कलम और कॉपी लेकर ।
बैठे जब हम टेबल पर ॥
आसमान की ओर देखा जब ।
कितने तारे चमक रहे थे तब ॥
चन्दा मामा घूम रहे थे ।
अर्धवृत्त आकृति लिए हुये थे ॥
चल रहे थे अपने पथ में ।
मगन हुए थे अपनी धुन में ॥
गयी रात जब हुआ सबेरा ।
पंछी गाया तब मुर्गा बोला ॥
सूरज मामा लेकर आये ।
साथ में अपने लाल घटाए ॥
गुम हो गए चन्दा मामा ।
लाल हो गये सूरज मामा ॥
चन्दा मामा कहीं सो गये ।
शायद सपनों में खो गए ॥
चन्दा मामा सूरज मामा ।
दुनियाँ घूमें आधा-आधा ॥
सूरज मामा जब-जब जागे ।
सारी दुनियाँ तब-तब भागे ॥
लेख़क :अशोक कुमार ,कक्षा :८
अपना घर
अपना घर
बहुत बढ़िया ,बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता|
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता
जवाब देंहटाएंBahut badhiya lagi hah kavita,,,,,,,
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