अरे भाई यह जीभ भी अजीब ।
नाक के भरोसे है ॥
खुशबू बाहर से आती है ।
पानी से यह भर जाती है ॥
अरे भई यह जीभ भी अजीब ।
जो वह आखों से देखती है ॥
खाने को वह मांगती है ।
जब खाना मिल जाता है ॥
तो pet भर जाता है ।
बड़ा मजा आता है ॥
लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
5 टिप्पणियां:
बात तो बिलकुल सही है :)
नन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
sundar
मजेदार है यह जीभ....
अरे वाह!
जीभ की कविता तो बहुत सुन्दर है!
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इसकी चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/20.html
बहुत ही सुन्दर गीत अशोक जी---।
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