सोमवार, 16 अगस्त 2010

कविता तारा

तारा
एक हैं तारा ,
कई सितारे....
जग मग करते,
आकाशा में सारे....
एक चमकते हैं तारे,
नहीं कभी जिन्दगी से हारे.....
आकाशा में घूमता मारा मारा,
पूछने वाला कोई नहीं बेचारा.....
तारे हैं बहुत पुराने,
सुनते हैं आसमान में गाने.....
जाते हैं रोज नहाने,
और आते हैं रोज खाना खाने.....
एक हैं तारा,
कई सितारे......
लेखक मुकेश कक्षा अपना घर कानपुर

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