एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
रंग था उसका काला,
लगती थी भोली -भाली....
चलाती थी ट्रेन जैसी,
लगती थी क्रेन जैसी...
जब भी वह सोती थी,
रात में वह रोती थी...
एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
मैंने उसे मारा गिल्ली,
वह पहुँच गयी दिल्ली....
एक थी इल्ली,
उसने पहनी झिल्ली....
लेख़क : मुकेश कुमार
कक्षा : ९
अपना घर , कानपुर
कक्षा : ९
अपना घर , कानपुर
3 टिप्पणियां:
बड़ी मज़ेदार कविता ....आभार
अनुष्का
.हा.हहा..हा...बड़ी मजेदार लगी...
सुंदर
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