गीत...बधाई.
जवाब देंहटाएंvery nice and very true
जवाब देंहटाएंdude mast hai yaar!!!
जवाब देंहटाएंKYA AAP IS PAR ESSAY BHI LIKH SAKTE HO KYA??PLEASE!!!!
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