बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

कविता : मैंने उसे मारा गिल्ली

मैंने मारा उसे गिल्ली

एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
रंग था उसका काला,
लगती थी भोली -भाली....
चलाती थी ट्रेन जैसी,
लगती थी क्रेन जैसी...
जब भी वह सोती थी,
रात में वह रोती थी...
एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
मैंने उसे मारा गिल्ली,
वह पहुँच गयी दिल्ली....
एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
लेख़क : मुकेश कुमार
कक्षा
:
अपना घर , कानपुर

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