गुरुवार, 30 सितंबर 2010

कविता :अरे यह जीभ भी अजीब

अरे यह जीभ भी अजीब

अरे भाई यह जीभ भी अजीब
नाक के भरोसे है
खुशबू बाहर से आती है
पानी से यह भर जाती है
अरे भई यह जीभ भी अजीब ।
जो वह आखों से देखती है
खाने को वह मांगती है
जब खाना मिल जाता है
तो pet भर जाता है
बड़ा मजा आता है

लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :
अपना घर

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