मंगलवार, 17 अगस्त 2010

कविता :मंहगाई

मंहगाई

इतनी बढ़ी है मंहगाई
किसी ने की जिसकी आवाज सुन मेरे भाई ॥
पूँछा आलू का क्या दाम है भइया ।
उसने बोला एक किलो का दस रुपया ॥
टमाटर का दाम वो सुनकर
अब खायेगें इसको लेकर
बैंगन की वो बात निराली
खेतों में लहराती गेंहू की बाली
धनियाँ का जब लिया गट्ठा
दाम सुनकर बैठा दिमाग का भट्ठा
बाकी सब्जी का भाव सुनकर
बाजार से भागे दौड़ लगाकर
जब लगी सभी को मंहगाई
तब सबने मिलकर आवाज लगाईं ॥
रुकी पर एक भी मंहगाई
लोगों के आंसू की धारा उसने बहाई

लेखक :आशीष कुमार ,कक्षा :,अपना घर

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