गुरुवार, 2 सितंबर 2010

कविता ब्रहमाण्ड

ब्रहमाण्ड
यह ब्रहमाण्ड हैं कितना अनोखा
इसको गौर से हमने नहीं हैं देखा
कैसा हैं ये ब्रहमाण्ड हमारा
जिसमे छोटा सा हैं संसार हमारा
क्या कही और भी होगा जीवन
क्या वहां पर भी होगा अपना पन
यह तो हैं एक आनोखी कहानी
जो अभी तक हमने नहीं जानी
मै भी जाऊँगा एक दिन चाँद पर
जहाँ पर नहीं हैं हवा पानी और घर
ये अजीब सा ब्रहमाण्ड होगा कैसा
जैसा हमने सोचा क्या होगा वैसा
लेखक धर्मेन्द्र कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

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