शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

कविता :काले-काले बादल छाए

काले-काले बादल छाए

काले-काले बादल छाए ,
बरसात का मौसम हैं लाये ....
रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी ,
खेत सब भर गये हैं खाली ....
बरसात के एक-एक बूंदों में ,
छिपा है शरबत का मीठा पानी ....
किसान भाई होते हैं होशियार ,
धान लगा देते हैं खूब हजार ....
काले-काले बादल छाए ,
बरसात का मौसम हैं लाये ....

लेख़क :सागर कुमार ,कक्षा :
अपना घर

2 टिप्‍पणियां:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

jandar,shandar,damdar.narayan narayan

रानीविशाल ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता लिखी सागर भैया आपने ...
नन्ही ब्लॉगर
अनुष्का